सद्‌गुरुजानते हैं कि हमारी सीमाओं पर सैनिकों को किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, और साथ ही एक ऐसे समाधान के बारे में जो ऐसी स्थिति में मदद कर सकता है।  

हम आपको कुछ ऐसा सिखा सकते हैं, जहां सारी सेनाएं अपने भीतर अपना रसायनिक संतुलन बनाए रख सकती हैं। यहां मैं मानसिक संतुलन की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि उससे भी बुनियादी बात कर रहा हूं।
सात्विक: हमारे सैनिक सीमाओं पर कड़ी चुनौतियों और अकेलेपन का सामना करते हैं और इसी के साथ उनमें परिवार के लिए भी कुछ कमिटमेंट होता है। सद्‌गुरु, इन सबके बीच वे संतुलन कैसे बनाएं? इन दिनों इन सारी चीज़ों को लेकर हमारे सैनिक कई तरह के दबावों से गुजर रहे हैं।

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सद्‌गुरु: लंबे समय तक अपने परिवार से दूर रहने की स्थिति को मैं अच्छी तरह समझता हूं। ऐसे में परिवार वाले भी त्याग करते हैं, एक पत्नी, बच्चे और माता-पिता भी त्याग करते हैं।

आमतौर पर ज्यादातर देश, खासकर प्राचीन देश, भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर बने, जब तक वे किसी बाहरी शक्ति द्वारा तोड़े या बांटे नहीं गए। लेकिन हम लोग तो जल्दबाजी में बंट गए और हमने ऐसी सीमाएं खींच दीं, जिनकी रक्षा कर पाना बहुत मुश्किल है।
अफसोस कि आज भी पूरी दुनिया में यह स्थिति है कि हर सीमा की सुरक्षा करनी पड़ती है। किसी भी देश के निर्माण में बुनियादी चीज होती है - देश की सीमा की अखंडता। जब सन् 1947 में हमने विदेशी शासकों से छीनकर अपना देश अपने हाथों में लिया, मुझे लगता है कि तब हम लोग आजादी के ख्याल को लेकर बेहद रोमांचित थे और हम समझ नहीं पाए कि देश की सीमा का क्या मतलब होता है।

हमने ऐसी सीमाएं बनाई जिनकी सुरक्षा करना बहुत मुश्किल है

आमतौर पर ज्यादातर देश, खासकर प्राचीन देश, भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर बने, जब तक वे किसी बाहरी शक्ति द्वारा तोड़े या बांटे नहीं गए। है।

कई तरह से हमारे सैनिकों की जो समस्याएं हैं, उसके पीछे यही वजहें हैं कि हम उन्हें मुश्किल इलाके में रखते हैं और कभी बिना किसी वजह खुली जगह में रख देते हैं। एक जगह हमारे सैनिक माइनस पंद्रह डिग्री सेल्सियस में रहते हैं, तो वहीं दूसरी ओर राजस्थान जैसी जगह में बावन डिग्री सेल्सियस में उन्हें रहना पड़ता है।
लेकिन हम लोग तो जल्दबाजी में बंट गए और हमने ऐसी सीमाएं खींच दीं, जिनकी रक्षा कर पाना बहुत मुश्किल है। और सबसे बड़ी बात कि इसमें हमने अपना वो व्यापार मार्ग ही काटकर रख दिया, जिसका हम हजारों साल से इस्तेमाल करते आ रहे थे। इसी रास्ते के जरिए हम दमिश्क, जेरुशलम, ग्रीस व रोम के साथ हजारों साल से व्यापार करते आ रहे थे। हमने पश्चिमी सीमा पर इस रास्ते को काट दिया। पूर्वी मार्ग, जो हमेशा से ही था, हमने पूर्वी सीमा पर उस मार्ग को काट कर एक देश बना दिया।

