याद्दाश्त से पूरी तरह से मुक्त चीज़

ऐसी कोई भी चीज जो स्मृति(याद्दाश्त) के जमा करने से बन सकती है, स्मृति(याद्दाश्त) तक पहुंचकर बनाई जा सकती है, इस स्मृति के विश्लेषण से बन सकती है, और इस स्मृति की अभिव्यक्ति बन सकती है, हर वो चीज जो आप अपनी समझ या बुद्धि से फिलहाल कर रहे हैं – जिस बुद्धि को आप अपने रूप देख या सोच रहे हैं, वो सब कुछ किसी न किसी बिंदु पर आकर किसी मशीन द्वारा किया जा सकता है। लेकिन इंसान के भीतर बुद्धि का एक दूसरा आयाम भी है, जिसे हम चित्त के रूप में जानते हैं। चित्त बुद्धि का वो आयाम है, जहां स्मृति का एक कण या अंशमात्र भी नहीं होता। यह आयाम स्मृति से पूरी तरह से अछूता होता है। आज आप जैसे भी और जो भी हैं, वो सब स्मृतियों की ही देन है। अगर आप एक मानव स्वरूप में हैं तो यह विकासात्मक(कीड़ों और जानवरों से मनुष्य तक का विकास) स्मृति है। इसके अलावा, आपके पास दूसरी कई तरह की स्मृतियां होंगी, जिसने आपको एक खास तरह का इंसान बनाया और इसके अलावा कई ऐसी चीजें तय कीं, जो आज आप में हैं। आपका पेशा, आप की क्षमताएं, आपकी जानकारी व ज्ञान - हर चीज स्मृति की देन है। लेकिन स्मृति एक सीमाओं में बाँधने वाली रेखा भी है। जिस पल ही आप अपनी स्मृति से पहचान स्थापित करते हैं, आप कहते हैं - ‘अरे यह तो मेरा दोस्त है।’ ‘इस दूसरे को मैं नहीं जानता।’ ‘इस व्यक्ति को मैं पसंद करता हूं।’ ‘यह व्यक्ति मुझे अच्छा नहीं लगता।’ आपकी यह सारी सोच स्मृतियों(याद्दाश्तों) पर आधारित है।

स्मृति आपके जीवन में एक परिभाषा और एक निर्धारक सीमा रेखा तय करती है। यह स्मृतियों की वजह से ही है कि मैं यह जानता हूं कि ‘यह मैं हूं’ और ‘यह आप हैं’। लेकिन बुद्धि का एक और आयाम होता है जिसे हम चित्त कहते हैं या फिर हम इससे आधुनिक शब्दावली में, एक अर्थ में, ‘कांशियनेस’ भी कह सकते हैं। जिस तरह से हम और आप फिलहाल सचेतन हैं, वह सिर्फ जागृति है, चेतना नहीं। तो बुद्धि के इस आयाम में स्मृति का कोई अंश नहीं होता। जहां कोई स्मृति ही नहीं होगी तो वहां कोई सीमा रेखा भी नहीं होगी। फिलहाल नब्बे या उससे भी ज्यादा प्रतिशत मानवता अपने भौतिक या बौद्धिक क्षमताओं के सहारे जी रही है। इन चीज़ों को किसी बिंदु पर विकसित किया जा सकता, और ये दिखने में वास्तविक लग सकती हैं।

एक दिन आएगा जब हम गहराई में उतरना चाहेंगे

एक बार आपके सारे काम मशीनें करना शुरू कर दें तो फिर आपके लिए अपने अस्तित्व के भीतरी आयामों की खोज शुरू करना जरुरी हो जाएगा।

एक बार आपके सारे काम मशीनें करना शुरू कर दें तो फिर आपके लिए अपने अस्तित्व के भीतरी आयामों की खोज शुरू करना जरुरी हो जाएगा।
हो सकता है कि आज से 500 साल पहले अगर आप अपने इलाके या शहर के बड़े आदमी बनना चाहते हों तो आपको बलिष्ठ होना होता, या फिर एक मजबूत बाहुबली होना होता। लेकिन अगर आज आपके पास मजबूत भुजाएं होंगी तो हम आपको सेवक या चाकर का काम ही देंगे। आज लोग आपके बल को उस तरह नहीं पहचानते। आज अगर दुनिया में महिलाएं ठीक-ठाक तरीके से बराबरी की जगह पा रही हैं तो उसकी एक वजह तकनीक है, क्योंकि तकनीक ने भुजाओं की शक्ति को बेअसर कर दिया है। आपके पास जितनी बौद्धिक ताकत है, वही आज चीजों को निर्धारित कर रही है। लेकिन यह बौद्धिक ताकत अगर मशीनें ले लें, तो स्वाभाविक सी बात है कि इंसान अपनी चेतना को लेकर गहराई में उतरने की कोशिश करेगा। एक मशीन कभी भी गहराई में नहीं जा सकती।

