अनूठे परिधान

जब भी कपड़ों की बात आती है तो यह साफ़ पता लगता है कि सद्‌गुरु स्टीरियोटाइप योगी या रहस्यवादी की तरह कपड़े नहीं पहनते। तो फिर ऐसी सजीली और आकर्षक वेशभूषा पहनने का क्या उद्देश्य है?

सद्‌गुरु: ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा, मेरे जीवन का सबसे बड़ा मिशन था, उसके पूरा होने तक मैं बहुत सादगी से कपड़े पहनता था। क़रीब बीस साल तक, मैंने कभी कपड़ों की किसी दुकान में कदम नहीं रखा और न ही अपने लिए कुछ खरीदा। लोग मुझे सादे सफ़ेद कपड़े देते और मैं उन्हें ही पहन लेता, अक्सर वे कपड़े मेरी पसंद और सौंदर्य बोध के हिसाब से नहीं होते थे। मुझे अपने हर काम में सौंदर्य बोध बनाए रखना पसंद है, पर तब मैं उन बातों पर केन्द्रित नहीं था क्योंकि मैं अपने ध्यान को बँटाना नहीं चाहता था। मैं तो किसी दूसरे ज़रूरी काम में मग्न था। जब वह काम पूरा हो गया, तो मैंने सोचा, ”ठीक है, अब शायद बेहतर तरीके से कपड़े पहनने का समय आ गया है।“ और फिर मैंने तय किया कि मैं अपने कपड़े खु़द डिज़ाइन करूँगा। मैं कुछ ऐसा पहनना चाहता था जिसे देख कर लगे कि मैं भारत का रहने वाला हूँ।

इस ग्रह पर जितने भी तरह के कपड़े तैयार किये जाते हैं, उनमें सबसे अधिक विविधता भारत में पाई जाती है। इतने सालों की ख़ोजबीन के बाद, मैं भारत में तैयार होने वाले कपड़ों के बारे में सब जानता हूँ। ऐसे बहुत से गाँव हैं, जहाँ किसी विशेष प्रकार का कपड़ा, उन गांवों के अलावा पूरे विश्व में कहीं नहीं मिलता। अगर भारत के लोग अपने यहाँ तैयार किए गए कपड़ों को सही तरह से बाज़ार में उतारना सीख लें, तो इसी के सहारे अपना देश चलाया जा सकता है। इसलिए मुझे लगा कि मेरे कपड़ों से भारतीयता पूरी तरह से झलकनी चाहिए। और तब से मैं इसी तरह के कपड़े पहनता हूँ।