ईशा लहर के मई अंक में हमने जीवन में नशे से होने वाले अनुभवों को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। सद्‌गुरु बताते हैं कि शराब पीकर नशा इसलिए नहीं होता क्योंकि आनंद का स्रोत बोतल में है, बल्कि इसलिए होता है क्योंकि नशे का अनुभव आपके भीतर से ही पैदा होता है, आपके आनंद का स्रोत आपके अंदर ही है।

नशे से योग की ओर

नैनीताल की पहाडिय़ों पर एक योगी रहा करते थे। वह हमेशा आनंद में डूबे रहते थे। कभी-कभी उन पर उन्माद छा जाता, तब वे जोर-जोर से ठहाके लगाते, नाचते-गाते तो कभी लोट-पोट हो जाते। एक शहरी युवक था, जो शराब का शौकीन था। शराब पीने के बाद उसे एक तरह के सुख और आनंद की अनुभूति होती थी। नशे में वह भी ठहाके लगाता और नाचता गाता था। एक बार वह युवक गर्मी की छुट्टियों में इन पहाडिय़ों की सैर करने गया।

पहाडिय़ों में उसकी मुलाकात उस योगी से हुई। योगी के हाव-भाव व अंदाज से वह युवक बहुत प्रभावित हुआ। उनकी संगत में उसे ऐसा लगता जैसे कोई जोड़ीदार मिल गया हो।

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इन अनुभूतियों को जबतक वह बाहरी वस्तुओं में तलाशता है, उसे स्थाई रूप से सुख का अनुभव नहीं होता, सुख और आनंद उसके लिए मृग-मरीचिका बने रहते हैं।
बातों-बातों में उसने योगी से पूछ ही लिया, ‘आप कौन सी शराब पीते हैं?’ योगी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘मैं शराब नहीं, खुद को पीता हूं।’ युवक को थोड़ी हैरानी हुई। उसने पूछा, ‘खुद को कैसे पीते हैं?’ यह सुनकर योगी ने एक जोरदार ठहाका लगाया और फिर कहा, ‘सुख और आनंद पाने की अपनी चेष्टा को सही दिशा दो...’ सुख और आनंद पाने की चेष्टा सिर्फ उस युवक या योगी की ही नहीं है। जरा गौर करके देखिए - कोई भी इंसान जो भी कार्य करता है, उसके माध्यम से वह सुखद अनुभूति पाना चाहता है। उसकी मूल चेष्टा प्रेम की, सौंदर्य की, आनंद की अनुभूति पाने की होती है। इन अनुभूतियों को जबतक वह बाहरी वस्तुओं में तलाशता है, उसे स्थाई रूप से सुख का अनुभव नहीं होता, सुख और आनंद उसके लिए मृग-मरीचिका बने रहते हैं। सुखद अनुभूति पाने की चेष्टा में जब वह किसी चीज का इस कदर आदी हो जाता है कि वह उसे विवश करने लगती है, तो इसे एडिक्शन, व्यसन व नशा कहा जाता है।

आध्यात्मिक यात्रा की शुरूआत भी सुखद अनुभूति पाने की चेष्ट से ही होती है। पर एक बहुत बुनियादी अंतर है।

योग आपको खुद के करीब ले जाता है, आपके अंदर जागरूकता, जीवंतता और सेहत पैदा करता है, जिससे प्रेम, सौंदर्य व आनंद की अनुभूति होती है।
जहां तंबाकू, शराब व ड्रग्स आपको खुद से दूर ले जाते हैं, बेहोशी और बीमारी पैदा करते हैं, वहीं अध्यात्म व योग आपको खुद के करीब ले जाता है, आपके अंदर जागरूकता, जीवंतता और सेहत पैदा करता है, जिससे प्रेम, सौंदर्य व आनंद की अनुभूति होती है। यह अनुभूति अंदरूनी होती है, किसी बाहरी वस्तु की मोहताज नहीं होती, इसलिए स्थाई होती है। तो फिर आनंद की तलाश में नशे की तरफ बढ़ रही युवा पीढ़ी को क्यों न हम अध्यात्म और योग की तरफ  प्रेरित करें? आज समाज की एक बड़ी आबादी नशे की गिरफ्त में है। आखिर क्यों और कैसे कोई नशे के चंगुल में फंस जाता है? क्या करें अगर कोई अपना इस चंगुल में फंस जाए और क्या करें कि हमारी आने वाली पीढ़ी इसकी तरफ  न जाए? ऐसे ही न जाने कितने सवाल हमें अक्सर परेशान करते रहते हैं। इस बार के अंक में हमने ऐसे ही सवालों के जवाब समेटने की कोशिश की है।

हमारी यह कोशिश लोगों के जीवन में एक नया सवेरा लाए, उनके जीवन को एक नई दिशा दे, इसी कामना के साथ हम यह अंक आपको समर्पित करते हैं।

- डॉ सरस

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