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आज आप जो कुछ भी कर सकते हैं, भविष्य में वो सब मशीनें कर सकती हैं। और वो दिन अपने आप में एक महान और खास दिन होगा, क्योंकि इसका सीधा सा मतलब है कि हम लोग छुट्टी पर है। तब हमें जीने के लिए काम नहीं करना होगा। तब हम जीवन को बिलकुल एक अलग अंदाज में देखेंगे, जो अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण होगा। वास्तव में पहली बार हम लोग इंसान बनेंगे। हमें यह समझना बहुत जरूरी है कि हम इंसान क्यों कहलाते हैं, इसका मतलब है कि हम इस धरती के एकमात्र ऐसे प्राणी हैं, जो यह जानता है कि हमें कैसा होना चाहिए। बिना एक सामाजिक परिवेश(माहौल) के आपमें से कई लोग यह नहीं जान पाएंगे कि कैसे जिया जाए या जीवन- यापन किया जाए। एक बग या कीड़ा भी आपसे बेहतर तरीके से यह जानता है कि कैसे जिया जाए, क्योंकि वह पूरी तरह से जीवन जीने को लेकर केंद्रित होता है। लेकिन वह कीड़ा यह नहीं जानता कि कैसे सचेतन हुआ जाए। बेशक आप एक कीड़े या बग का निमार्ण कर सकते हैं। यह बेहद रोचक है कि आज की कंप्यूटर तकनीक के दौर में हम लोग इस तरह के शब्दों का इस्तेामल कर रहे हैं- ‘वह एक बग है।’ ‘यह एक वाइरस है।’

भीतरी कल्याण में निवेश करना होगा

निश्चित तौर पर इसके खतरे भी हैं और ये खतरे वैसे ही हैं, जो आज मशीनों के चलते दूसरी जगह बने हुए हैं। उदाहरण के लिए, आज युद्ध की अपेक्षा ऑटोमोबाइल के चलते हर साल लोगों की मौत कहीं ज्यादा हो रही है। लेकिन हमने इस खतरे को सुविधा के साथ आने वाले खतरे की तरह स्वीकार कर लिया है। इसके चलते हम लोग पहले की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से सफर कर सकते हैं, इसलिए कुछ लोग तो मरेंगे ही। हम लोग अब इन शर्तों को स्वीकार कर चुके हैं। तो इसी तरह से हो सकता है कि हम लोग सूक्ष्म या नैनो सैनिक रखें। वो सैनिक इंसान नहीं होंगे, जो जाकर युद्ध करेंगे। हम यहां बैठकर इन्हें दूसरे लोगों के ऊपर छोड़ देंगे। हालांकि तब चीजें भयंकर होंगी, लेकिन अभी भी चीजें भयानक ही हैं। आप यहां बैठकर बस एक बटन दबाकर कहीं भी एक पूरा शहर तहस-नहस कर सकते हैं। जैसे जैसे ये तकनीकी क्षमताएं आ रही हैं, वैसे हमें भी इंसानों को बेहतर बनाने की कोशिश अवश्य करनी चाहिए, जिससे वे अपनी समझ या तर्क-बुद्धि के सीमित दायरे से परे निकलकर विवेक या समझ के उस गहरे आयाम तक पहुंच सके, जो अपने आप में जीवन है। जो अपने आप में हमारे भीतर के जीवन का स्रोत है।

अगर किसी चीज के होने की जरूरत है तो इसके लिए एक खास मात्रा में मानव ऊर्जा, समय और साधनों को इस ओर लगाना होगा। इसलिए हमें चेतना की ओर निवेश करने की जरूरत है। अभी तक हम लोग सिर्फ जीवन जीने के लिए अपने संसाधनों का निवेश करते रहे हैं। लेकिन एक बार वे तमाम तकनीकें, जिनके बारे में वे लोग बात करते हैं, साकार हो जाती हैं, तब जीवन-यापन(अपने जीवन को चलाना/आजीविका) कोई मुद्दा ही नहीं रहेगा। जब जीवन कोई मुद्दा नहीं होगा तो हम निश्चित तौर पर इस ओर निवेश करना शुरू करेंगे। जितनी जल्दी और कम भटके हम इस दिशा में निवेश शुरू करेंगे, उतना ही हम नई संभावनाओं की ओर बढ़ेंगे। यह हमेशा दोधारी तलवार है। अब आप किसी भी तरह से इस तलवार का इस्तेमाल करते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आप कौन हैं। आप अपनी पहचान में सभी को शामिल करते हैं, या खुद को सबसे अलग मानते हैं – यही चीज़ तय करेगी की तलवार किस ओर घूमेगी।

भीतरी तकनीक को समझने का समय आ गया है

अब समय आ गया है कि हम उस आवाज़ को, जिसे एक आयामविहीन और सीमाविहीन चेतना कहा गया है, सुनें और उस विधियों को जानें जिनसे चेतन बना जा सकता है।

