अध्यात्म का अर्थ है खुद के बारे में सब कुछ जान लेने की चाह। ऐसा क्या है, जो हमें खुद को जानने के लिए प्रेरित कर सकता है

सद्‌गुरुअमेरिका के सिनसिनेटी एअरपोर्ट में एक घटना घटी। एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिखने वाला आदमी एअरपोर्ट में घुस गया। चेक-इन काउंटर पर एक लम्बी कतार थी। ये आदमी लाइन तोड़ कर सीधा काउंटर पर चला गया और अपना पासपोर्ट और टिकट दिखाने लगा।

ये पहली और सबसे जरुरी चीज़ है जो आपको अपनी जिन्दगी में करनी चाहिए। सबसे पहले ये जानना चाहिए कि ये (खुद की ओर इशारा) कौन है, मेरे अस्तित्व की प्रकृति क्या है?

काउंटर संभाल रही महिला बोलीं - "सर यहां एक लाइन है, कृपया लाइन में खड़े हो जाएं।"

वो बोला - "नहीं, नहीं मैं जल्दी में हूँ, मुझे जाना है।"

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वो बोली - "नहीं, कृपया लाइन में खड़े हो जाएं"।

फिर वो बोला - "क्या तुम जानती हो मैं कौन हूं?"

महिला ने एकदम से माइक उठा लिया और बोली - "यहां एक आदमी है जो ये नहीं जानता कि वो कौन हो, क्या कोई उसकी मदद कर सकता है?"

उसकी कोई भी मदद नहीं कर सकता, क्योंकि हर कोई उसी स्थिति में है। हर कोई खुद का असल स्वरुप जाने बिना यहां जी रहा है। इसके बारे में बुनियादी बातें जाने बिना ही हम अपना जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। सारी अस्त-व्यस्तता इसी वजह से है।

"मैं कौन हूं?" - ये प्रश्न आपके जीवन का सबसे गूढ़ प्रश्न है।

अगर आप ये नहीं जानते कि आप कौन हैं, तो क्या आप कोई भी अन्य चीज़ निश्चित तौर पर जानते हैं? अगर आप इतना भी नहीं जानते कि आप कौन हैं, तो क्या आप किसी अन्य को या किसी अन्य चीज़ को जानने में सक्षम हो पाएंगे?

अगर आप नहीं जानते कि आप कौन हैं, तो सब कुछ एक बड़े मजाक की तरह हो जाता है। तब एकमात्र सांत्वना ये होती है, कि हर कोई आपके साथ है।

ये पहली और सबसे जरुरी चीज़ है जो आपको अपनी जिन्दगी में करनी चाहिए। सबसे पहले ये जानना चाहिए कि ये (खुद की ओर इशारा) कौन है, मेरे अस्तित्व की प्रकृति क्या है?

"मैं कौन हूं?" - ये प्रश्न आपके मन और शरीर में चीख रहा है।
अगर आप अपने अस्तित्व की प्रकृति नहीं जानते तो आप संयोग से अपना जीवन जीएंगे। सब कुछ संयोग-वश, और धारणाओं और राय के आधार पर होगा। इसमें सत्य नहीं होगा।

"मैं कौन हूं?" - ये प्रश्न आपके मन और शरीर में चीख रहा है। अगर आप बस सतही बकवास को साफ कर दें, तो ये प्रश्न, उत्तर जानने के लिए चीखता प्रतीत होगा।

जब आप मन की सतही बकबक साफ़ नहीं करते तो "मैं कौन हूं?" बस एक प्रश्न है। अगर आप सतही बकबक साफ़ कर दें, तो आप देखेंगे कि "मैं कौन हूं?" ही सब कुछ है। और कुछ भी नहीं है, ये सबसे बड़ी चीज़ है।

ये प्रश्न "मैं कौन हूं?" कोई प्रयोग या जिज्ञासा मात्र नहीं है। ये ऐसी चीज़ है जो आपको चीरने लगती है। जब तक ये आपको चीर के दो टुकड़े न कर दे, तब तक आप ये नहीं जान पाएंगे कि अंदर कौन है।