सद्‌गुरुप्रवीण गोर्धान भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी नेता हैं, जिन्होंने सद्गुरु से बातचीत की। उन्होंने जाना चाहा कि सद्‌गुरु की मोटरसाइकिल यात्राओं ने उन्हें किस तरह प्रभावित किया। जानते हैं सद्‌गुरु का उत्तर -


मोटरसाइकिल यात्रा पर हर चीज़ की ज्यामिति पर दिया ध्यान

प्रवीण गोर्धान: मोटरसाइकिल और रूपांतरण लाने वालों में कुछ संबंध दिखाई देता है। चे ग्वारा (अर्जेंटीना का माक्र्सवादी क्रांतिकारी) ने भी मोटरसाइकिल पर लैटिन अमेरिका का दौरा किया था। उनके मोटरसाइकिल दौरे पर एक फिल्म भी बनी थी, जिसका नाम था- ‘मोटरसाइकिल डायरीज’। ग्वारा की उस यात्रा ने मानवीय स्थितियों की उनकी समझ को बदल दिया। आपकी मोटरसाइकिल यात्रा ने आपको क्या सिखाया और किस तरह से आपको प्रभावित किया?

सद्‌गुरु : मैंने अपनी मोटसाइकिल से पूरे भारत का चक्कर लगाया। मैं जब मोटरसाइकिल पर बैठता था तब मेरे मन में कोई मंजिल निश्चित नहीं रहती थी। बस मैं चलता रहता था।

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सद्‌गुरु के पुराने दिन सद्‌गुरु के पुराने दिन
दरअसल, उस समय जब मैं आसपास के संसार पर गौर करता तो मेरे लिए सृष्टि का सबसे महत्वपूर्ण पहलू सृष्टि की ज्यामिति होती थी। बहुत बाद में मुझे पता चला कि योग भी अपने सिस्टम को ब्रह्माण्ड के सीध में लाने की एक बुनियादी ज्यामिति है, बेहद उत्कृष्ट व सूक्ष्म ज्यामिति है।

यह चीज मुझे बाद में समझ में आई। लेकिन बचपन से ही मैं अगर पेड़ों को देखता तो मुझे उसमें सबसे पहले लाखों तरह की ज्यामिति रचनाएं नजर आती थीं। पेड़ों के रंग या दूसरे कलात्मक पहलूओं से पहले उसका ज्यामितीय आकार ही मुझे सबसे ज्यादा हैरान करता था। अगर मैं किसी इंसान पर नजर डालूं, अगर मैं देखूं कि वे कैसे खड़े होते हैं या बैठते हैं, तो मैं आसानी से बता सकता हूं कि अगले दस सालों में उन्हें कैसी समस्याएं हो सकती हैं, उनके शरीर व दिमाग की क्या दशा होगी। यह सब बातें मैं सिर्फ उनके सिस्टम की ज्यामिति देखकर बता सकता हूं।

सारा ब्रह्माण्ड ज्यामिति पर टिका है

यह सारा ब्रह्मांड ज्यामितीय दृष्टि से बिल्कुल परफेक्ट है। उदाहरण के लिए हम जिस सौर मंडल में रहते हैं, इस सौर मंडल में हर ग्रह गति के साथ एक खास ज्यामिति का पालन कर रहा है, इसीलिए हम जीवित हैं।

आपको शायद विश्वास न हो, मेरी मोटरसाइकिल, मैं और यह धरती इस कदर एक हो गए थे कि मैं लगभग बिना कुछ खाए, बिना सोए लगातार तीन दिन, तीन रात तक चलता रहता, क्योंकि मेरे पास जितना भी पैसा था वो सब इसकी टंकी में चला जाता था।
मान लीजिए कि यह धरती कभी सोचे कि अपना रास्ता छोडक़र कहीं पिकनिक मनाने जाते हैं और फिर वापस आ जाएंगे तो यह कभी वापस नहीं आ पाएगी। उसकी वजह यह है कि ज्यामिति की शुद्धता और सूक्ष्मता हर समय जरुरी है, तभी ब्रह्मांड हमेशा अपने तरीके से चलता रहेगा। उसी तरह से हमारे शरीर की भी एक खास तरह की ज्यामिति होती है, जिसकी वजह से यह काम करता है। ज्यामिति की शुद्धता का मतलब है कि कोई मशीन लंबे समय तक काम करेगी। तो मेरे लिए भारत के भूभाग ने मुझे इसी दृष्टि से प्रभावित किया। मेरे लिए बस यही महत्वपूर्ण था कि कहां से पृथ्वी या चट्टान का कोई हिस्सा उभरा हुआ, निकला हुआ या झुका हुआ है। मेरे दिमाग में उस पूरे सफर की तस्वीर, सैकड़ों घंटों के वीडियो, सुरक्षित हैं, जिसे मैं चाहूं तो आज भी प्ले करके देख सकता हूं।

