अक्टूबर के महीने को पूरी दुनिया में स्तन कैंसर जागरुकता माह के रूप में मनाया जाता है। इस पूरे महीने स्तन कैंसर के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जाते हैं। साथ ही, इस बीमारी से संबंधित शोध और इसके निदान व इलाज के लिए धन भी इकट्ठा किया जाता है।

विकिपीडिया में दी गई जानकारी के मुताबिक, स्तन कैंसर की शुरुआत स्तन के ऊतकों यानी टिश्यू से होती है। आमतौर पर इसकी शुरुआत दुग्ध-नलिकाओं की अंदरूनी परत या नलिकाओं को दूध पहुंचाने वाले हिस्से से होती है।

पूरी दुनिया में महिलाओं में जो भी कैंसर के मामले हैं, उनमें से लगभग 23 फीसदी स्तन से संबंधित हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी ने सन 2013 में महिलाओं में स्तन कैंसर के दो लाख से भी अधिक नए मामले दर्ज किए। इस रोग की वजह से मरने वाली महिलाओं की संख्यास लगभग चालीस हजार थी। स्तन कैंसर के मामले में सबसे ज्यादा खतरनाक कारक जीवन शैली से जुड़े हैं, जैसे शारीरिक रूप से सक्रिय न होना, धूम्रपान, खानपान की गलत आदतें, मोटापा, हॉर्मोंस का उच्च स्तर, बच्चे पैदा न करना या स्तनपान न कराना।

स्तन कैंसर पर चल रहे जागरुकता अभियान में योगदान देने के लिए हम इस विषय पर सद्‌गुरु के विचार पेश कर रहे हैं। कैंसर के लिए योगिक सिस्टम का क्या नजरिया है, और इस बीमारी से बचने के लिए क्या किया जा सकता है, इस बारे में सद्‌गुरु विस्तार से बताते हैं:

कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाएं हम सभी के शरीर में मौजूद होती हैं। योगिक सिस्टम में हम कैंसर-कोशिकाओं को समाज में मौजूद अपराधी तत्वों की तरह देखते हैं। अगर यहां-वहां कुछ लोग छोटे-मोटे अपराध कर रहे हैं, तो समाज पर इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब ये अपराधी मिलकर किसी खास जगह कोई गुट या गैंग बना लेते है, तो ज्यादा गड़बड़ी फैलने लगती है। इसी तरह आपके शरीर में मौजूद थोड़ी बहुत कैंसर-कोशिकाएं आपकी सेहत या जीवन को प्रभावित नहीं करतीं। योग में आमतौर पर हम इसे कुछ इस तरह समझते हैं - कभी-कभी हमारे ऊर्जा-शरीर में कुछ खास तरह के ब्लैंक (खाली जगहें) बन जाते हैं, जिसकी वजह से कैंसर-कोशिकाओं को बढऩे के लिए शरीर के अंदर अनुकूल माहौल मिल जाता है। ऊर्जा-शरीर में ब्लैंक बनने का कारण होता है- व्यक्ति का नजरिया, खानपान, जीवनशैली आदि। इस तरह अगर शरीर के किसी खास हिस्से में ऊर्जा का प्रवाह ठीक नहीं है, तो उस हिस्से को कैंसर-कोशिकाएं अपने छिपने के लिए चुन लेती हैं और उसका नुकसान करना शुरु कर देती हैं।

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सद्‌गुरु:
 अगर यहां-वहां कुछ लोग छोटे-मोटे अपराध कर रहे हैं, तो समाज पर इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब ये अपराधी मिलकर किसी खास जगह कोई गुट या गैंग बना लेते है, तो ज्यादा गड़बड़ी फैलने लगती है।

