सद्‌गुरुमहाभारत श्रृंखला के पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि गुरु द्रोणाचार्य अपने बचपन के मित्र महाराज द्रुपद के पास उनके राज्य का हिस्सा मांगने गए, पर द्रुपद ने उन्हें अपमानित किया। द्रोण ने इसका बदला द्रुपद को कैदी बनाकर लिया, और तब द्रुपद ने इसका जवाब देने के लिए भगवान शिव से वरदान माँगा। उसे वरदान में एक पुत्री शिखंडी के प्राप्ति हुई। पढ़ते हैं ये कथा...

द्रोणाचार्य पांडवों और कौरवों को तैयार करने लगे

द्रोण ने कसम खाई कि वे द्रुपद के हाथों मिले अपमान का बदला जरुर लेंगे। उन्होंने परशुराम से अस्त्र प्राप्त किए और हस्तिनापुर आ कर, कौरवों और पांडवों को युद्ध कला सिखाने लगे।

आम लोगों के हाथों परास्त कौरव अपमानित हो कर लौट गए। तब द्रोण ने अर्जुन से कहा, ‘यह गुंरु दक्षिणा तुम्हें देनी होगी। जाओ, जा कर द्रुपद को ले कर आओ।’
वे लोग अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद गुरुदक्षिणा देने के लिए उत्सुक थे। द्रोण ने उन्हें सबसे पहले यही कहा कि वे द्रुपद को उनके सामने ला कर खड़ा करें। कौरव और पांडव राजकुमारों ने बस इसी कारण पांचाल देश की राजधानी कांपिल्य पर हमला कर दिया।
हमले के लिए पहले कौरव राजकुमार गए और पांडव पीछे रूक कर देखते रहे। द्रुपद की सेना बिल्कुल तैयार नहीं थी। सभी इस हमले से चैंक गए, क्योंकि इस हमले का कोई स्पष्ट कारण वे समझ नहीं पा रहे थे। लेकिन जैसे ही उन्हें हमले का अहसास हुआ आम नागरिकों भी अपने घरों से मिलने वाले चाकू, कड़छीए लाठियाँ और जो कुछ भी हाथ आया, उसी के साथ लड़ने आ गए। उन्होंने कौरवों से लड़ाई की और उन्हें पीट कर वापिस भेज दिया। आम लोगों के हाथों परास्त कौरव अपमानित हो कर लौट गए। तब द्रोण ने अर्जुन से कहा, ‘यह गुंरु दक्षिणा तुम्हें देनी होगी। जाओ, जा कर द्रुपद को ले कर आओ।’

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भीम और अर्जुन ने द्रोण को बंधी बनाया

भीम और अर्जुन चुपचाप शहर में प्रवेश कर गए, उन्होंने द्रुपद को पकड़ कर बाँधा और उन्हें ले जा कर द्रोण के चरणों में डाल दिया। जैसे ही दु्रपद ने द्रोण को देखा तो वे जान गए कि वे युवक द्रोण के कहने से ही उन्हें बांध कर लाए हैं।

भीम और अर्जुन चुपचाप शहर में प्रवेश कर गए, उन्होंने दु्रपद को पकड़ कर बाँधा और उन्हें ले जा कर द्रोण के चरणों में डाल दिया।
एक महान योद्धा द्रोण के चरणों में कैदी बना पड़ा था। तब द्रोण ने कहा, ‘अब हम आपस में कुछ बाँटने की बात नहीं कर सकते क्योंकि हमारे स्तर समान नहीं रहे। तुम मेरे आगे गुलाम की तरह पड़े हो। तुम मुझे गुरु दक्षिणा के उपहार के तौर पर मिले हो। मैं तुम्हारे साथ जो जी चाहे कर सकता हूँ। लेकिन मैं तुम्हारा मित्र रहा हूँ इसलिए मैं तुम्हारे प्राण नहीं लूँगा।’
एक क्षत्रिय के लिए सबसे बुरा व्यवहार यही होता है कि उसे परास्त करने के बाद जीवित छोड़ दिया जाए। द्रोण यही चाहते थे। वे जानते थे कि द्रुपद को प्राणों का दान देना ही उनके साथ सबसे कठोर व्यवहार होगा। वह भी एक ब्राहम्ण के हाथों मिली हुई भिक्षा! द्रोण ने द्रुपद से कहा दृ आपका आधा राज्य मेरा है। एक दोस्त होने के नाते मैं आपको बाकी का आधा राज्य देता हूँ। बाकी के आधे राज्य पर शासन करो दृ राज्य का एक हिस्सा मेरा है। गुस्से, जलन और लज्जा से सुलग रहे द्रुपद अपने आधे राज्य में वापिस चले गए। वे इस अपमान के बाद नागरिकों को अपना मुख नहीं दिखा सकते थे। उनकी प्रजा यह सहन न कर पाती। वे गुस्से में सुलग रहे थे।

