इस माह के अंक में कि कैसे एक सरल खेल अपने जीवन में अपना कर हम स्वास्थ्य तो पा ही सकते हैं, पर साथ ही ईमानदारी, निष्ठा, सहभागिता जैसे गुण पा कर राष्ट्र का निर्माण भी कर सकते हैं

बात व्यक्ति के निर्माण की हो या राष्ट्र के निर्माण की, कुछ खास तरह के गुणों के बिना यह संभव नहीं है। समर्पण, निष्ठा, ईमानदारी, सहभागिता, सेहत और खुशहाली - ये वो गुण हैं, जो एक इंसान को बेहतर इंसान और एक राष्ट्र को बेहतर राष्ट्र बनाते हैं। अब सवाल है कि इन गुणों का विकास कैसे किया जाए? शायद आप अचानक सहमत न हों, लेकिन यह सच है कि इन सभी गुणों के विकास के लिए कोई बहुत कठिन या जटिल काम करने की जरुरत नहीं है, बस जरुरत है खेलने की। कोई भी खेल जो घर के बाहर खेला जाता है, उससे इन गुणों को अपने अंदर विकसित किया जा सकता है। सद्गुरु जब आध्यात्मिक विकास की बात करते हैं, तो उनका मकसद हमें अपनी सीमाओं से ऊपर उठाने तथा हमारे अंदर समावेश और सहभागिता की भावना और खुशहाली लाने का होता है।

इन खूबियों को विकसित करने के लिए वे योगाभ्यास के साथ-साथ खेलने पर भी बहुत जोर देते हैं।  जब भी ‘खेल’ की बात होती है तो अधिकतर लोगों के मन में दो तरह के विचार आते हैं - पहला कि यह बच्चों की चीज है, और दूसरा कि यह समय की बर्बादी है। ऐसे समय में - जब अधिकतर लोग तनाव से ग्रस्त हैं, जब डिप्रेशन एक महामारी का रूप ले रहा है, जब नकारात्मक जीवन-शैलियां संक्रामक रोग की तरह फैल रही हैं, जब दुनिया के सबसे ज्यादा डायबिटीज के मरीज भारत में हैं - खेल पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। इसके लिए हमें अपने देश में खेल की संस्कृति बहाल करनी होगी। बच्चे तो वैसे भी खेलते रहते हैं, पर वयस्कों और बुजुर्गों को भी खेल को अपनी जीवन-शैली का हिस्सा बनाना होगा। हमें अपने शहर, गांव के हर मोहल्ले में खेल के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया करानी होंगी, जहां पुरुषों और स्त्रियों के खेलने के लिए अलग-अलग जगहें हों, ताकि परिवार का हर व्यक्ति मुक्त-भाव से खेल में हिस्सा ले सके।

अगर आप हर रोज नहीं खेल सकते, तो हफ्ते में कम से कम दो-तीन दिन जरूर खेलें। बस एक छोटा सा खेल आपको स्वस्थ व खुशहाल और आपके पारिवारिक व सामाजिक जीवन को खूबसूरत बना सकता है। सेहत और खुशहाली, इंसान के आध्यात्मिक विकास की दिशा में पहला कदम है। जो इंसान स्वस्थ और प्रसन्न होगा, वह जाने-अनजाने आध्यात्मिक हो जाएगा। ऐसे ही इंसान में जीवन को गहराई से जानने और जीवन के उच्चतर आयामों को तलाशने की प्यास जागती है। खेल की इस संस्कृति को विकसित करने के लिए सद्गुरु ने तमिलनाडु में एक शुरुआत की है। तमिलनाडु में ईशा फाउंडेशन द्वारा हर साल ‘ग्रामोत्सवम’ का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सभी बढ़-चढ़ कर खेलों में हिस्सा लेते हैं। क्या हम पूरे देश में इसी तरह से खेल का उत्सव नहीं मना सकते हैं?  यह अंक भी एक कोशिश है आपके जीवन को खेलों से जोडऩे की। तो आइए हम सब ले आएं अपने जीवन में कोई एक छोटा सा खेल और बदल डालें अपना जीवन! शुरु तो कीजिए खेलना!

-डॉ सरस

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