शिव का धाम-आदियोगी आलयम

तुमने नहीं माँगा समर्पण या भक्ति

तुमने सदा बरसाई कृपा जो थी मुक्त सारे अनुष्ठानों और अंधभक्ति से

यह सब तो प्रश्न था हमारी सहज बुद्धि और आत्मसात् करने का

तुमने नहीं बाँटा, जो जानते थे तुम पर बना लिया मुझे हिस्सा अपने अस्तित्व का

देखकर तुम्हारा एक अनियंत्रित अस्तित्व खो गया मेरे और तुम्हारे बीच का सारा अंतर

मेरी श्वास और मेरा अस्तित्व आनंदित हूँ, कि देख रहे हैं सभी