शिखंडी का जन्म

उन्होंने शिव को प्रार्थना करते हुए कहा, ‘मैं एक संतान चाहता हूँ जो मेरा बदला ले।’ द्रुपद युद्ध में परास्त होने के बाद, द्रोण को मल्ल युद्ध के लिए पुकारने का अधिकार भी खो चुके थे।

वे पहले दिन से ही कन्या को पुरुषों की तरह रखने लगे ताकि किसी का पता न चले कि उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ था। उस कन्या को पुरुषों की तरह ही युद्ध कला सिखाई गई।
परंतु उनके यहां जिस संतान का जन्म हुआ, वह एक कन्या थी। द्रुपद को यह देख कर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने शिव से कहा, ‘मुझे प्रतिशोध लेने के लिए संतान चाहिए थी। यह कन्या कैसे बदला लेगी?’ वे पहले दिन से ही कन्या को पुरुषों की तरह रखने लगे ताकि किसी का पता न चले कि उनके घर एक कन्या का जन्म हुआ था। उस कन्या को पुरुषों की तरह ही युद्ध कला सिखाई गई। वह अंबा का पुनर्जन्म थी, जिसे शिखंडी के नाम से जाना गया।
द्रुपद केवल द्रोण से नहीं बल्कि कुरु वंश से भी बदला लेना चाहते थे क्योंकि उन युवकों नेे ही द्रोण को बंदी बनाया था। वे उन सबको खत्म करना चाहते थे और भीष्म कौरवों के वंश में स्तंभ की तरह खड़े थे। द्रुपद जानते थे कि अगर भीष्म को खत्म कर दिया जाए तो सारे कौरव वंश का नाश हो सकता था। चौदह वर्ष की आयु में शिखंडी गायब हो गयी। वे बहुत दुखी हुए और शिखंडी को हर तरफ खोजने लगे, पर उसे नहीं खोज सके। दरअसल शिखंडी पूर्ण यौवन की आयु पर थी और वह नहीं चाहती थी कि लोग ये समझ जाएं कि वो एक कन्या हैं। इसीलिए वो वन में रहकर अकेली युद्ध कला सीखने लगी। वन में स्तुनकर्ण नामक यक्ष ने शिखंडी की ये स्थिति देखकर सहायता की और कहा, ‘मैं तुम्हें पुरुषत्व प्रदान करता हूँ। अपनी जादुई शक्तियों का इस्तेमाल करके स्तुनकर्ण ने शिखंडी को पुरुष बना दिया। उसने कहा, ‘तुम सामाजिक रूप से पुरुष कहलाओगी, परंतु भीतर से एक स्त्री ही बनी रहोगी।’

द्रौपदी और धृष्टद्युमन का अग्नी से जन्म

द्रुपद का जीवन में एक ही उद्देश्य था - किसी तरह द्रोण को शर्मिन्दा करना और कुरु वंश को बर्बाद करना। उन्होंने किसी ऐसे व्यक्ति को खोजना आरंभ किया जो उन्हें यज्ञ के माध्यम से ऐसी संतान दिलवा सके जिमें द्रोण और कुरु वंश को हराने की क्षमता हो। उनकी भेंट यज व उपयज नामक दो प्रसिद्द तांत्रिकों से हुई जो पुत्रकर्म यज्ञ करने को तैयार थे। द्रुपद ने प्रार्थना की, ‘मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो द्रोण की हत्या करे और ऐसी पुत्री चाहिए जो कुरु वंश के बीच फूट डाल दे।’ बहुत बड़े यज्ञ के बाद, यज्ञ की अग्नि से एक पुत्र और पुत्री ने जन्म लिया - द्रौपदी व धृष्टद्युमन। इन दोनों का जन्म किसी स्त्री व पुरुष के संयोग से नहीं बल्कि अग्नि से हुआ था।