इस स्तंभ में आप पढ़ रहे हैं महाभारत काल की घटनाएं जिससे उस समय के समाज और उसकी व्यवस्था को समझा जा सके। अब तक आपने पढ़ा कि महर्षि पाराशर और मछुआरों के मुखिया की लड़की जिसका नाम मत्स्यगंधा था, के प्रेम संबंधों से कृष्ण द्वैपायन का जन्म हुआ जो बाद में वेद व्यास के नाम से जाने गए। अब इस कहानी के दूसरे सिरे पर चलते हैं जो आगे चलकर जुड़ती है मत्स्यगंधा की कहानी से –

एक दिन राजा शांतनु गंगा के किनारे टहल रहे थे। वहां उनकी मुलाकात गंगा से हुई। वह उनसे प्रेम करने लगे। वह गंगा से विवाह करना चाहते थे। गंगा ने कहा, ‘अगर आप मुझसे शादी करना चाहते हैं तो आपको मेरी एक शर्त माननी होगी। मैं चाहे जो भी करूं, आप मुझसे कोई प्रश्न नहीं करेंगे।’ एक ऐसी आम शर्त जो आप में से ज्यादातर लोग आजकल रखते हैं। गंगा ने साफ कह दिया कि मैं कितना भी अजीब काम क्यों न करूं, लेकिन आप मुझसे कोई सवाल नहीं करेंगे। शांतनु गंगा के प्रेम में इतने पागल थे कि उन्होंने हां कह दी।

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इस शादी से गंगा के एक पुत्र का जन्म हुआ। उस नवजात को लेकर गंगा नदी के पास गईं और उसे डुबो दिया। शांतनु आश्चर्यचकित रह गए, लेकिन वह इसके बारे में गंगा से कुछ भी पूछ नहीं सकते थे।
इस शादी से गंगा ने एक पुत्र को जन्म दिया। उस नवजात को लेकर गंगा नदी के पास गईं और उसे डुबो दिया। शांतनु आश्चर्यचकित रह गए, लेकिन वह इसके बारे में गंगा से कुछ भी पूछ नहीं सकते थे, क्योंकि गंगा ने पहले ही यह शर्त लगा दी थी कि अगर शांतनु ने उसके किसी भी काम के बारे में पूछताछ की तो वह उन्हें छोडक़र चली जाएंगी। शांतनु ने खुद को नियंत्रित कर लिया। इसके बाद गंगा ने एक और पुत्र को जन्म दिया । वह उसे भी नदी तट ले गईं और डुबो दिया। शांतनु बड़े परेशान थे, लेकिन उन्होंने पूछा कुछ भी नहीं क्योंकि अगर वह कुछ पूछते तो गंगा उन्हें छोडक़र चली जातीं। इस तरह सात बच्चों को एक - एक करके गंगा ने नदी में डुबो दिया। कुछ समय बाद आठवें पुत्र का जन्म हुआ। शांतनु ने उस स्वस्थ बच्चे को देखा तो उनसे रहा न गया। उन्होंने गंगा से कहा, ‘बहुत हो चुका। तुम सात बच्चों को नदी में डुबो चुकी हो। क्या है यह सब? इसके साथ ऐसा मत करना।’ गंगा ने कहा, ‘आपने शर्त तोड़ दी। मैं अब जा रही हूं। मैंने पहले ही कहा था कि आपको मुझसे कोई सवाल नहीं करना है। चूंकि अब आपने मुझसे पूछ लिया है तो मुझे जाना होगा। इस बच्चे से आपका गहरा लगाव है, इसलिए मैं इसे छोड़ दूंगी। कुछ साल तक मुझे इस बच्चे को पालने दीजिए, फिर मैं इसे आपको सौंप दूंगी, लेकिन हां, आपके और मेरे संबंधों का अब अंत हो गया।’