तो हमने बिना यह सोचे समझे कि इससे भविष्य में किस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं, हमने खुद को टुकड़ों में बांट लिया। दुर्भाग्य की बात है कि इस विभाजन से बने सभी राजनैतिक देश- चाहे हम हों या हमारे पड़ोसी, सब परेशान हो रहे हैं। चूंकि तब हम देश निर्माण का मतलब ठीक से नहीं समझे थे, तब हमें लगा था कि आजादी का मतलब अपना झंडा फहराना और अपना गीत गाना होता है। एक आजाद देश की सुरक्षा में कितनी मेहनत लगती है, एक आजाद व समृद्ध देश बनाने में कितना कुछ लगता है, तब हमने इसकी गंभीरता को पूरी तरह से नहीं समझा था। ऐसा कह कर मैं किसी पर दोष नहीं लगा रहा हूं, मैं तो सिर्फ इतना कहना चाह रहा हूं कि देश को बांटते समय हम अनुभव के लिहाज से न सिर्फ नए थे, बल्कि थोड़ी जल्दबाजी में भी थे। हमने चीजों को इस तरह से किया कि आज हमें उस सीमा की रक्षा करनी पड़ती है, जिसकी कोई भौगोलिक प्रधानता नहीं है, यह महज एक सपाट जमीन है। कई तरह से हमारे सैनिकों की जो समस्याएं हैं, उसके पीछे यही वजहें हैं कि हम उन्हें मुश्किल इलाके में रखते हैं और कभी बिना किसी वजह खुली जगह में रख देते हैं। एक जगह हमारे सैनिक माइनस पंद्रह डिग्री सेल्सियस में रहते हैं, तो वहीं दूसरी ओर राजस्थान जैसी जगह में बावन डिग्री सेल्सियस में उन्हें रहना पड़ता है। उन्हें अपने परिवार से दूर ऐसे विकट हालातों में रहना होता है।

फेसबुक और ट्विटर आपके परिवार को नज़दीक ले आए हैं

हालांकि पुराने जमाने में अपने परिवार से दूर रहना कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं थी, क्योंकि तब लगभग हर मर्द जो व्यापार या कोई और काम करता था, वह काफी लंबे समय के लिए अपने परिवार से दूर रहता था। आज आप भले ही सीमा पर तैनात हों, लेकिन आज मोबाइल फोन, ट्विटर व फेसबुक की वजह से आपका परिवार आपके साथ बिलकुल पीछे खड़ा होता है और यही सबसे बड़ी मुश्किल है। आपके परिवार के लोग सीमा के बहुत नजदीक आ गए हैं। दरअसल, जब आप कोई खास तरह का काम, सिर्फ एक सैनिक के तौर पर ही नहीं, कोई भी काम कर रहे हों तो आपके परिवार की महिलाएं और बच्चे आपके आसपास नहीं होने चाहिए, क्योंकि तब आप ठीक तरह से काम नहीं कर सकते। दरअसल, उनका पास होना आपके भीतर इतनी तरह की चिंताएं और डर लेकर आता है कि आप काम ठीक से कर ही नहीं पाते, लेकिन यह आज का आधुनिक जीवन है। वे सब जगह हैं। वे आपको हर पांच मिनट पर फोन कर सकते हैं। और आजकल तो शायद यह सब मुफ्त हो गया है।

तो ये आज के समय की दिक्कतें हैं, लेकिन इसी के साथ परिवार के लिए यह एक सांत्वना की बात भी है कि वे कभी भी आपके साथ संपर्क कर सकते हैं। लेकिन मैं कल्पना कर सकता हूं कि उस समय आपका और आपके परिवार का क्या हाल होगा, जब कोई सैन्य कार्यवाही चल रही हो और अचानक आप अपना मोबाइल फोन ऑन कर लें और उनको गोलीबारी की आवाज सुनाई देने लगे। यह स्थिति खुद में एक त्रासदी होगी।

रासायनिक संतुलन बनाए रखने का तरीका

मेरे पास इसका कोई समाधान नहीं है, लेकिन हम आपको कुछ ऐसा सिखा सकते हैं, जहां सारी सेनाएं अपने भीतर अपना रसायनिक संतुलन बनाए रख सकती हैं। यहां मैं मानसिक संतुलन की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि उससे भी बुनियादी बात कर रहा हूं, अपने भीतर की रसायनिक संरचना को संतुलन में रखें, जिससे आप इन चीजों का सामना कर सकें। लेकिन आज के इस आधुनिक दौर के संवाद में, जिसे मैं अति- संवाद कहूंगा, उसमें सिर्फ सैनिकों के लिए ही नहीं, बल्कि हरेक के लिए इतना ज्यादा संवाद अपने आप में एक मुद्दा है। हमें इससे निपटना सीखना होगा। मुझे लगता है कि यह सैनिकों की पहली पीढ़ी है, जिसके पास इस स्तर के संवाद की संभावनाएं मौजूद हैं, हो सकता है कि आने वाले पांच दस सालों में वे इससे निपटना सीख लें, क्योंकि आप इससे पूरी तरह से कट कर भी तो नहीं रह सकते।