सद्गुरु बहुत बार हमसे कहते हैं – “ज्यादातर समय आप जिंदगी के बारे में सोच रहे होते हैं, जिंदगी जी नहीं रहे होते”। हम अपनी जिंदगी को देखें तो यह बिलकुल सच लगता है। हम अपना ज्यादा समय बीते हुए कल के बारे में सोचते हुए या फिर आने वाले कल के बारे में चिंता करते हुए बिताते हैं। हिंदी भाषा में 'कल' शब्द आने वाले और बीते हुए कल - दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि दोनों का ही अस्तित्व नहीं है, अस्तित्व तो केवल इस पल का है।
'कल' शब्द के सुन्दर प्रयोग से काल्पनिक 'कल' में डूबे मन के असमंजस की स्थिति को इस गाने में बखूबी व्यक्त किया गया है। हम आपको इस गाने के बारे में और भी बहुत सारी बाते बता सकते हैं, लेकिन उसके लिए आपको इन्तजार करना पड़ेगा ... कल का!
कल जिसको कल कहता था
कल को कल बन जाए रे
पल कल कल बह जाए रे
इस पल को तू बल दे दे
कल मत कहना हाय रे
कल कल की यादें तेरी
इस पल का बस साया हैं
कल कल की बातें तेरी
तेरे मन की माया है
बस इस पल को तू जी ले
पल कल कल पे छाये रे
कल मन बेकल होता था
पर कल तक तब सोता था
अब मन बेकल होता है,
काहे को तू सोता है
यह छल तज तू पल जी ले
आज को कल आ जाए रे