एक आजाद देश को अपना सिस्टम बनाना चाहिए था, लेकिन हमने अपने पुराने सिस्टम में बस बहुत थोड़ा सा बदलाव कर लिया। इसी वजह से कई मायनों में हमने खुद को पंगु बना लिया है। जो लोग हम पर बाहर से शासन करना चाहते थे, उन्होंने कुछ खास तरह का तंत्र व सिस्टम तैयार किया, क्योंकि वे हम पर अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते थे।

उसकी गाड़ी में बहुत सारे सामान होते हैं - एक हैंड गन से लेकर हथकड़ी तक सब चीजें होती हैं। वह सारे साजो-सामान से युक्त एक पुलिसवाले की तरह आता है, लेकिन वास्तव में वह एक इंजीनियर होता है।
एक आजाद देश को अपना सिस्टम बनाना चाहिए था, लेकिन हमने अपने पुराने सिस्टम में बस बहुत थोड़ा सा बदलाव कर लिया। यहां तक कि आज भी इस देश में अगर किसी बच्चे या बड़े की तरफ अचानक कोई पुलिस वाला बढ़ता है तो वे एकदम से डर जाते हैं। अगर कोई पुलिस वाला आए तो आपको तो आश्वस्त होना चाहिए, ‘ओह, यहां तो पुलिसवाला है, अब डरने की कोई बात नहीं।’ अगर पुलिस न हो तो आपको डरना चाहिए। लेकिन अधिकतर लोग आज भी पुलिस को आता देख डर जाते हैं। यह किसी और समय की बात है, जब किसी पुलिस वाले के आने का मतलब होता था कोई आपके साथ कुछ बुरा करने वाला है। अब होना यह चाहिए कि अगर पुलिसवाला आ रहा है तो इसका मतलब है कोई आपकी सुरक्षा के लिए आ रहा है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

गुलामी के दौर की चीज़ों को बदलना होगा

लेकिन अभी भी हम इस सोच को नहीं अपना पाए हैं। यह चीज आज भी हमारी मानसिकता में नहीं आती, क्योंकि गुलामी के दौर में हमने जिस सिस्टम का पालन किया, लगभग उन्हीं नियमों व तंत्र का हम अभी भी पालन कर रहे हैं। भले ही इनमें थोड़े बहुत बदलाव हुए हों, लेकिन जो बुनियादी बदलाव होने चाहिए थे, वे नहीं हुए- जैसे हमारा पुलिस बल कैसा होना चाहिए, हमारा प्रशासनिक बल कैसा होना चाहिए, हमारी राजनैतिक प्रणाली कैसे काम करनी चाहिए, जिन चीजों पर हमें जितना ध्यान देना चाहिए, वैसा ध्यान हमने नहीं दिया। अगर आपको पता ही नहीं होगा कि आपको कैसे सिस्टम की जरूरत है, आप कैसी गतिविधि संचालित करना चाहते हैं, और अगर आप गलत सिस्टम लागू कर देंगे तो आपकी गतिविधि अपंग होकर रह जाएगी। तो अगर आप गुलामी के दौर के सिस्टम को वैसे का वैसा अपनाते हैं, तो इसके पीछे कारण यह है कि ऐसा करना आपके लिए आसान है। चूंकि इसमें पहले से सारी चीजें तय होती हैं, इसलिए हम उन्हें जस का तस उठा लेते हैं। इसी वजह से कई मायनों में हमने खुद को पंगु बना लिया है। आजादी के सत्तर सालों बाद भी हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी के बेहद निचले स्तर पर है। हमारे पोषण का स्तर सबसे कम है। हम लोग बड़ी आबादी को पैदा करने में व्यस्त हैं। यह आबादी शरीर व दिमाग दोनों में ही कमतर है, इसकी वजह बस इतनी है कि कम उम्र में जो बुनियादी व जरूरी पोषण उन्हें मिलना चाहिए, वह उन्हें नहीं मिलता। अब सवाल है कि ये सिस्टम देश की प्रगति के लिए बना है या उसके पतन के लिए।

अपनी ही जमीन पर इमारत बनवाने के लिए सर्टिफिकेट

भारत के ज्यादातर राज्यों में ऐसा ही है, अगर हमें अपनी ही जमीन पर कोई इमारत बनानी है तो इसके लिए सोलह विभागों से एनओसी लेना पड़ता है। मुझे समझ नहीं आता कि अगर मैं पैसा लगा रहा हूं और देश में कुछ बना रहा हूं तो उसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? मेरा कुछ बनाना देश के निर्माण में योगदान ही तो होगा। आखिर इसमें सोलह अलग-अलग विभागों को आपत्ति क्यों है? वे मुझे दिशा-निर्देश दे सकते हैं कि कैसे इमारत बननी चाहिए। आखिर उन्हें क्या चीज यह अनुमान लगाने पर मजबूर करती है कि इस देश का हर नागरिक अपराधी है और तुम्हें उस पर नजर रखनी है? ऐसा लगता है कि हमने देश के हर नागरिक को एक अपराधी में बदल दिया है। मानो अगर आपने खुला छोड़ दिया तो वह कुछ गलत ही करेगा। आखिर ऐसा क्यों है?

