बालबेक, लेबनान

सद्‌गुरु लेबनान के बालबेक स्मारक के बारे में बात कर रहे हैं, जो दरअसल एक मंदिर है, जिसे योगियों ने कुछ हज़ार वर्ष पूर्व तैयार करवाया था।

सद्‌गुरु: बालबेक एक अद्भुत स्मारक है। यह एक ऐसी जगह है, जिसे सबको देखना चाहिए। कई पत्थरों का भार तो आठ सौ टन तक है। मैं बस इतना चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें - बिना किसी उपकरणों के ऐसा काम करना, क्रेनों, ट्रकों और बड़े जहाजों के बिना, भला किस तरह के इंसान ऐसा करने के बारे में सोच भी सकते हैं? ये तो पक्का है, कि यह उन लोगों का काम नहीं हो सकता जिन्हें पैसे और रोटी के सिवा कुछ सूझता ही नहीं।

इस स्थान की एक और दिलचस्प बात यह है कि अगर आप छत को देखें, तो आप पाएँगे कि मंदिर की छत से पत्थरों से तराशे गए कमल के फूल लटक रहे हैं। जबकि मिडिल ईस्ट में कोई कमल नहीं पाए जाते। यह भारतीय आध्यात्मिकता का प्रतीक है। और इससे भी अधिक, बालबेक के संग्रहालय में, एक सोलह कोनों वाला पत्थर भी है, जिसे गुरु पूजा पत्थर कहते हैं।

गुरु पूजा कोई भावात्मक चीज नहीं है।, यह एक निश्चित संभावना को उजागर करने का पूरा सिस्टम है। इसे ‘षोडशोपचार’ का नाम दिया जाता है, यानी गुरु की सेवा करने के सोलह तरीके। इस कार्य के लिए, सोलह कोनों वाले पत्थर तैयार किए जाते हैं, जिन्हें ‘गुरु पूजा पीठ’ कहा जाता है, वे सिर्फ यौगिक सभ्यता में पाए हैं। ऐसी कोइ भी चीज़ इस ग्रह पर और कहीं नहीं पाई जाती, परंतु बालबेक में सैंतीस सौ वर्ष पुराना, गुरु पूजा पत्थर है। यह बात तो साफ़ ही है कि इन दो स्थानों के बीच बहुत सक्रिय आर्थिक और आध्यात्मिक संपर्क रहा होगा।