शंका से आपका आध्यात्मिक विकास धीमा नहीं होता, बल्कि इससे तेजी ही आती है। सच्चे शंकालु व्यक्ति ही सच्चे आध्यात्मिक बनते हैं क्योंकि वे किसी बात पर आंख बंद कर विश्वास नही कर लेते, बात की तह में जाने की कोशिश करते हैं।

शंका करना कोई बुरी बात नहीं है। आपको समझना होगा कि शंका का अर्थ क्या है। शंकालु होने का मतलब किसी चीज़ के बारे में पक्की जानकारी न होने की वजह से उस पर विश्वास नहीं करना। पर यह अविश्वास जब हर चीज़ के बारे में हमेशा बने रहने वाले शक में बदल जाता है तो वह एक रोग बन जाता है। अविश्वास का मतलब है कि आप पहले ही किसी नतीजे पर पहुंच चुके हैं। लेकिन शंकालु होने का मतलब है कि आप अभी भी खोज-बीन कर रहे हैं; आप अभी भी परतें खोल कर उनको अच्छी तरह देखना चाहते हैं। तो शंका से आपका आध्यात्मिक विकास धीमा नहीं होता, इससे इसमें तेजी ही आती है। सच कहें तो केवल सच्चे शंकालु लोग ही आध्यात्मिक बन पाते हैं क्योंकि वे कुछ खोज रहे होते हैं। बाकी लोग तो हर चीज़ के लिए पहले ही बेवकूफी-भरे नतीजों पर पहुंच चुके हैं- अविश्वासी लोग नकारात्मक नतीजों पर और विश्वासी सकारात्मक नतीजों पर। लेकिन दोनों एक जैसे ही हैं. थोड़ा इधर या थोड़ा उधर, क्या फर्क पड़ता है, वे सब एक ही खेल खेल रहे हैं, आंकड़ों का खेल।

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जब आप मौत के सामने खड़े होंगे तो सारे नतीजे धरे-के-धरे रह जायेंगे। मुझे मालूम है कि लोग इस ज़िंदगी को मौत के पार तक खींचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन तब वे कुछ नही कर पाएंगे जब सामने मौत खड़ी होगी।

शंकालु इंसान जोड़ने-घटाने को तैयार नहीं होता, जो जैसा है वह उसे वैसा ही देखना चाहता है। यह एक आध्यात्मिक तरिका है। आध्यात्मिक तरिका का मतलब है, ज़िंदगी को ठीक उसी रूप में देखना जैसी कि वह है। उसमें कुछ जोड़ना-घटाना नहीं है, उसको उसके असली रूप में देखना है। एक शंकालु आदमी की सोच ठीक ऐसी ही होती है। मेरे विचार से आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए यह एक आदर्श सोच है कि किसी चीज़ को बढ़ा-चढ़ा कर या फिर कम कर के देखने की ज़रूरत नहीं। लेकिन हर चीज़ को ले कर आपकी अपनी शंकाएं हैं। अगर आप शंका नहीं करेंगे तो जांच-पड़ताल नहीं करेंगे। जांच-पड़ताल या खोज-बीन साधना के लिए रूखा-सा शब्द हैं। पर साधक एक प्रकार से खोजी ही होता है; बात बस इतनी है कि एक सच्चा खोजी सच जानने के लिए साधना करता है। अगर आप कहते हैं कि किसी की जांच हो रही है या आप किसी की जांच कर रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप किसी मामले का सच जानने की कोशिश कर रहे हैं। इसको जांच-पड़ताल कहते हैं और यही साधना भी है। आध्यात्मिक साधना भी एक जांच-पड़ताल है, किसी एक इंसान की नहीं बल्कि अस्तित्व की। हम पूरे अस्तित्व की जांच-पड़ताल कर रहे हैं। यही है आध्यात्मिक साधना।

यदि आप शंकालु नहीं हैं तो कभी जांच-पड़ताल नहीं कर पायेंगे, आप सीधे नतीजे पर पहुंच जायेंगे। जब आप मौत के सामने खड़े होंगे तो सारे नतीजे धरे-के-धरे रह जायेंगे। मुझे मालूम है कि लोग इस ज़िंदगी को मौत के पार तक खींचने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन तब वे कुछ नही कर पाएंगे जब सामने मौत खड़ी होगी। जब आपको ये समझ आ जाएगा कि आपके अस्तित्व की प्रकृति ही है एक दिन मिट जाना, तो आपकी ज़िंदगी के सारे नतीजे गायब हो जायेंगे और तब आप ज़िंदगी की जांच-पड़ताल या कहें कि सत्य की साधना में जुट जायेंगे। दोनों एक ही बात है। बस इतना ही खयाल रखना होगा कि शंका के रास्ते कहीं आप निराशा की तरफ ना बढ़ जाएं, अपनी ज़िंदगी से किनारा न कर लें। यदि आप एक हताश-निराश शंकालु किस्म के इंसान हैं तो किसी दिमागी डॉक्टर की जरुरत है आपको। अगर आपके मन में खुशी और शंका दोनों साथ हैं तो फिर आप एक बहुत अच्छे आध्यात्मिक साधक हैं और सत्य की साधना के लिए यह एक आदर्श मानसिक दशा है।

TheMacAdvocate @flickr