वो बहती थी, उमड़ती थी

मचलती थी, थिरकती थी

कलकलकल छलछलछल

वो पलपल झूमती चलती थी।

 

पर्वतों जंगलों से होकर

घाटियों में धडक़ती थी

वो बहती थी, उमड़ती थी

मचलती थी, थिरकती थी।

 

दिया उसने मानवता को

धडक़न, जीवन, यौवन

खेतों में लहलहा उठी बालियां

फ लों से लदी रहती डालियां

 

तब हवाओं में एक जादू था

मिट्टी में अमृत का स्वाद था

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रग रग में प्राण उमड़ता

विवेक दमकता, निखरता

 

तब विकसित हुई नदी घाटी सभ्यता

नदियां भारत की भाग्य विधाता

वो बहती थी, उमड़ती थी

मचलती थी, थिरकती थी

 

पर वक्त बदल गया,

एक युग का अंत हुआ

उसी के वंशजों ने

उसका गला घोंट दिया

 

आज कलकल मौन पड़ी है

उसकी लहरों में आवाज गुम है

एक श्मशान का सन्नाटा है चारों तरफ

अंत समय में कोई नहीं दिखता आसपास

 

सिर्फ नंदी टहल रहे हैं इधर उधर

भैंसों के झुंड भी हैं कुछ दूरी पर

घाट और घाटी के बीच रेत उड़ रही है

कल ऊंटों ने दौड़ लगाई थी इस थार में

 

एक विशाल नदी

अब प्यास से तड़पकर मर गई है

एक विशाल नदी

अब प्यास से तड़पकर मर गई है।

जो नदियां लाखों साल से बहती आ रही हैं, जिन्होंने भारत की पुण्य भूमि को सिंचित और पोषित किया, उन्हें हमने एक ही पीढ़ी में नष्ट कर दिया है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाया गया तो बहुत देर हो जाएगी, भारत में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा।

 आने वाले समय में इस नीति को लागू करने में राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्तर पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, पर यही वह उत्तम उपहार होगा, जो हम अपनी आने वाली पीढिय़ों को सौंप सकते हैं।
हम अगली पीढ़ी को विरासत के रूप में, एक संघर्ष और अभाव भरा जीवन सौंपकर जाने को विवश होंगे।
जब सद्गुरु ने देश की नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए नदी अभियान की घोषणा की तो कई ईशा साधकों ने सद्गुरु से पूछा कि क्या इस अभियान का आध्यात्मिकता से कोई संबंध है। सद्गुरु ने कहा, ‘अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठकर वह करना, जो किए जाने की जरूरत है - एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। आज जब देश की सभी नदियां सूखने की कगार पर खड़ी हैं, और हम एक भयानक जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं, तो मैं इस सच्चाई को अनदेखा करके नहीं जी सकता।’

हमारे समय की समस्याएं क्या हैं और उनके समाधान क्या हैं, यह जगजाहिर है, पर प्रश्न यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा। नदियों में जान फूंकने की दिशा में छोटे-बड़े स्तरों पर कई कदम उठाए गए हैं, पर इसे समग्रता में कभी संबोधित नहीं किया गया। सद्गुरु द्वारा शुरु किया गया नदी अभियान न सिर्फ पर्यावरण को बेहतर बनाने और नदियों में पानी के कलकल प्रवाह को बारहों मास बनाए रखने की पहल है, बल्कि यह मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाने और किसानों की आमदनी को बढ़ाकर उन्हें खुशहाल बनाने की दिशा में भी एक समुचित प्रयास है।

पिछले कुछ महीनों में इस अभियान के जरिये पूरे देश में नदियों की मौजूदा स्थिति तथा उनके बेहतर कल को लेकर एक नयी तरह की जागरूकता पैदा हुई है, तथा नदियों के पुनरुद्धार की सिफारिशी नीति का दस्तावेज केंद्र व राज्य सरकारों को पेश किया गया है। आने वाले समय में इस नीति को लागू करने में राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्तर पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, पर यही वह उत्तम उपहार होगा, जो हम अपनी आने वाली पीढिय़ों को सौंप सकते हैं।

इस अभियान के पूरे घटनाक्रम को हमने आपसे साझा करने के लिए इस बार के अंक को नदी अभियान डायरी का रूप देने का निर्णय किया है। आशा है कि इस अंक के माध्यम से आप भी इस अभियान से जुडक़र खुद को धन्य महसूस करेंगे। नमन है नदियों को।

- डॉ सरस

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