अब समय आ गया है कि अपने भीतरी कल्याण पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि हम पहले ही उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां तकनीक आसमान की ओर निकल गई है और हम लोग उसकी बराबरी नहीं कर पा रहे हैं।
जिस तरह से आज हमारे सामने अपने माहौल को बेहतर बनाने और उनकी भलाई से जुड़ी तकनीक मौजूद है, वैसे ही हमारे सामने ऐसा विज्ञान व तकनीक भी मौजूद है कि कैसे हम अपने भीतर के परिवेश(माहौल) को भी बेहतर बना सकते हैं। यह कोई आज की चीज नहीं है, यह हमेशा से यहां रही है। यह विज्ञान व तकनीक भी उतनी ही पुरानी है, जितनी मानवता। लेकिन कुछ पीढ़ियों में इसकी आवाज को जोरदार तरीके से सुना गया, जबकि कुछ पीढ़ियों में यह सिमटकर रह गई। और फिर उसी हिसाब से मानव कल्याण कभी उठान पर रहा तो कभी सीमित हो कर रह गया। किसी भी तरह की तकनीक के बावजूद अगर आप यह नहीं जानते कि कैसे रहा जाए तो अभी भी आप ठीक नहीं हैं।

आज आप हमारी व अपनी हालत देख लीजिए। एक पीढ़ी के तौर पर जितनी ज्यादा सुविधाएं और आराम हैं, उतना आज से पहले मानवता के इतिहास में किसी और पीढ़ी ने शायद ही कभी देखा या जाना हो। लेकिन क्या आप यह दावा कर सकते हैं कि आपकी पीढ़ी अब तक की सबसे खुशहाल और शानदार पीढ़ी है? नहीं। आज लोग विक्षिप्त(मानसिक रूप से बीमार) हो रहे हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमारी पीढ़ी किसी और पीढ़ी से ज्यादा खराब है, लेकिन हम लोग उनसे पूर्ण रूप से बेहतर भी नहीं हैं, खासकर के तब जब हम जो पाना चाहते हैं, उसे पाने की चाहत में हमने किस कदर जीवन के अन्य रूपों को नुक्सान पहुंचाया है। आप की तकनीकें आराम और सुविधाएं तो दे सकती हैं, लेकिन यह बेहतरी या कल्याण नहीं कर सकती। अब समय आ गया है कि अपने भीतरी कल्याण पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि हम पहले ही उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां तकनीक आसमान की ओर निकल गई है और हम लोग उसकी बराबरी नहीं कर पा रहे हैं। फिलहाल आपकी बेहतरी इससे तय हो रही है कि आपके आसपास क्या है, इससे तय नहीं हो रही कि आपके भीतर क्या है।

मन और शरीर – दोनों को आपका कहा मानना चाहिए

इसका यह मतलब नहीं है - अपने पड़ोसी से प्रेम करो। आप ऐसे बनें, एक अच्छे इंसान बनें, एक सज्जन इंसान बनें - यह उसके बारे में नहीं है। आपके शरीर व आपके मन को आपसे निर्देश लेना चाहिए। अगर आपका शरीर और आपका मन आपका कहा मानते तो क्या आप अपने जीवन के हर पल में खुद को सेहतमंद और आनंदमय बनाना चाहेंगे? अगर आपके सामने कोई विकल्प है तो निश्चित तौर पर ऐसा करना चाहेंगे। जाहिर सी बात है कि फिलहाल आपका शरीर और आपका मन आप से निर्देश नहीं ले रहे। इसका मतलब है कि आप पर्याप्त रूप से चेतन नहीं है। इसलिए हमें इस दिशा में निवेश करना होगा।

एक ऐसी जगह में निवेश – जहां ध्यान हो सके

अगर आप इस शहर में घूमें तो मुझे विश्वास है कि आपको यहां अस्पताल, स्कूल, टॉयलेट जैसी हर चीज मिलेगी। लेकिन आपके पास क्या ऐसी कोई जगह है, जहां लोग ध्यान लगा सकें? यहां ऐसी कोई जगह या चीज नहीं है। अतीत में दुनिया के पूर्वी समाजों ने इस दिशा में काफी भारी निवेश किया था। आज वे लोग भी पश्चिमी दुनिया का अंधानुकरण(बिना सोचे समझे वैसा बनने की कोशिश) कर उनसे प्रतिस्पर्धा(होड़) करने लगे हैं, लेकिन इस कोशिश में वह अपनी इस खूबी को खो रहे हैं। लेकिन आने वाले बीस से पच्चीस सालों में भीतरी कल्याण की चाहत व जरूरत बहुत मजबूत हो जाएगी। आज आप जो भी कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर काम जब तकनीक करने लगेगी और आपको पता ही नहीं होगा कि आप जिंदा क्यों हैं तब भीतरी कल्याण की जरूरत बेहद मजबूती से सामने आएगी। अगर हम उस दिन के लिए खुद को तैयार करना चाहते हैं तो यह बेहद जरूरी है कि हम भौतिक ढांचे व मानव ढांचे दोनों में ही खासा निवेश करें, जो पूरी तरह से हमारे भीतरी आयाम पर केंद्रित हो कि हम कौन हैं।

तकनीक के इस दौर में आपका स्वागत है। चेतना के उदय के इस दौर में आपका स्वागत है। आइए हम इसे साकार कर दिखाएं।

प्रेम व प्रसाद,