1947 में जब इस देश को आजादी मिली तो सबसे पहला काम जो हमने किया, वह था इसकी सीमाओं को तोडऩा। लगभग ढाई सौ-तीन सौ सालों की गुलामी की वजह से हम कुछ चीजों को समझ ही नहीं पाए। हमारे लिए सब कुछ नया था। एक राष्ट्र का निर्माण होना एक नई बात थी। इसमें शामिल लोग हम ही थे।

कम से कम हमें एक हाईवे तो रखना चाहिए था। अगर हमने जमीन दे भी दी थी तो हमें कम से कम एक रास्ता तो अपने पास रखना चाहिए था।
दरअसल उस समय के सभी लोगों और सारे नेताओं का ध्यान बस इसी बात पर था कि कैसे ब्रिटिश साम्राज्य को खत्म किया जाए। अचानक अंग्रेजों ने यह देश हमें सौंप दिया और वे यहां से चले गए। तब हम लोग उस ‘ब्रेकिंग मोड’ से निकल ही नहीं पाए। हम ‘ब्रेकिंग मोड’ से ‘मेकिंग मोड’ में नहीं आ पाए। यानी हमारी मानसिक दशा अभी बनाने वाली नहीं तोडऩे वाली ही थी। हम उस तोडऩे वाली मानसिकता में ही जी रहे थे, इसलिए हमने इस देश को तीन हिस्सों में तोड़ दिया। मैं कोई राजनैतिक मुद्दा उठाने की कोशिश नहीं कर रहा। मैं तो बस इतना चाहता हूं कि आप यह समझें कि जब किसी देश का निर्माण होता है, तो उस देश की सफलता न तो उसके राजनैतिक घटनाक्रमों पर निर्भर करती है और न ही उसके सैन्य शक्ति व पराक्रम पर। बुनियादी तौर पर किसी देश की सफलता उसके कॉमर्स व व्यावसायिक सफलता पर निर्भर करती है।

भारत के पूरे विश्व के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे

यह बात ख़ास तौर पर हमें तो जान ही लेनी चाहिए थी, क्योंकि ढाई सौ साल पहले तक हम खुद इस दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी थे। हम लोग इस दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक थे। तो हमें यह बात पता होनी चाहिए थी कि कारोबार ही किसी देश को सफल बनाता है। सफल कारोबार का मतलब सफल देश होता है। लेकिन आजादी के बाद हमने सभी व्यापारिक रास्ते बंद कर दिए। इन रास्तों से हम हजारों साल से कारोबार करते आ रहे थे, जिसमें पश्चिम में अरब, दमिश्क, जेरुशलम, यूरोप से मध्य एशिया तक और दक्षिण पूर्व एशिया सहित कई दूसरे देश शामिल थे। हमने अपने दोनों ही तरफ के सारे कारोबारी रास्ते खत्म कर दिए। हमने इसे किसी और को दे दिया और हम खुद एक देश के निर्माण में लग गए। जिन बुनियादी कारोबारी रास्तों ने हमारे देश की सफलता और समृद्धि को हजारों साल तक पोषित किया था, उसे हमने तोड़ दिया, बिना जाने व समझे कि यही वो चीज है जो किसी देश को बनाती है। कम से कम हमें एक हाईवे तो रखना चाहिए था। अगर हमने जमीन दे भी दी थी तो हमें कम से कम एक रास्ता तो अपने पास रखना चाहिए था। लेकिन हमने उस बुनियादी रास्ते को ही तोड़ दिया, जो हमें यूरोप व अरब सहित बाकी देशों तक पहुंचने की सुविधा देता था। अगर ऐसा न हुआ होता तो अब तक या कई साल पहले ही हम लोग अपने यहां से यूरोप की राजधानियों तक जाने के लिए सडक़ मार्ग या रेल लाइन बना चुके होते। तब यह देश पूरी तरह से कुछ और ही होता। तब आप शायद रेल के जरिए दिल्ली से सीधे फ्रांस जा पाते।