अमेरिकी नियम बिलकुल अलग हैं

हम लोग अमेरिका में एक बहुत बड़ा केंद्र बना रहे हैं। वहां एक ‘आर्किटेक्चरल कोडबुक’ होता है। अगर आप एक इमारत बना रहे हैं तो आपको इस किताब व उसके नियमों के बारे में पता होना चाहिए। साथ ही, आपके आर्किटेक्ट को भी इस किताब की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। आपको बस इतना बताना होता है कि हम एक इमारत बना रहे हैं। फिर वहां कोई आकर देखने वाला नहीं होता। कोई अर्जी नहीं देनी होती। कुछ नहीं करना होता, बस इमारत बनानी होती है। जब आपकी इमारत बन जाती है तो आपको बताना होता है कि इमारत बन गई। उसके बाद एक आदमी एक एसयूवी में आता है। उसकी गाड़ी में बहुत सारे सामान होते हैं - एक हैंड गन से लेकर हथकड़ी तक सब चीजें होती हैं। वह सारे साजो-सामान से युक्त एक पुलिसवाले की तरह आता है, लेकिन वास्तव में वह एक इंजीनियर होता है। वह हर चीज की जांच पड़ताल करता है। अगर सब कुछ नियम के अनुसार बना है तो वह ‘ऑकुपेशन सर्टिफिकेट’ पर साइन करके चला जाता है, मतलब अब आप उस इमारत का इस्तेमाल कर सकते हैं। और अगर सब कुछ नियम के मुताबिक नहीं होता तो आपको हथकड़ी लगा कर उस एसयूवी में सैर कराई जाती है। आप जेल जाते हैं और इमारत गिरा दी जाती है। बस इतना ही होता है। अब आखिर अपने यहां इन सोलह विभागों को यह बताने की जरूरत क्यों होती है कि उन्हें आपत्ति है या नहीं है।

नियंत्रण करने से नहीं आज़ादी देने से प्रगति होगी

अगर यहां आप किसी चीज के लिए अर्जी दीजिए तो साढ़े चार साल तक वो आपको एनओसी ही नहीं देंगे और न ही वे यह बताएंगे कि उन्हें किस चीज पर आपत्ति है।

महात्मा गांधी इसलिए देश को बंद करना चाहते थे, क्योंकि हम पर किसी और का शासन था। अब हम अपने देश को ठप करना चाहते हैं! 
इसकी वजह है कि हम लोग परंपरागत तौर पर यह सोचते आए हैं कि लोगों पर नियंत्रण होना चाहिए। इस देश में व्यक्तिगत तौर पर इंसान की क्षमता, प्रतिभा, बुद्धि, कौशल को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, न कि उस पर किसी का नियंत्रण होना चाहिए। हमारी शिक्षा व्यवस्था से लेकर हमारी प्रशासनिक व्यवस्था तक ऐसी ही है। कई मायनों में हमारी राजनैतिक व्यवस्था भी ऐसी ही है। सारी बात लोगों पर नियंत्रण पर आकर खत्म होती है। उसकी वजह है कि हमने सिस्टम को सीधे गुलामी के दौर से ही लिया है, उसके बाद हम आलस में उसी रास्ते पर आगे घिसटते गए। इस दिशा में हमें जो करना चाहिए था, वह हमने नहीं किया। हमें एक व्यवस्थित तरीके से काम करना चाहिए था, जहां यह देखना चाहिए था कि सिस्टम ऐसे हों, जो कामयाबी, उर्जा व उत्साह से भरे नए देश को दिशा दे सकें। चूंकि हम गुलाम थे, इसलिए हम पर शासन करने वाले लोग चाहते थे कि स्थिति वैसी ही बनी रहे, कुछ भी नहीं बदले। अक्सर न बदलने वाली चीजों को संभालना आसान भी होता है। जो चीज बहुत ज्यादा गतिशील और प्रभावशाली होती है, उसे संभालना बहुत मुश्किल होता है।

सिर्फ अतीत में बंद का एलान मायने रखता था

इसलिए हम अभी भी उसी मोड में हैं, उसी गियर में खुद को चलाए जा रहे हैं। अगर कोई बदलाव होता है तो लोगों को लगने लगता है कि कुछ गलत हो रहा है। अगर हमें सही अर्थों में एक राष्ट्र बनना है तो इस स्थिति को बदलना होगा। लेकिन अतीत का साया अभी भी हम पर कायम है, अभी भी राज्य सरकारें उसी ढर्रे पर चल रही हैं। वे लोग अभी भी बंद का एलान कर रहे हैं। महात्मा गांधी इसलिए देश को बंद करना चाहते थे, क्योंकि हम पर किसी और का शासन था। अब हम अपने देश को ठप करना चाहते हैं! यह चीज आखिर कहां से आई? आखिर वो क्या चीज है, जिसने आपको अपने ही देश को बंद करने का फैसला लेने पर मजबूर किया? तब हम लोग उनके जीवन में मुश्किलें पैदा करने के लिए देश को बंद करने का फैसला लेते थे। आज आप किसलिए इसे बंद कर रहे हैं? क्या अपनी ही जिंदगी को बदहाल बनाने के लिए? तो अतीत का यह साया अभी भी हमारे साथ है। अगर एक नया देश बनाना है तो हमे इन चीजों को बदलना होगा।