सद्‌गुरुइस बार के स्पॉट में सद्‌गुरु हमें सोशल मीडिया से बढ़ते जुड़ाव के बारे में बता रहे हैं। ऐसा क्यों है कि अपने जीवन की हर छोटी-छोटी बात को हम फेसबुक इत्यादि पर साझा करना चाहते हैं? जानते हैं सद्‌गुरु से -

सोशल मीडिया का इस्तेमाल बुरा है?

मैं जहां भी जाता हूं, मुझे लोग अपने फोन से चिपके हुए मिलते हैं। कोई भी तकनीक अपने आप अच्छी या बुरी नहीं होती, यह इस पर निर्भर करता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।

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कोई भी तकनीक अपने आप अच्छी या बुरी नहीं होती, यह इस पर निर्भर करता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।
आखिर लोगों में अपनी तस्वीरें पोस्ट करने और उनके दिमाग में जो भी विचार आ रहे हैं, उसे सोशल मीडिया पर फटाफट साझा करने की इतनी विवशता से भरी चाहत क्यों है? इसकी मूल वजह है कि उनके जीवन के अनुभव उनके विचारों व भावनाओं की सीमाओं से आगे नहीं जाते। उनके लिए अपनी मूर्खता भरी चीजों को दूसरों के साथ साझा करने से ज्यादा कुछ और महत्वपूर्ण नहीं होता। एक समय था कि लोग अपने जीवन की सभी घटनाओं कोे एक डायरी में लिख लिया करते थेे। अगर कोई दूसरा उनकी डायरी खोल कर पढ़ लेता था तो उनका दिल टूट जाता था, ‘तुम भला मेरी जिंदगी के बारे में कैसे पढ़ सकते हो?’ लेकिन अब अगर कोई उनकी फेसबुक पोस्ट को लाइक नहीं करता या नहीं पढ़ता तो उनका दिल टूट जाता है।

जीवन के अनुभव को विचारों और भावनाओं से आगे ले जाना होगा

आज आप चाहते हैं कि हर कोई जाने कि आपने क्या किया, आप कहां गए। लोग आपके जीवन के हर पल के बारे में जानें। आप ऐसी चीज़ों में महत्व तलाश रहे हैं, जो बिलकुल भी महत्वपूर्ण नहीं हैं।

कोई भी तकनीक अपने आप अच्छी या बुरी नहीं होती, यह इस पर निर्भर करता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।
यह जीवन तभी अर्थपूर्ण हो सकता है, जब आप अपने अनुभव की क्षमता अपने मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक खांचे से परे ले जाएं। ज्यादातर लोग अपनी पूरी जिंदगी अपनी सोच और विचारों के बीच फंसे हुए निकाल देते हैं। इसके अलावा, वे कुछ और अनुभव नहीं करते और उन्हें लगता है कि यही हकीकत है। आपके विचार और भावनाएं बस आपकी मनोवैज्ञानिक नौटंकी है। उदाहरण के लिए, अगर फिलहाल आप सोच लें कि कुछ गड़बड़ हुई है या कुछ गलत हुआ है तो आपको तुरंत पीड़ा होनी शुरू हो जाएगी, भले ही वास्तव में कुछ भी न हुआ हो। दूसरी ओर, अगर वाकई आपके आसपास कुछ गड़बड़ हुआ हो, लेकिन आप सोचते हैं कि सबकुछ ठीक है तो आप ठीक रहेंगे। आपके विचार व आपकी भावनाएं खुद अपनी बनाई हुई हैं, उनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।

दूसरों के अनुभवों को देखते हुए जीवन मत बर्बाद करें

इसी तरह से आप दूसरों के अनुभवों को देखते हुए अपना जीवन मत बर्बाद कीजिए। अगर आपका सारा ध्यान इस पर रहेगा कि दूसरों के साथ क्या हो रहा है तो आपके साथ कुछ नहीं होगा। आप एक दर्शक मत बनिए, बल्कि आप जीवन में भागीदार बनिए। कोशिश कीजिए कि आप जीवन में जो भी कर रहे हैं, उसकी प्रबलता को बढ़ा सकें। इसे कर के देखिए। चलिए इसे दूसरे तरीके से समझते हैं, मान लीजिए आप कुछ कर रहे हैं या देख रहे हैं तो उसे आप मौजूदा स्थिति से दस गुना ज्यादा प्रबलता से करें या देखें। हर इंसान की आंखें एक सा नहीं देखतीं। आपके अनुभव का स्तर इस पर निर्भर करता है कि आप चीजों को किस प्रबलता या तीव्रता से कर रहे हैं। अपनी प्रबलता को बढ़ाने के लिए आपको लगातार कुछ सचेतन प्रयास करने होंगे।

अनुभव जागरूकता के स्तर पर निर्भर करता है

ज्यादातर लोग आगे इसलिए नहीं बढ़ पाते, क्योंकि वह किसी तरह एक कदम आगे बढ़ाते हैं, लेकिन साथ ही एक कदम पीछे चले जाते हैं। अगर आप पूरे इरादे के साथ एक कदम आगे बढ़ाते हैं और आप इसे अंगीकार करते हैं, तो अगला कदम बढ़ाने के लिए आपमें जरुरी गति मौजूद होगी। प्रबलता या तीव्रता अपने आप नहीं आती। जब तक आप अपने जीवन की ऊर्जा को नहीं बढ़ाते, तब तक आप ज्यादा सचेत नहीं हो सकते। आप किस हद तक किसी चीज का अनुभव कर पाते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितने सचेत या चैतन्य हैं। मान लीजिए फिलहाल आप पूरी तरह से अचेतन हो गए, तो न तो आपको पता चलेगा कि आप यहां हैं और न ही आपको यह पता चलेगा कि आपके आसपास कोई दुनिया भी है।

चूंकि आप थोड़े बहुत चेतन हैं, इसलिए आपको पता है कि आप यहां है और आपके आसपास एक दुनिया है। अगर आप अपनी प्रबलता या तीव्रता को बढ़ा लें तो उसी के साथ आपकी चैतन्यता भी बढ़ जाएगी। आपको ऐसी चीज़ों का बोध होने लगेगा जिन चीज़ों के बारे में आपने उस क्षण तक कभी कल्पना भी नहीं की होगी। यह मेरी कामना और आशीर्वाद है कि आपके जीवन का हर एक पल वास्तव में आपके लिए लाभप्रद हो। बोर होकर मरने की अपेक्षा उत्तेजना में आकर मरना कहीं बेहतर है।