पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा  योग के आदि काल के बारे में। मानव-तंत्र को समझने और इसकी संभावनाओं को खोजने में  आदियोगी जैसी कोशिश और काम उनसे पहले किसी ने नहीं किया था। उनके बाद भी हमें कोई ऐसा नहीं मिलता जिसका काम या योगदान उनके समान हो। उनके बाद भारत हजारों तेजस्वी योगियों, सिद्धों, साधु-संतों का जन्म स्थल बना। उनमें से कुछ प्रमुख योगी थे: वशिष्ठ, भगवान कृष्ण, पाराशर ऋषि, व्यास ऋषि, अष्टावक्र, पतंजलि...

योग के इतिहास में यह ऐसा युग था, जब योग की शिक्षाओं को लिखा जाने लगा और इस तरह योग की मौखिक परंपरा का अंत हो गया। इस अवधि में योग से संबंधित उत्कृष्ट साहित्य की एक समृद्ध परंपरा देखने को मिलती है, जैसे उपनिषद्, योग वशिष्ठ, योग सूत्र, भगवदगीता।

पतंजलि योग सूत्र जीवन के बारे में इस धरती का शायद सबसे महान दस्तावेज और सबसे नीरस किताब है। यह बेहद बोर और रूखी किस्म की किताब है।
हालांकि योग-शिक्षा को लिखित रूप दे दिया गया था, लेकिन सब कुछ बहुत ही गोपनीय और सांकेतिक रूप में लिखा गया। उन बातों को वही लोग समझ सकते थे, जिन्हें इसके लिए दीक्षित किया गया हो। इस युग में योग का मकसद मोक्ष और आत्मज्ञान था।

  • वशिष्ठ

    सप्तऋषियों में से एक थे। वशिष्ठ भगवान ब्रह्मा के मानसपुत्र थे। उनके पास दिव्य कामधेनु गाय और उसकी बछड़ी नंदिनी थे, जो अपने स्वामियों को किसी भी चीज का वरदान दे सकती थीं। वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति थी। ऋग्वेद में वशिष्ठ ऋषि को मित्रवरुण और उर्वशी का पुत्र बताया गया है।

योग वशिष्ठ एक हिंदू आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो भगवान वाल्मिकी द्वारा लिखा गया है। कुछ हिंदू मानते हैं कि यह मानव मन में उठने वाले सभी सवालों के जवाब दे सकता है और मोक्ष पाने में इंसान की मदद कर सकता है। इसमें वशिष्ठ ऋषि के राजकुमार राम को दिए गए प्रवचनों का वर्णन है। यह महाभारत के बाद संस्कृत के सबसे लंबे ग्रंथों में से एक और योग का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें करीब 32,000 श्लोक हैं और विषय को समझाने के लिए बहुत सी लघु कहानियां और किस्से इसमें शामिल किए गए हैं।

  • भगवान कृष्ण

    आध्यात्मिक प्रक्रिया को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहते थे, खासकर ऐसे लोगों तक, जो बाकी दुनिया को प्रभावित करते हैं। वह राजाओं और सम्राटों को अंदर की ओर मोडऩा चाहते थे। कृष्ण के जीवन का मकसद ही था आध्यात्मिक प्रक्रिया और राजनीतिक प्रक्रिया का आपस में मिलन कराना। उन्होंने सिर्फ  राजाओं के साथ ही काम नहीं किया, बल्कि उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में हजारों आश्रम भी स्थापित किए। आध्यात्मिक प्रक्रिया को सबसे ऊंचे और सबसे नीचले, दोनों स्तरों पर घटित होना चाहिए।

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भगवद् गीता का शाब्दिक अर्थ है, भगवान के गीत। इस हिंदू ग्रंथ में 700 श्लोक हैं जो हिंदू महाकाव्य महाभारत का एक हिस्सा है। भगवद् गीता में सभी तरह के योग - ज्ञान, भक्ति, कर्म और राज योग का संश्लेषण है या सरल शब्दों में कहें तो योग के चारों रूपों का मिलन है।

  • पाराशर ऋषि

    ऋग्वेदिक काल के एक महर्षि थे जिन्होंने कई प्राचीन ग्रन्थों की रचना की। वह एक परम ज्ञानी और सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने समाज में धर्म की स्थापना के लिए अथक प्रयास किया। ब्रह्मतेज की स्थापना के लिए उन्होंने पूर्ण समर्पित साधकों को लेकर देश भर में सैकड़ों आश्रमों की स्थापना की। उन्होंने उस वक्त के राजाओं से भी संपर्क साधने की कोशिश की ताकि ब्रह्मतेज - यानी संन्यासियों के धर्म, और क्षत्रतेज- यानी शासकों के धर्म, के बीच तालमेल बिठाया जा सके। चूंकि उन्होंने इस आंदोलन को शुरू किया था, इसलिए उन्हें भरपूर सम्मान मिला और लोगों ने उनकी बातों पर ध्यान दिया। साथ ही साथ उनके कुछ शत्रु भी बन गए, जो कि होना ही था। इतिहास गवाह है, जब भी कोई किसी आंदोलन की शुरुआत करता है, तो कुछ लोग एकत्र होकर उसके पीछे चलने लगते हैं और कुछ लोग उसके विरोध में खड़े हो जाते हैं।

वह वशिष्ठ के पौत्र, शक्ति महर्षि के पुत्र और वेद व्यास के पिता थे। ऐसा माना जाता है कि वो लगभग 3100 ई.पू. इस धरती पर मौजूद थे। उन्हें सबसे पहले पुराण- विष्णु पुराण का लेखक माना जाता है। बहुत से ग्रंथों में पाराशर को एक लेखक या वक्ता के रूप में दिखाया गया है। कहा जाता है कि पाराशर घूम-घूम कर शिक्षा देते थे। वह अद्वैत गुरु परंपरा की ऋषि परंपरा के तीसरे सदस्य हैं।

