गोल्फ


सद्‌गुरु  ने एक असाधारण प्रतियोगी की तरह बहुत से खेलों में अपना हाथ आज़माया है और कई खेलों में महारत हासिल की है। अगर उनके पास वक्त हो, तो वे वॉलीबॉल, बिलियर्ड्स्, क्रिकेट, फ्रिसबी या डॉजबॉल की एक पारी खेलने को हमेशा तैयार रहते हैं।

कुछ समय पहले, यू.एस. में, सद्‌गुरु ने अपने जीवन का पहला गोल्फ खेल खेला। उसके बाद से, जब भी उन्हें पूरी दुनिया में होने वाले सभा-सम्मेलनों से समय मिलता है, तो वे उस दौरान खेल का अभ्यास करने लगते हैं। वे यहाँ हमें बता रहे हैं कि वे इस खेल के बारे में क्या सोच और अनुभव रखते हैं। वे बता रहे हैं कि इस सादे से खेल से क्या पाया जा सकता है।

सद्‌गुरु : गोल्फ के खेल में, मुझे यह बात बहुत दिलचस्प लगती है कि जो कुछ यह बॉल कर सकती है, उस लिहाज़ से यह एक अनूठी गेंद है। क्रिकेट या हॉकी वगैरह, किसी भी गेंद में ऐसा उछाल नहीं है। जब मैं शुरू में खेलने लगा तो मैंने कुछ गोल्फ खिलाड़ियों से पूछा, "चैंपियनशिप के दौरान सबसे बड़ा हिट कितनी दूर तक जाता है?" उन्होंने बताया, “क़रीब तीन सौ गज तक की दूरी तक जाने वाला शॉट बेहतरीन माना जाता है। वे उससे भी परे जा सकते हैं, पर तीन सौ गज की दूरी को भी बहुत माना जाता है। वैसे, दो सौ गज की दूरी वाले शॉट को अच्छा कहते हैं।” मैंने शॉट लिया और गेंद उछाली। वह तीन सौ पच्चीस फ़ीट की दूरी पर जा गिरी। वे बोले, “सद्‌गुरु ऐसा तो नहीं हो सकता। आपने ज़रूर पहले कहीं गोल्फ खेला है।” मैंने उनसे कहा, “मैं तो अब भी गोल्फ के बारे में कुछ नहीं जानता। पर तुम गेंद को वहाँ तक पहुँचाना चाहते थे और मैं जानता हूँ कि उसे वहाँ कैसे भेजना है।” बस जिंदगी के बारे में भी, मैं इतना ही जानता हूँ। मैं इसे वहाँ भेजना चाहता हूँ, और जानता हूँ कि इसे वहाँ कैसे ले जाना है। मैं इसके सिवा कुछ नहीं जानता। आप लोगों को भी बस यही जानने की ज़रूरत है। वरना सब कुछ जानने के बाद, यह नहीं जान सकेंगे कि आपको जाना कहाँ है।

ये लोग पिछले तीन साल से गोल्फ खेल रहे थे। वे गोल्फ के बारे में सब जानते थे। उन्होंने इसके बारे में क़िताबें पढ़ी थीं, वे हर रोज़ गोल्फ कोर्स जाते, वे जानते थे कि गोल्फ क्लब किस सामग्री से बनता है - सारी तकनीकों की गहरी जानकारी थी, पर वे यह नहीं जानते कि गेंद पर कैसा प्रहार होना चाहिए।

लोग जीवन के हर सादे से पहलू को भी, बुरी तरह से उलझा देते हैं क्योंकि उनके भीतर स्थिरता नहीं होती। अगर आपके भीतर सब व्यवस्थित होगा, अगर आप जानते हैं कि किसी चम्मच या काँटे का इस्तेमाल कैसे करना है और उसे अपने मुँह में कैसे डालना है, तो आप यह भी जान जाएँगे कि किसी गोल्फ गेंद को उसके सुराख तक किस तरह पहुँचाना है। इसके अलावा तो इसमें कुछ करने जैसा नहीं है। हो सकता है कि थोड़े से अभ्यास की ज़रूरत हो, पर आपको गेंद को हिट करने के लिए बहुत मज़ाकिया हरकतें करने की ज़रूरत नहीं है। आपको ये बताने की जरूरत नहीं होगी कि खेलने के लिए खड़े कैसे हों या गोल्फ स्टिक को हाथ में कैसे लें। इतनी समझदारी तो आपके शरीर की बनावट में है। अगर आपके पास इतनी समझदारी है कि आप अपने मुँह में भोजन डाल सकते हैं, तो आपके पास गोल्फ खेलने के लिए भी पर्याप्त नियन्त्रण है।

यह जीवन बिना किसी प्रयास के घट सकता है। हर चीज़ इसलिए मुश्क़िल हो जाती है क्योंकि भीतरी प्रकृति स्थिर नहीं है।

