सद्‌गुरुहम अपने जीवन में किसी पल शांत तो किसी पल अशांत होते हैं, किसी पल उदास तो किसी पल उल्लासित होते हैं। तो आखिर क्या है हमारी मूल प्रकृति?

सौरभ: जब मैं ध्यान करता हूं, तो मेरे लिए सब कुछ शांतिपूर्ण और स्थिर होता है। मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैं किसी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा हूं। मगर असली परीक्षा तब होती है, जब कोई मुसीबत या विपरीत स्थिति आती है। मैं सब कुछ भूल कर फिर से चीजों से जूझने के पुराने तरीकों पर लौट आता हूं। वैसे तो मुझे ऐसा लगता है कि मेरे अभ्यासों का मुझ पर असर होने लगा है, मगर जैसे ही कुछ होता है, मैं फिर से पुराने तरीकों पर लौट आता हूं। सद्गुरु ऐसा क्यों होता है?

सद्‌गुरु: आपने दो बार दोहराया, ‘मैं वापस लौट जाता हूं।’ वापस लौटने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि अस्तित्व का अशांतिपूर्ण तरीका आपकी मूल प्रकृति है? क्या यह आपकी मूल प्रकृति है?

सौरभ: हां।

सद्‌गुरु: फिर आप उसे खोना क्यों चाहते हैं?

सौरभ: नहीं, ‘मूल’ से मेरा मतलब है कि हम अपनी पूरी जिंदगी इन चीजों से ऐसे ही पेश आते रहे हैं।

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सद्‌गुरु: अगर हम उस अशांतिपूर्ण तरीके से इतने जुड़े हुए हैं, तो हम उसे कैसे खो सकते हैं? अगर आप कहते, ‘मैं अभ्यास के दौरान बहुत शांतिपूर्ण था, मगर विपरीत स्थिति आते ही, मैं भटकने लगता हूं, अपनी मूल प्रकृति से दूर हो जाता हूं’ तो यह बेहतर होता। यह देखना सबसे जरूरी है कि, ‘मैं अपनी मूल प्रकृति से भटक रहा हूं।’ फिर आप स्वाभाविक रूप से अपनी असली प्रकृति की ओर वापस आना चाहेंगे। मगर आप साफ-साफ खुद से कह रहे हैं, ‘मेरी मूल प्रकृति अशांति या व्यग्रता है, शांतिपूर्ण होना मेरी काल्पनिक योग प्रकृति है। इसलिए, मैं कुदरती तौर पर अपनी मूल प्रकृति की ओर वापस चला जाता हूं।’ क्या घर लौटना स्वाभाविक नहीं है?

आपको अपने अंदर इसे बदलना चाहिए। आप जिस तरह सोचते हैं, उसी तरह बन जाते हैं। आपके मन की पूरी गड़बड़ी सिर्फ आपके सोचने के तरीके से बदली जा सकती है। जब आप कहते हैं, ‘मेरी मूल प्रकृति अशांति है,’ तो वह ऐसा ही होने की कोशिश करती है। अगर आप यह कहते हैं कि ‘मेरी मूल प्रकृति शांति है, मगर मैं उसे खो रहा हूं,’ तब आप स्वाभाविक रूप से अपनी मूल प्रकृति पर लौटना चाहेंगे।

हमारी मूल प्रकृति

आपकी मूल प्रकृति क्या है? आप मुझे बताइए, आपकी मूल प्रकृति क्या है? या अगर आप नहीं जानते कि यह ‘मूल प्रकृति’ क्या है, तो कम से कम मुझे यह बताइए कि जब आप बच्चे थे, तो आप अशांत और व्यग्र थे या शांतिपूर्ण और उल्लासपूर्ण?

कृपया यह समझें कि आपका दिमाग कैसे काम करता है। अगर आप एक खास तरह से उसे कुछ कहते हैं, अगर आप उसमें एक गलत जानकारी डालते हैं, तो दिमाग की पूरी ऊर्जा उस खास तरीके से काम करनी शुरू कर देती है।
अगर हम वाकई अपनी मूल, अनिवार्य प्रकृति पर वापस नहीं लौट सकते, तो क्या हम कम से कम शुरुआती स्थिति में वापस जा सकते हैं? क्या हम वहीं से खेल शुरू कर सकते हैं? आप कम से कम उस अवस्था में लौट सकते हैं, जब आप पांच साल के थे। आपके अंदर कम से कम उतनी शांति और प्रसन्नता तो होनी ही चाहिए।

यह बहुत ज्यादा नहीं है। बहुत से लोग इस तरह बात करते हैं, मानो बच्चा बनना दुनिया में सबसे बड़ी बात हो। नहीं। बड़े होने में बहुत ज्यादा कोशिश लगी है। बच्चा बनना सबसे बड़ी बात नहीं है। जिन लोगों ने खुद को पूरी तरह नष्ट और भ्रष्ट कर लिया है, उन्हें हम कहते हैं कि कम से कम शुरुआती स्थिति में आ जाएं। कम से कम वहां से फिर शुरू करें। खेल से बाहर होने से तो अच्छा है कि शुरुआती खाने पर तो खड़े हो जाएं।

