1) अतिक्रमण (कब्ज़ा):

ईशा का उल्लेख सीएजी रिपोर्ट में, “वन क्षेत्र में अतिक्रमण का बना रहना”, इस शीर्षक के अंतर्गत हुआ है। उन्होंने लिखा है, “सरकार ने नवम्बर 2017 में जवाब दिया कि अतिक्रमण तमिलनाडु बायोडाइवरसिटी कनज़रवेशन एंड ग्रीनिंग प्रोजेक्ट के तहत नहीं आते। यह जवाब मानने योग्य नहीं है क्योंकि अतिक्रमण की निगरानी के लिये, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए, जमीन निर्धारक सीमाचिन्हों से संसाधनों की सुरक्षा को मजबूत करना इस प्रोजेक्ट में शामिल है और यह प्रक्रिया बूलुवापट्टी गाँव में अमल में लाई जा रही है जो कोयम्बटूर डीएमयू का भाग है”। तमिलनाडु वन विभाग ने अपने द्वारा फाइल किए गए काउंटर एफिडेविट में स्पष्ट रूप से कहा है –

“ईशा फाउंडेशन द्वारा आरक्षित वन क्षेत्र में कोई अतिक्रमण नहीं है तथा आरक्षित वन क्षेत्र की सीमाओं का कोई उल्लंघन नहीं है”।

ऐसा निम्न में कहा गया है :

  • मद्रास हाईकोर्ट में रिट पेटीशन क्रमांक 5885\2013 में।
  • नेशनल ग्रीन ट्रुबनल, दक्षिण क्षेत्र, चेन्नई में आवेदन क्रमांक 42\2017 में दाखिल किये गये अपने शपथ पत्रों में।
  • पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी नेशनल ग्रीन ट्रूबनल, दक्षिण क्षेत्र, चेन्नई में आवेदन क्रमांक 42\2017 में दाखिल किये गये अपने शपथ पत्र में।

ये सभी निष्कर्ष क्षेत्रीय वन संरक्षक, कोयंबतूर की रिपोर्ट के आधार पर हैं।

ईशा योग केंद्र अलग-अलग जमीन मालिकों से खरीदी गई निजी पट्टा जमीन पर बनाया गया है।

2) हाथी गलियारा:

सीएजी रिपोर्ट कहती है, “हाथी आरक्षित क्षेत्र में शहरीकरण: ये भवन बूलुवापट्टी आरक्षित वन क्षेत्र में हैं,जो हाथियों के निवास\गलियारे के लिये जाना जाता है”।

तमिल नाडू वन विभाग द्वारा फाइल की गई पेटीशन क्रमांक 5885 में तथा एनजीटी आवेदन क्रमांक 42\2017 में दाखिल किये गए जवाबी शपथपत्रों में, वन विभाग ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि ईशा योग केंद्र हाथी गलियारे में है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी), दक्षिण क्षेत्र, चेन्नई के सामने आवेदन क्रमांक 42\2017 में दाखिल किये गये अपने जवाबी शपथपत्र में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि ईशा योग केंद्र हाथी गलियारे में है।

आरटीआई के तहत जवाब देते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने भी ऐसा कहीं नहीं कहा है कि ईशा अथवा ईशा का कोई नजदीकी क्षेत्र तमिलनाडु के किसी भी हाथी गलियारे में है।

गज रिपोर्ट: हाथी कार्य दल, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि ईशा केंद्र किसी हाथी गलियारे में आता है।

“आवागमन का अधिकार—भारत के हाथी गलियारे”, यह रिपोर्ट डब्ल्यू. टी. आई. ने तैयार की है जो कई विशेषज्ञों ने मिल कर बनाई है और जो अरुणाचल प्रदेश, असम, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मेघालय, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तराँचल, तथा पश्चिम बंगाल के वन विभागों ने मंजूर की हैं। इस रिपोर्ट में कहीं ऐसा नहीं कहा गया है कि ईशा जिस क्षेत्र में है वह हाथी गलियारे में आता है।

हाथी संरक्षण के लिये काम कर रहे कई जाने माने वैज्ञानिकों भी स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि ईशा फाउंडेशन किसी भी हाथी गलियारे के नज़दीक नहीं है।

तमिलनाडु वन विभाग ने पेटीशन क्रमांक 5885 में दाखिल किये गए अपने शपथपत्र में यहाँ तक कहा है कि ये आरोप ईशा फाउंडेशन के कुछ अधिकारियों के साथ हुए कुछ छोटे विवादों के कारण लगे हैं।

3) भवन मंजूरी

सीएजी रिपोर्ट कहती है, “.......एचएसीए की मंजूरी नहीं मिली है (जुलाई 2017)”

16 मार्च-2017 के दिन हुई एच. ए. सी. ए. की 58वीं मीटिंग में, एच. ए. सी. ए. ने ईशा फाउंडेशन की सभी इमारतों को स्वीकृति दे दी है, और 3 मई-2017 के दिन हुई तमिल नाडू टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने तकनीकी मंजूरी दे दी है।

स्पष्ट है की सीएजी रिपोर्ट में तथ्यों को नज़रअंदाज़ किया गया है।