प्रश्न : अपनी इच्छा पूरी करने के लिये मुझे कभी कभी नियम तोड़ने पड़ते हैं, लेकिन अगर मेरे माता पिता और प्रियजनों को इससे अपमान मिले तो मैं ऐसा नहीं करना चाहती। मैं जानना चाहती हूं कि कैसे मैं एक आज्ञाकारी पुत्री बनी रह कर भी एक ऐसी स्वतंत्र महिला की तरह रहूं जो अपना जीवन अपनी इच्छा के अनुसार जीती है?

सद्‌गुरु : आप यह कह रही हैं कि मैं वो करना चाहती हूं जो मैं चाहती हूँ, और वो मैं सबकी खुशी, सबकी इच्छा के साथ करना चाहती हूँ - और मैं इसके लिये कोई तकलीफ नहीं उठाना चाहती। लेकिन जीवन ऐसे नहीं चलता। हम जब वो करते हैं, जो हम वास्तव में करना चाहते हैं तो उसकी एक कीमत चुकानी पड़ती है। यह जीवन का क्रम है, नियम है। आप जो कुछ भी करती हैं उसका मूल्य या टैक्स तो देना ही पड़ता है। कितनी कीमत या कितना कर, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपका वो विचार कितना क्रांतिकारी है।

सबसे पहले माता-पिता को राज़ी करना चाहिए

यह सोचना बहुत ही अवास्तविक है कि, " मैं कुछ करना चाहती हूं, पर मेरे पिता, मेरी माँ......"। आपको खुशी होनी चाहिये कि वे आपको इस दुनिया में लाये। इसके आगे कोई शिकायत मत कीजिये। आपके माता पिता वो कर रहे हैं, जो उनके अनुसार आप के लिये सर्वोत्तम है। अगर आप को लगता है कि आप उनसे बेहतर जानते हैं, तो पहला काम जो आप को करना चाहिये वो है उन्हें राज़ी करना।

कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी

लेकिन मान लीजिये कि वे उस बात को नहीं समझ रहे जो आप कह रही हैं तो फिर वे राज़ी नही होंगे। तब बात इस पर आ जाती है कि आप जो कुछ भी करना चाहती हैं वह आप के लिये कितना ज़रूरी है, कितना महत्वपूर्ण है? क्या ये इतना जरुरी है कि उनकी खिंची रेखाओं को लांघा जा सकता है? अगर आपका निर्णय यह है कि वो जबरदस्त जरुरी है और आप हर हाल में वो करना चाहती हैं, चाहे इसकी कीमत कुछ भी हो, तो फिर कीजिये - लेकिन इसकी कीमत तो आप को चुकानी ही होगी। अगर आपको लगता है, कि आप वो करें जो आप करना चाहती हैं - पर उसकी कोई कीमत चुकानी पड़े, तो जीवन में ऐसा कहीं नहीं होता, न यहां न कहीं और।

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