एक सूक्ष्म खेल


सद्‌गुरु: गोल्फ एक बहुत सूक्ष्म खेल है। यह इतना सादा है कि सभी इसे खेलना चाहते हैं पर इसकी सूक्ष्मता बड़ी ज़ल्दी खेलने वाले को परेशान कर देती है। इस खेल की एक अहम बात यह है कि आप किसी दूसरे के साथ इसे नहीं खेल रहे। यह आपसे, गोल्फ कोर्स से, और खेल की परिस्थिति से जुड़ा है। प्रतियोगिताएँ होती हैं पर, असल में यह खेल आपके अपने साथ है। जब आप क्रिकेट खेलते हैं तो कोई आपकी ओर गेंद उछालता है और आपको उसे हिट करना होता है। गोल्फ में, गेंद आपके सामने धरी है। यह दिखने में सबसे बेवकूफ़ाना और आसान खेल दिखता है, पर जब आप इसे खेलने की कोशिश करते हैं तो जान पाते हैं कि यह तो बहुत ही मुश्किल है। आपको किसी की ओर से प्रतियोगिता की ज़रूरत नहीं। आपका अपना शरीर और मन ही आपके साथ ऐसे खेल खेल सकते हैं। इन्हें वश में करने में बहुत समय लगता है। यह बहुत आसान है लेकिन अगर आप इसे नहीं कर पाते तो यह आपको मूर्ख होने का एहसास दे जाता है। यह दूसरे प्रतियोगी खेलों की तरह, आपसे शारीरिक चुस्ती या फ़िटनेस की माँग नहीं रखता, पर फिर भी आप किसी खेल से जितनी चुनौती की उम्मीद रखते हैं, यह एक बहुत सूक्ष्म तरीके से उतना ही चुनौतीपूर्ण है।

कई रूपों में, गोल्फ का खेल आने वाले कल का खेल है। मुझे लगता है कि जब ज़्यादा से ज़्यादा लोग यह जानेंगे कि इस खेल को खेलने के लिए क्या चाहिए तो वे इसे और ज़्यादा अपनाएँगे। इस खेल में कामयाबी के लिए आपको शरीर के बल की बजाए मानसिक कौशल की ज़रूरत होती है।.

मैं इसे अच्छी तरह जानता हूँ क्योंकि मैं इस मन/शरीर के व्यापार में बहुत समय लगा हुआ हूँ। ज्यादातर समय ये शरीर उस तरह का बर्ताव नहीं करता जैसा कि आपको लगता है कि ये कर रहा है। गोल्फ में, आप इसे उसी समय देख सकते हैं, क्योंकि गेंद तो उड़ कर कहीं और चली जाती है। अन्य खेलों में ये नहीं दिखता - ऐसा नहीं कि दूसरे खेलों में ऐसा नहीं होता, लेकिन उनमें चीज़ों बहुत तेज़ी से घटित होती हैं। जब आप फुटबॉल खेलते हैं, तो दस लोग आपको हर संभव तरीके़ से रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इसे समझना आसान बात नहीं। पर गोल्फ में सब कुछ बहुत धीमी गति से होता है, इसलिए आप इसे देख सकते हैं।

गोल्फ बुजुर्गों का खेल है पर जवान भी इसे अपनाने लगे हैं। अब यह सबके लिए एक अच्छा खेल बन गया है क्योंकि जवान भी अब उतने फ़िट नही रहे, जितने पहले कभी हुआ करते थे, इसलिए अब गोल्फ उनके जीवन में जल्दी ही आ जाता है। जो लोग अपने आप को किसी तरीके से श्रेष्ठ समझते हैं, मुझे लगता है कि यह खेल उन्हें वास्तविकता दिखाएगा, जो कि अच्छी बात है।

गोल्फ की मूल बात है कि, “कम ही ज़्यादा है।” - केवल स्कोर ही नहीं, गोल्फ में आप जो भी करते हैं उस पर ये लागू होता है। अगर आप ज़्यादा करने की कोशिश करेंगे, तो आपका खेल पूरी तरह से बिख़र जाएगा।

किसी ख़ास दिन, जब आप सब कुछ तय कर लेते हैं कि आप ऐसा शॉट लेने जा रहे हैं, यह क्लब होगा, वगैरह-वगैरह, उस दिन एक भी दाँव सही नहीं पड़ता। ऐसा इसलिए नहीं कि उस दिन क़िस्मत साथ नहीं देती, दरअसल यह सिस्टम ही ऐसा है। यह कुछ ऐसा है, जिसे मैं अपने हर काम को करते हुए सजगता से जानता हूँ। कुछ ख़ास दिनों में, मैं कुछ निश्चित कामों को नहीं करता क्योंकि मुझे पता है उन दिनों में, मेरे लिए ये काम करना ठीक नहीं होगा। गोल्फ में ये बात स्पष्ट रूप से दिखती है। जो लोग इस बारे में नहीं जानते, उन्हें एहसास होता है कि एक ख़ास दिन में, सब कुछ सही ही होता है। ऐसा आपकी क़िस्मत की वजह से नहीं बल्कि इसलिए होता है क्योंकि आपका शरीर और मन एक ख़ास तरह से काम कर रहे हैं। गोल्फ एक तरह से उस इंसान के लिए पैमाने का काम करता है, जिसके पास यह मापने की जागरूकता नहीं है कि आज वह किस दशा में है।