राजा सत्यवती के पिता के पास उसका हाथ मांगने गए। लेकिन इसके लिए सत्यवती के पिता ने एक शर्त रखी। फिर से शर्त... बेचारे शांतनु।
इस तरह बच्चे को लेकर गंगा चली गईं और उन्हें दोबारा देखने की उम्मीद में शांतनु नदी के किनारे भटकने लगे। एक दिन उन्होंने देखा कि गंगा अपने सामान्य बहाव से थोड़ी हट गई है। एक स्थान पर पानी कुछ उभर गया है और दूसरे स्थान पर धंस गया है। यह पूरा नजारा ही शांतनु को बेहद अजीब लगा। पूरा माजरा जानने के लिए वह उस स्थान के करीब पहुंचे। उन्होंने देखा कि किसी ने बाणों की मदद से एक बांध जैसी रचना बना दी है। वह हैरान रह गए। तभी उन्होंने वहां खड़े एक 12 साल के बच्चे को देखा, जिसके हाथ में धनुष बाण थे। वह बच्चा उस बांध जैसी रचना को और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा था। शांतनु बच्चे के पास गए और बोले, ‘तुम कौन हो, जो तुम्हारे अंदर ऐसा कौशल है? तुम अवश्य ही कोई क्षत्रिय हो।’ उन दिनों ऐसा माना जाता था कि अगर आप हथियारों का प्रयोग करने में कुशल हैं तो आप क्षत्रिय ही होंगे। खैर बच्चे ने कहा, ‘मेरा नाम गांगेय है।’ इतने में माता गंगा प्रकट हो गईं। उन्होंने शांतनु से कहा, ‘यह आपका बेटा है। अब यह इतना बड़ा हो चुका है कि आप इसे अपने साथ ले जा सकते हैं। वेदों और उपनिषदों के अलावा युद्ध विद्या में भी यह पारंगत हो चुका है। आप इसे ले जा सकते हैं। यह आपका योग्य उत्तराधिकारी होगा। आपके बाद यह एक योग्य और महान राजा बनेगा।’ शांतनु बच्चे को अपने साथ ले गए और गंगा दुबारा अंतर्ध्यान हो गईं।

अब एक और बात जिसके बारे में हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं। महान ऋषि पाराशर घायल अवस्था में एक मछुआरे के गांव पहुंचे। मत्स्यगंधा नाम की कन्या ने उनकी चिकित्सा की और उसके बाद उन दोनों से कृष्ण द्वैपायन यानी वेद व्यास का जन्म हुआ। मत्स्यगंधा से संबंधों के कारण ऋषि पाराशर ने उसे वरदान दिया था कि उसके अंदर से एक खास तरह की लुभावनी सुगंध आएगी। मछली की दुर्गंध से उसे छुटकारा मिल गया। शायद यही वजह था कि अब वह मछुआरे समाज में नहीं रह सकती थी। वह देश के दूसरे हिस्सों में भटकी और फिर गंगा के तट पर रहने लगी। उसके भीतर से बहुत भीनी-भीनी सुगंध आती थी, इसलिए उसका नाम सत्यवती पड़ गया। एक दिन वह नदी तट पर थी कि तभी राजा शांतनु वहां टहलते हुए आ गए। जब उन्होंने सत्यवती के भीतर से आ रही सुगंध को महसूस किया तो बेचैन हो उठे और उसे खोजने लगे। आखिर उन्हें सत्यवती मिल गई, जो नदी तट पर ही एक जगह बैठी थी और उसके शरीर से सुगंध आ रही थी। राजा इस सुगंध से मंत्रमुग्ध हो गए और सत्यवती से प्रेम करने लगे। वह उससे विवाह करना चाहते थे। राजा सत्यवती के पिता के पास उसका हाथ मांगने गए। लेकिन इसके लिए सत्यवती के पिता ने एक शर्त रखी। फिर से शर्त... बेचारे शांतनु। सत्यवती के पिता ने कहा, ‘अगर आप मेरी बेटी से विवाह करना चाहते हैं तो आपको मुझे वचन देना होगा कि आपके बाद राजगद्दी सत्यवती की संतान ही संभालेगी। आपको पहले से ही एक युवा पुत्र है। जाहिर है, आपने उसे ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया होगा। अगर आप मुझे यह वचन देते हैं कि मेरी बेटी की संतान को ही आपके बाद सिंहासन मिलेगा, तो मैं उसका विवाह आपके साथ करने को तैयार हूं।’
आगे जारी ...