कैसे एक शिला टिकी है, कैसे एक कंकड़ अटका है, कैसे एक टिड्डा बैठा है, आज भी मेरे दिमाग में वे सारे दृश्य हैं। लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं, ‘सद्‌गुरु आप अपना समय कैसे बिताते हैं? आप न तो पढ़ते हैं, न कुछ करते हैं, फिर आप समय कैसे बिताते हैं?’ अगर मैं अपने मन में अंकित अपने मोटरसाइकिल दिनों का वीडियो चला दूं तो यह असीमित तौर पर चलता जाएगा... चलता जाएगा। आपको शायद विश्वास न हो, मेरी मोटरसाइकिल, मैं और यह धरती इस कदर एक हो गए थे कि मैं लगभग बिना कुछ खाए, बिना सोए लगातार तीन दिन, तीन रात तक चलता रहता, क्योंकि मेरे पास जितना भी पैसा था वो सब इसकी टंकी में चला जाता था।

कभी इन्कार का सामना नहीं हुआ

भारत के भूभाग की छवि मेरे भीतर इतनी विशाल है कि लोग सोच सकते हैं कि आखिर भूभाग के बारे में जानने के लिए इतना क्या है? आप पूछ सकते हैं कि ‘क्या आपने भूगोल पढ़ा है? क्या आपने भूगर्भशास्त्र पढ़ा है?’ नहीं, मैंने ये सब नहीं पढ़ा है। बात सिर्फ इतनी है कि मैंने धरती को एक खास तरीके से अपने भीतर उतारा है और बेशक इंसानों को भी। मैं कभी भी किसी होटल में नहीं रुका। उस दौरान मेरे पास एक छोटा सा टेंट हुआ करता था, जिसे जरूरत पडऩे पर मैं इस्तेमाल कर लेता था, खासकर जब जंगल में रात बितानी होती थी। नहीं तो मैं किसी गांव में चला जाता और किसी के भी घर जाकर कहता, ‘मुझे नहाना है और मैं भूखा हूं।’ मुझे कभी भी इन्कार का सामना नहीं करना पड़ा। लोगों ने हमेशा मेरा स्वागत किया। मैं वहां नहाता, भरपेट खाता। कभी कभी लोग मुझे अपने यहां सोने की इजाजत भी दे देते थे। मैंने कभी उनके नाम नहीं पूछे और ना ही उन लोगों ने कभी मेरा नाम पूछा। अगली सुबह उठकर मैं फिर अपने रास्ते पर निकल पड़ता।

किसी को अपना बनाने के लिए किसी चीज़ की जरुरत नहीं

उस समय लोगों के साथ एक अद्भुत संबंध था। लोगों को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए उन्हें जानना मेरे लिए जरूरी नहीं था।

मुझे लगता है कि अपनी मोटरसाइकिल यात्रा से जो सबसे बड़ी शिक्षा मुझे मिली, वो यह थी कि किसी भी चीज को अपना बनाने के लिए उस पर स्वामित्व हासिल करना जरूरी नहीं है। मैंने आप सबको पहले ही अपना बना लिया है।
मुझे जमीन को अपना बनाने के लिए उसे खरीदना जरुरी नहीं था। मुझे कभी किसी चीज को अपना बनाने के लिए, उसका अधिकारी होने की जरूरत नहीं पड़ी। मुझे लगता है कि अपनी मोटरसाइकिल यात्रा से जो सबसे बड़ी शिक्षा मुझे मिली, वो यह थी कि किसी भी चीज को अपना बनाने के लिए उस पर स्वामित्व हासिल करना जरूरी नहीं है। मैंने आप सबको पहले ही अपना बना लिया है। आप भले ही मुझे इसकी इजाजत न दें, लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं है। बात सिर्फ इतनी है कि मैंने अपना बना लिया। इसी वजह से मेरी जिंदगी हरदम खुशहाल और जबरदस्त तरीके से समृद्ध होती रही है। दरअसल, मैंने कभी यह नहीं देखा कि कौन मेरे साथ पूरी गहराई से नहीं जुड़ा, मैं उनके साथ जुड़ जाता हूं, भले ही वे जुड़ें या न जुड़ें।