Sadhguru ‘नदी अभियान’ के खत्म होने पर 3 अक्टूबर 2017 को जो नीति दस्तावेज सरकार को सिफारिश के तौर पर सौंपा गया, उसे एक श्रृंखला के रूप में हम आपसे साझा कर रहे हैं। इस भाग में नदियों के साथ हमारे संबंध का वर्णन करते हुए नदी की सेहत को परिभाषित किया गया है।

 

नदियों को हमारे देश में हमेशा से एक जीवंत इकाई के रूप में देखा गया। यह समझ केवल सांस्कृतिक प्रभावों की वजह से नहीं आई थी, बल्कि इसे वैज्ञानिक प्रमाण का आधार भी मिला। हमारी संस्कृति मौखिक परंपरा से आगे बढ़ती रही इसलिए इसके पीछे का विज्ञान और तार्किकता समय के साथ गायब होती गई क्योंकि देश को लगातार बाहरी शासकों का सामना करना पड़ा। आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन तथा नदियों व उनके पर्यावरण तंत्र की गहरी समझ के साथ, भारत सरकार ने नदी की नीचे दी गई संपूर्ण परिभाषा को स्वीकार किया है।
एक नदी तभी संपूर्ण होती है, जबयह समस्त घाटी क्षेत्र से, सभी मौसमों में, एक ‘अविरल धारा’ और ‘निर्मल धारा’ की तरह बहती रहे, और उसमें एक भौगोलिक इकाई और पर्यावरणीय इकाई का गुण हो।
निर्मल धारा का मतलब है बिना किसी प्रदूषण के बहना। इसके लिए प्रदूषण की रोकथाम के उपायों को कसना होगा और जलमार्गों व प्रदूषण विभाग प्रमुखों के बीच आपसी तालमेल पैदा करना होगा। अविरल धारा का मतलब होगा कि बिना किसी बाधा या रुकावट के बहना, यानी नदी लगातार बहती रहे। ऐसा इसलिए होना चाहिए ताकि नदी अपने शुरुआती स्थान से ले कर, दूसरी नदी में या सागर में बिना किसी बाधा के मिल सके। हम मैदानी इलाकों में नदियों के सूखने पर चर्चा तो करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि नदियों का तटीय इलाकों में सूखना भी ठीक नहीं है। जब नदी सागर तक आने से पहले ही सूख जाती है तो तटीय इलाके का जलदायी स्तर भी सूखने लगता है। इससे मीठे पानी के जलस्तर में भी खारापन बढ़ेगा। इसलिए अविरल धारा बहुत महत्वपूर्ण है।

काफी देर हो चुकी है

एक देश के तौर पर हमें यह बात तब समझ आई है, जब हम नदियों का शोषण एक खतरनाक स्तर तक कर चुके हैं। हमारी नदियाँ अपना मूल रूप खो चुकी हैं और बुरी तरह से अस्त-व्यस्त दशा में हैं। सिंचाई और हाइड्रोपावर के लिए बांध बने हैं, पानी को मनचाही दिशा में ले जाने के लिए बैराज बनाए गए हैं। इंसानी बसावट, वनों की कटाई और खनन आदि ने नदीयों के जलबहाव क्षेत्र को नुकसान पहुँचाया है और नदियों में कछार और तलछट बढ़ा है। औद्योगिक और एग्रो रसायनिक कूड़े और घरेलू कचरे को बिना साफ़ किए के

नदियों में छोड़ दिया जाता है।

इन सभी बाधाओं ने नदियों के भीतर के जल-जीवन को भी प्रभावित किया है। प्रजातियों की संरचना में बदलाव आया है और बहुत सी प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। संसार के 30 नदी घाटियों को जलीय जैवविविधता के लिए प्राथमिकता दी गई है जिनमें से 9 भारत में हैं। इनमें शामिल हैं - कावेरी, गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, सिंधु, कृष्णा, महानदी, नर्मदा, पेन्नार व तापी।
नदियों के सूखने से हमारे अस्तित्व को खतरा है

एक ऐसे संपूर्ण इकोसिस्टम के रूप में नदियों को पूरी तवज्जोह नहीं दी गई है, जिसकी पर्यावरणीय अखंडता उसके भौतिक, रसायनिक और जैविक गुणों और उनके जलबहाव क्षेत्र पर निर्भर करती है। एक नदी के पास अपना पर्यावरणीय प्रवाह होता है जिसके बल पर वो अपने इकोसिस्टम को सुचारू बनाए रखती है। इकोसिस्टम सुचारू बने रहने से पानी की अलग-अलग जरूरतों में लाभ पहुँचते हैं। इससे नदी की सेहत बनी रहती है, आर्थिक विकास और निर्धनता उन्मूलन में मदद मिलती है। वे नदी को स्वस्थ बनाए रखने के सभी फायदे उपलब्ध करवाते हैं ताकि नदी समाज को अपने लाभ देती रहे। अगर पर्यावरणीय प्रवाह की जरूरतों को पूरा न किया गया तो मध्यम और दीर्घकाल में नदी का इस्तेमाल करने वालों को घातक परिणामों का सामना करना होगा। नदियों से सिंचाई का काम लिया जाता है, वे माल के आवागमन का साधन रही हैं और आजकल वे औद्योगिक कामों के लिए ताजे पानी का स्त्रोत भी हैं। यह समझना बहुत महत्व रखता है कि नदियाँ केवल इसलिए नहीं कि मनुष्य उनका शोषण करे। मनुष्य ही अपने अस्तित्व के लिए नदियों पर निर्भर है। यह ध्यान देना और भी अहम हो जाता कि ताजे जल स्त्रोत को बनाए रखा जाए ताकि मनुष्य प्रजाति नष्ट न हो।

नदी पुनरुद्धार नीति सिफारिश दस्तावेज डाउनलोड करें –  डाउनलोड लिंक

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