आजादी हमारे लिए नई थी

एक बार ऐसा हुआ कि एक समुद्री लुटेरा आयरलैंड के किसी शराबखाने में पहुंचा। उसका दाहिना पैर नहीं था, इसलिए वह लकड़ी के पैर के सहारे चलता था। उसका बायां हाथ खो चुका था, इसलिए वहां एक हुक लगा था।

चूंकि हमने अपना कारोबार करने का हजारों साल पुराना रास्ता खो दिया, इसलिए इतने सालों बाद भी हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं कि कारोबर कैसे किया जाए।
इतना ही नहीं, उसकी एक आंख पर पट्टी भी चढ़ी हुई थी। बिल्कुल क्लासिक लुटेरा। तो वह लंगड़ाता हुआ बार में पहुंचा। बार-मैन ने उसे उसका ड्रिंक दिया और उससे पूछा, ‘अरे जैक, तुम्हें क्या हुआ? पिछली बार जब तुम यहां आए थे तो तुम बिलकुल ठीक थे। अब तुम अपनी एक टांग खो चुके हो!’ इस पर उसने जवाब दिया, ‘हां हम लोग गहरे समुद्र में थे, तभी रानी की सलामी तोप का गोला आया और मेरा एक पैर उड़ाकर ले गया। लेकिन कोई दिक्कत नहीं हुई। हमारे जहाज पर जो बढ़ई था, उसने एक अच्छा सा पैर बना कर मुझे लगा दिया। देखो, अगर तुम चाहो तो मैं इस पैर से नाचकर भी दिखा सकता हूं। कोई दिक्कत नहीं है।’ फिर एक ड्रिंक खत्म होने के बाद उस बार-मैन ने फिर उससे सवाल किया, ‘अच्छा जैक बताओ, तुम्हारे हाथ के साथ क्या हुआ? यह कैसे गायब हो गया?’ जैक ने जवाब दिया, ‘अरे, मैं किसी के साथ तलवारबाजी कर रहा था। उस मूर्ख को यह समझ में ही नहीं आया कि तलवारबाजी में आपको तलवार पर वार करना होता है, उसने मेरे हाथ पर वार कर दिया और इस तरह मेरा हाथ कट गया। लेकिन कोई दिक्कत नहीं। मेरे लुहार ने मेरे लिए एक अच्छा सा हुक बना कर मेरे हाथ में लगा दिया। अब यह मेरे हाथ से ज्यादा मेरे लिए काम करता है।’ फिर बार मैन ने पूछा, ‘वो तो ठीक है, लेकिन यह तुम्हारी आंख में क्या हुआ?’ जैक ने कहा, ‘मैं तारों की दिशा देखकर जहाज को रास्ता बता रहा था, तभी एक चिडिय़ा ने आकर मेरी आंख में बीट कर दी।’ ‘लेकिन चिडिय़ा की बीट से तुम्हारी आंख तो नहीं जा सकती थी!’ जैक ने जवाब दिया, ‘हां वो तो ठीक है, लेकिन मेरे लिए हुक अभी नया-नया जो था।’ तो उस लुटेरे की तरह हम भी अपनी आजादी के प्रति नए थे। बिना यह समझे कि हम क्या करने जा रहे हैं, हमने अपने व्यापारिक रास्ते पूरी तरह से तोड़ लिए और उसके बाद हम एक देश बनाने की कोशिश कर रहे हैं। चूंकि हमने अपना कारोबार करने का हजारों साल पुराना रास्ता खो दिया, इसलिए इतने सालों बाद भी हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं कि कारोबर कैसे किया जाए। अब कारोबार करने का सिर्फ एक ही रास्ता बचा है और वह है- समुद्र का। हम इससे भी कारोबार करना जानते हैं। लेकिन यह कभी भी हमारा मजबूत पक्ष नहीं रहा। हमारी ताकत जमीनी रास्ते ही थे। खैर, यह अलग बात है कि अब सत्तर साल बाद कई चीजें बदल गई हैं। लेकिन आजादी के शुरुआती साल बस यूं ही निकल गए, जब समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें, क्योंकि हमें उस हुक का अभ्यास नहीं था, हम उसके इस्तेमाल के बारे में नहीं जानते थे। तो आजादी अपने आप में एक हुक है।

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