आजकल स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, खासकर उस तरह के समाज में जहां बहुत सारी महिलाएं कभी गर्भधारण ही नहीं करतीं। ये अच्छी बात है कि वे दुनिया के लिए कुछ अच्छा कर रही हैं। लेकिन अगर उनके बच्चे हों भी, तो भी आज के युग में महिलाएं एक या दो बार ही मां बनती हैं और यह एक खास उम्र से पहले ही पूरा हो जाता है। लेकिन उनमें अगले पंद्रह-बीस सालों तक मां बनने की क्षमता बनी रहती है। गर्भधारण के लिए जरूरी हॉर्मोंस भी उनके शरीर में बनते रहते हैं, लेकिन उनका कोई इस्तेमाल नहीं होता है। महिलाओं में होने वाले स्तन और गर्भाशय के कैंसर की सबसे अहम वजह यही है। बच्चे को दूध पिलाने के मकसद से प्रकृति ने स्तन की रचना की है। स्तन का काम बच्चे को दूध पिलाने का है, जो कि या तो बिल्कुल नहीं हो रहा या बहुत कम उम्र तक ही हो रहा है। अगर कोई महिला गर्भधारण की सामान्य प्रक्रिया से होकर गुजरती, यानी 18 साल की उम्र से 45 साल की उम्र तक यह प्रक्रिया चलती, तो हर थोड़े समय के बाद वह गर्भधारण करती रहती, जिससे उसका पूरा सिस्टम सक्रिय रहता और ऊर्जा का प्रवाह ठीक बना रहता। चूंकि आज के जमाने में शरीर के इस अंग का वैसे इस्तेमाल नहीं हो पाता, जिस तरीके से शारीरिक तौर पर होना चाहिए, इसलिए शरीर के इस अंग में ऊर्जा का प्रवाह कम हो जाता है। शरीर के ऐसे हिस्से हमेशा कैंसर-कोशिकाओं को आकर्षित करते हैं। ऐसे अंग इन कोशिकाओं के जमा होने का अड्डा बन जाते हैं और इकट्ठे होकर ये अपना काम करने लगते हैं।

तो क्या इस बात का मतलब यह हुआ कि हमें ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए? नहीं, ऐसा बिल्कुल न करें। इससे निपटने के दूसरे तरीके भी हैं।

अपने सिस्टम में कैंसर-कोशिकाओं की संख्याक को घटाने के सबसे आसान तरीकों में से एक है - उपवास। दरअसल, इन कोशिकाओं को सामान्य कोशिकाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा भोजन की आवश्यकता होती है। इन्हें करीब तीस फीसदी ज्यादा भोजन चाहिए। अगर किसी दिन आप भोजन से परहेज करेंगे, तो अपने आप ही इन कोशिकाओं के स्तर में कमी आनी शुरू हो जाएगी।

कुछ खास तरह की साधना भी है जिसका अभ्‍यास करके आप अपने शरीर के भीतर हॉर्मोंस के स्राव को काबू में रख सकते हैं। हम 'शक्ति चलन क्रिया’ और कुछ आसन सिखाते हैं, जिनसे पूरे सिस्टम को ठीक और संतुलित किया जा सकता है। बहुत सी औरतों को गर्भाशय से संबंधित समस्या थी, जैसे कि पॉलीसिस्टिक-ओवरीज यानी अंडाशय में गांठ।हमनें ऐसी महिलाओं को कुछ खास क्रियाओं और आसनों के अभ्‍यास से पूरी तरह ठीक होते देखा है। इतना ही नहीं, इससे आपके शरीर के भीतर मौजूद हॉर्मोंस आपके काबू में रहते हैं, अब यह आपके भोजन और आपके रहने के माहौल पर ही निर्भर नहीं रह जाता।

कैंसर से पीडि़त मरीजों की योग-अभ्यास ने कितनी मदद की है, इसका कोई सबूत या आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन यह जरूर देखने में आया है कि ऐसे मरीजों को इन अभ्‍यासों से काफी फायदा हुआ है। कैंसर के वैसे मरीजों ने कीमोथेरेपी के प्रति जिस तरह की प्रतिक्रिया दी, उससे उनका इलाज करने वाले डॉक्टर भी हैरान रह गए। कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जब कीमोथेरपी के बाद मरीजों ने योगाभ्यास किया और बड़ी तेजी से ठीक हुए। उनका कैंसर योग-अभ्यास की वजह से ठीक हुआ, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि मेडिकल इलाज के साथ-साथ योग-अभ्यास करने से मरीज को निश्चय ही फायदा हो सकता है।

स्रोत:  ईशा लहर,  अक्‍टूबर 2013