  • व्यासऋषि

    ज्यादातर हिंदू परंपराओं में एक अहम और श्रद्धेय शख्सियत हैं। उन्हें वेद व्यास (यानि जिन्होंने वेदों को वर्गीकृत किया) के नाम से अधिक जाना जाता है। उनका एक नाम कृष्ण द्वैपायन भी था जो उनके रंग और जन्मस्थान से जुड़ा हुआ है। वह महाभारत के रचयिता होने के साथ ही उसमें एक महत्वपूर्ण पात्र भी हैं। व्यास को अठारह प्रमुख पुराण लिखने का श्रेय भी जाता है। उनके पुत्र शुक एक महत्वपूर्ण पुराण भागवत पुराण के कथावाचक हैं।

  • अष्टावक्र

    एक ऐसे संत थे जो सत्य को कुछ इतने प्रभावशाली और तीखे ढंग से रखते थे जो कई बार लोगों चुभता था और उन्हें परेशान कर देता था। शरीर से अपंग होने के बावजूद अष्टावक्र की समझ और विचारों में ऐसी स्पष्टता थी कि उनके उपदेशों को लोग बड़ी उत्सुकता के साथ सुना करते थे। बहुत कम उम्र में ही उन्हें एक महान संत का दर्जा हासिल हो गया था।

अष्टावक्र को शुरुआती साहित्य का रचनाकार माना जाता है। महान कृति अष्टावक्र गीता उन्हीं की रचना है। अष्टावक्र गीता को अष्टावक्र संहिता भी कहा जाता है। ये ऐसे प्रवचनों का संग्रह है, जो अष्टावक्र ने अपने शिष्य राजा जनक, जो मिथिला के राजा थे, को दिए थे। रामायण में भी अष्टावक्र का जिक्र मिलता है, लेकिन उनकी पूरी कहानी का वर्णन महाभारत में पाया जाता है।

  • पतंजलि

    को योग का जनक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में पतंजलि कई भूमिकाओं में देखे जाते हैं। वे व्याकरण के विद्वान हैं, संगीतकार हैं, गणितज्ञ हैं और एक खगोलविद भी हैं। लेकिन इन सबसे बढक़र पतंजलि को इस देश के महान योगियों में गिना जाता है। योगिक परंपरा में पतंजलि को शिव से कम नहीं समझा जाता है।

पतंजलि को आम तौर पर आधा आदमी और आधा सांप के रूप में दर्शाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे जिंदगी के दोहरेपन से परे हैं। पतंजलि शब्द का अर्थ है वह जो अंजलि यानी हथेली में गिरा हो। पौराणिक कथाएं बताती हैं कि पतंजलि का जन्म गर्भ से नहीं हुआ था, बल्कि वह एक छोटे से सर्प के रूप में एक खूबसूरत कन्या की हथेली पर आसमान से आ गिरे थे। उनका चित्रण इसी तरीके से किया जाता है, क्योंकि उन्हें इंसान के रूप में नहीं देखा गया। उन्हें योगिक सिस्टम के आधार के रूप में देखा गया है, जिसमें सर्प को कुंडलिनी के संकेत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

पतंजलि योग सूत्र जीवन के बारे में इस धरती का शायद सबसे महान दस्तावेज और सबसे नीरस किताब है। यह बेहद बोर और रूखी किस्म की किताब है। पतंजलि ने इसे जानबूझकर ऐसा लिखा, क्योंकि यह जीवन को खोलने का सूत्र देती है। अगर यह कविता या साहित्य की तरह से दिलचस्प होती, तो हर तरह के लोग खासकर विद्वान लोग इसे पढ़ते। एक बार अगर ऐसे लोग इस किताब को पढ़ेंगे, तो वे इसमें कही गई बातों की सैकड़ों तरीकों से व्याख्या करेंगे। भाषा पर पतंजलि का इतना अधिकार था कि उन्होंने इस किताब को इस तरह से लिखा कि किसी भी विद्वान ने इसे पढऩे में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसे इतनी बुद्धिमानी से लिखा गया है कि किसी ऐसे शख्स को यह बेहद नीरस और रूखी लगेगी, जिसने उन बातों का जीवंत अनुभव नहीं किया है। ऐसे लोगों को इसे पढक़र बस थोड़ा-बहुत सतही ज्ञान ही हो पाता है।

सूत्र शब्द का असली अर्थ है धागा। किसी हार को आप उसके धागे के लिए नहीं पहनते। आप हार पहनते हैं फूलों का, मनके का या हीरे का या ऐसी ही किसी और चीज का, लेकिन कोई भी हार बिना धागे के नहीं बनता। योग सूत्र ने केवल धागा दिया। जब पतंजलि ने योग सूत्र दिया, तो उन्होंने कोई भी विशेष तरीका नहीं बताया। इसमें कोई भी अभ्यास नहीं बताया गया है। उन्होंने तो बस जरूरी सूत्र दे दिए। अब इन सूत्रों से कैसा हार बनाना है, यह अपने आसपास मौजूद लोगों और परिस्थितियों के आधार पर हर गुरु अपने हिसाब से तय कर सकता है। हर सूत्र के कुछ मायने होंगे, केवल उस आदमी के लिए, जो अपनी चेतना की खोज कर रहा है।

अगले ब्लॉग में पढ़ें मध्य-काल के योग-पुरुषों के बारे में...