जो इंसान ध्वनि की संपूर्णता का अनुभव नहीं कर पाता, उसके लिए हर ध्‍वनि एक शोर है, क्योंकि वह उसे टुकड़ों में सुनता है। जो अस्तित्व की संपूर्णता को सुनता है, उसके लिए सब कुछ संगीत है। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो संगीत न हो।

सद्‌गुरुसद्‌गुरु: योग के एक आयाम में, मनुष्य के शरीर को ‘शिव का डमरू’ कहा गया है। शिव के हाथ में हमेशा एक डमरू होता है, क्योंकि वह जीवन की लय और ताल का प्रतीक है। जब आप दौड़ते हैं या फिर उत्तेजित या डरे हुए होते हैं, तो आपके सिर में “धन, धन, धन” की आवाज आपको सुनाई देती है।

हर छोटी से छोटी ध्वनि का एक खास असर होता है। अगर आप एक खास किस्म की आवाज सुनें, तो आप प्रेम से भर जाएंगे। कोई दूसरी आवाज आपको खुशी से भर सकती है। ध्वनियां सिर्फ भावनाएं ही नहीं पैदा करतीं, वे आपके शरीर का रसायन भी बदल देती हैं।
 यह शरीर का ताल है। शरीर की ताल सिर्फ दिल की धड़कन में नहीं है, यह तो शरीर के रग-रग में और नस-नस में है। हर तंतु की, हर नाड़ी की एक अपनी धुन होती है। हर चक्र की एक अपनी खास ध्वनि होती है। ध्वनि और रूप दो अलग-अलग बातें नहीं हैं। ध्वनि और शरीर का एक पूरा विज्ञान है, जो समझाता है कि विभिन्न ध्वनियों के उच्चारण से या विभिन्न ध्वनियों के प्रभाव-क्षेत्र में होने से शरीर पर क्या असर पड़ता है।

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हर छोटी से छोटी ध्वनि का एक खास असर होता है। अगर आप एक खास किस्म की आवाज सुनें, तो आप प्रेम से भर जाएंगे। कोई दूसरी आवाज आपको खुशी से भर सकती है। कोई अलग तरह की ध्वनि आपको गुस्सा दिलाती है। ध्वनियां सिर्फ भावनाएं ही नहीं पैदा करतीं, वे आपके शरीर का रसायन भी बदल देती हैं। इसलिए जिस तरह की आवाज आप सुनते हैं, और जिस तरह की ध्वनि आप पैदा करते हैं, वह आपके ऊपर कई तरह के असर डालती है।

जिसे आप संगीत कहते हैं, वह ध्वनियों की एक सुंदर व्यवस्था है। संगीत इस धरती की हर सभ्यता में मौजूद रहा है और हमेशा आध्यात्मिक-प्रक्रिया का एक सोपान रहा है। खास तौर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत आपको सृष्टि की सैर करा सकता है और एक सीमा के बाद सृष्टिकर्ता से आपका संपर्क भी करवा सकता है। भारतीय संस्कृति में, संगीत, नृत्य या और जो कुछ भी आपने किया, वह सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं था, वह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया भी थी।

कहा जाता है कि तानसेन जब गाते थे, तो उनके संगीत से दीपक जल उठते थे। यह हकीकत भी हो सकती है। उन्होंने असल में ऐसा किया था या नहीं, यह हम नहीं जानते लेकिन अगर आप विज्ञान की नजर से इसे देखें, तो यह संभव है कि ध्वनि ऐसे करामात कर दे।
शास्त्रीय संगीत में ध्वनि का जिस तरीके से इस्तेमाल किया जाता है- तरह-तरह के राग और सुर, उनमें अगर आप गहराई तक उतरें तो वह आपको ध्यान में ले जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत ने गणितीय शुद्धता की हद तक बिल्‍कुल ठीक-ठीक यह पहचाना है कि कौन सी ध्वनि क्या असर कर सकती है। अगर आप ध्वनियों का इस्तेमाल करना जानते हैं, तो ध्वनियों की एक सही व्यवस्था, लोगों पर और स्थितियों पर जबरदस्त रूप से काम कर सकती है। संगीत के ऐसे बहुत से विद्वान हुए हैं, जो इस बात का अनुभव कर चुके हैं।

भारत में कई संगीतकारों के बारे में तरह-तरह की कहानियां और किंवदंतियां हैं। उन मशहूर कहानियों में से एक तानसेन की है। कहा जाता है कि तानसेन जब गाते थे, तो उनके संगीत से दीपक जल उठते थे। संभव है कि यह अतिशयोक्ति न हो। यह हकीकत भी हो सकती है। उन्होंने असल में ऐसा किया था या नहीं, यह हम नहीं जानते लेकिन अगर आप विज्ञान की नजर से इसे देखें, तो यह संभव है कि ध्वनि ऐसे करामात कर दे, जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। सम्यमा जैसे हमारे कार्यक्रमों में, सिर्फ एक उच्चारण “शिव” लोगों को अनुभव के एक बिल्कुल अलग आयाम में ले जा सकता है। आपके अपने अनुभव में भी, अगर आप वाकई संगीत पसंद करते हैं, चाहे वह सिनेमा का संगीत हो या शास्त्रीय या कोई और, संगीत कई द्वार खोलता है। और अगर आप सुन सकें, तो पूरा अस्तित्व सिर्फ संगीत है।

आज आधुनिक विज्ञान पूरी सृष्टि को एक कंपन के रूप में देखता है। जहां भी कंपन होगा, वहां ध्वनि होगी ही। इसलिए पूरी सृष्टि ध्वनियों का एक जटिल संगम है। अगर आप एक खास रूप में इन ध्वनियों को सुनें, तो वह एक भयानक शोर-शराबा है। अगर आप दूसरे तरीके से उसे सुनें, तो वह अद्भुत संगीत है। जो इंसान ध्वनि की संपूर्णता का अनुभव नहीं कर पाता, उसके लिए वह शोर है क्योंकि वह टुकड़ों में उसे सुनता है। जो अस्तित्व की संपूर्णता को सुनता है, उसके लिए सब कुछ संगीत है। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो संगीत न हो।

इस वर्ष ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर में यक्ष कार्यक्रम का आयोजन 4 और 6 मार्च  के बीच किया जाएगा जिसमें भारत के कुछ महानतम कलाकारों द्वारा संगीत कॉन्सर्ट और नृत्य प्रस्तुत किए जाएंगे। इनमें से प्रत्येक दिन अपने-आप में सांस्कृतिक और समकालीन कलाओं का एक उत्कृष्ट मिश्रण होगा जिसमें कर्णाटक अैर हिन्दुस्तानी शैलियों के गायकों से लेकर बांसूरी, तबला और सरोद समेत अन्य यंत्रों के वादक तथा भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्यों समेत दुनिया भर के लोक-कलाकार अपना प्रदर्शन करेंगे।