इसलिए, खुद को यह न कहते रहें कि आपने ध्यान के दौरान जो कुछ भी अनुभव किया, वह एक मौजी पल था, जिसे आपने किसी तरह पा लिया था। वह कोई उपलब्धि नहीं है। अगर आप खुद को अव्यवस्थित न करें, तो आप अपने जीवन के हर पल में ऐसे ही रहेंगे। हकीकत क्या है? क्या आपकी बिगड़ी हुई स्थिति आपकी मूल प्रकृति है या आपकी मूल प्रकृति वह है, जैसे आप तब होते हैं, जब कोई चीज आपको अस्त-व्यस्त नहीं करती? कौन सी प्रकृति आपकी मूल प्रकृति के ज्यादा करीब है? जो बिगड़ी हुई नहीं है, है न?

पीछे मुड़ कर देखिए कि आपके जीवन का सबसे शांतिपूर्ण और आनंदपूर्ण पल कौन सा है। वहां से शुरू करते हैं। अभी उसे अपनी मूल प्रकृति के रूप में देखिए। वह आपकी मूल प्रकृति नहीं है, मगर कम से कम मन में ऐसा मान लेते हैं, ‘मैं ऐसा ही हूं, मगर किसी वजह से, मैं भटक गया हूं।’ एक बार जब आप मान लेते हैं कि आप भटक गए हैं, तो आप किसी भी तरह सही रास्ते पर लौटना चाहते हैं।

अपने मन को दें सही जानकारी

कृपया यह समझें कि आपका दिमाग कैसे काम करता है। अगर आप एक खास तरह से उसे कुछ कहते हैं, अगर आप उसमें एक गलत जानकारी डालते हैं, तो दिमाग की पूरी ऊर्जा उस खास तरीके से काम करनी शुरू कर देती है।

आप जिस तरह सोचते हैं, उसी तरह बन जाते हैं। आपके मन की पूरी गड़बड़ी सिर्फ आपके सोचने के तरीके से बदली जा सकती है। जब आप कहते हैं, ‘मेरी मूल प्रकृति अशांति है,’ तो वह ऐसा ही होने की कोशिश करती है।
दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जिनके जीवन में सिर्फ इसलिए पूरी तरह जहर भर गया, क्योंकि उन्होंने एक गलत विचार से अपनी पहचान जोड़ ली थी। मैं तो कहूंगा कि लगभग सारी दुनिया इसी स्थिति में है। लोगों ने एक खास तरह की सोच से अपनी पहचान जोड़ ली। ऐसे जुड़ाव आम तौर पर तब होते हैं, जब वे बहुत छोटे होते हैं और कुछ चीजें प्रधान होती हैं। और अब आप उसके परे नहीं सोच पाते।

मान लीजिए, मैं आपके शरीर से सभी पुरुष और स्त्री हारमोन निकाल लूं, तो क्या आपको पता है कि आप मात्र तीन दिन में कैसे बन जाएंगे? मैं शारीरिक पहलू के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, आपके दृष्टिकोण और जीवन के प्रति नजरिये के बारे में कह रहा हूं। आप निश्चित तौर पर पूरी तरह एक बेफिक्र बच्चे की तरह हो जाएंगे। आप लगातार अपने शारीरिक अंगों के प्रति जागरूक नहीं होंगे। आप बिल्कुल अलग तरीके से बैठेंगे, चलेंगे और मौजूद होंगे।

प्रकृति के एक खास मकसद को पूरा करने के लिए शरीर में हुए एक छोटे से रासायनिक बदलाव ने आपके जीवन के पूरे दृष्टिकोण को ही विकृत कर दिया है। सिर्फ यही चीज नहीं है। ऐसी लाखों और चीजें हैं। आप जिस चीज से अपनी पहचान जोड़ते हैं, वह आपके जीवन के दृष्टिकोण को पूरी तरह विकृत कर देता है। पूरी इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम का उद्देश्य मन को सही दृष्टिकोण देना है ताकि आपकी सीमित पहचानों को मानसिक तौर पर हटाया जा सके और आपकी ऊर्जा अपने मौजूदा बंधनों से मुक्त हो सके।

सिर्फ इसके कारण यह बंधन पूरी तरह समाप्त नहीं होगा। लेकिन अगर आप उन छोटी-छोटी पहचानों से खुद को मुक्त कर लें, जिन्हें आपने अपना लिया है, तो इस दिशा में पहला कदम उठाया जा सकता है। कर्म का एक पूरा ढांचा है, जिसे समाप्त होने में समय लगेगा लेकिन यदि आप इस प्रक्रिया को शुरू नहीं करेंगे, तो आप कर्म को नष्ट न करते हुए उसे इकट्ठा करना जारी रखेंगे। अगर आप अपने आस-पास की सीमित चीजों से अपनी मजबूत पहचान को तोड़ लेते हैं, तो आप कर्म के ढांचे को नष्ट करने की मूल प्रक्रिया को शुरू कर देते हैं।