इस श्रृंखला की पिछली कड़ी में हमने पढ़ा, कि पांडू ने अपनी पत्नी कुंती से संतान न होने की वजह से आत्महत्या की बात की, तो कुंती ने उन्हें एक वरदान के बारे में बताया, जो उन्हें दुर्वासा ऋषि ने दिया था। एक मन्त्र के आह्वान से, वे किसी देवता को बुला कर उनकी संतान पैदा कर सकतीं थीं। अब आगे...

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सद्‌गुरुसद्‌गुरु : कुंती ने उन्हें यह नहीं बताया कि वह पहले भी इस तरह किसी को बुला चुकी हैं। पांडु ने इसके लिए बहुत उत्सुकता दिखाई और बोले, ‘कृपया ऐसा ही करो। हम किसे बुलाएं?’ उन्होंने पल भर सोचा, फिर पांडु ने कहा, ‘हमें धर्म को बुलाना चाहिए। धर्मपुत्र को हम कुरु वंश का राजा बना सकते हैं।’ धर्म को यमराज के नाम से भी जाना जाता है, जो मृत्यु और न्याय के देवता हैं।

कुंती जंगल में चली गईं और धर्म का आह्वान किया। फिर उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया और उन्हें पांडु का पहला पुत्र माना गया। एक साल बीत जाने पर पांडु के मन में फिर लोभ आया और वह बोले, ‘एक और बच्चा पैदा करते हैं।’ कुंती बोलीं, ‘नहीं, हमारे पास एक पुत्र है। अब कुरु वंश को अपना उत्तराधिकारी मिल चुका है। इतना काफी है।’ पांडु बोले, ‘नहीं, हमें एक और बच्चा पैदा करना चाहिए।’ उन्होंने कुंती से प्रार्थना की, ‘अगर मेरा सिर्फ एक पुत्र होगा, तो लोग क्या सोचेंगे। कृपया एक और बच्चा पैदा करो।’ ‘उसका पिता कौन होगा?’ पांडु ने कहा, ‘हमारे पास धर्म है, मगर हमें ताकत भी चाहिए। इसलिए वायु देवता को बुलाते हैं।’ कुंती ने जंगल में जाकर वायु देवता का आह्वान किया। वायु आए। उनकी मौजूदगी इतनी प्रचंड थी कि वे एक जगह पर टिक नहीं पा रहे थे। वह कुंती को लेकर वहां से उड़ गए।

महाभारत में इसका विस्तार से सुंदर वर्णन किया गया है कि किस तरह उन्होंने पहले पहाड़ पार किए, फिर समुद्र और उसके बाद वे क्षीर सागर पहुंचे। उन्होंने कुंती को दिखाया कि पृथ्वी वास्तव में गोल है, जबकि उस समय हर कोई यह समझता था कि पृथ्वी चपटी है। उन्होंने कुंती को बताया कि भारतवर्ष में जब दिन होता है, तो दुनिया के दूसरी ओर रात होती है। और जब यहां रात होती है, तो वहां दिन होता है। उन्होंने पांच हजार वर्ष पहले ही स्पष्ट रूप से कह दिया था कि पृथ्वी गोल है और पृथ्वी के दूसरी ओर एक और महान सभ्यता है। उन्होंने बताया कि उस ओर किस तरह के लोग रहते हैं और वे किन चीजों में निपुण और दक्ष हैं। उन्होंने बताया कि इस धरती पर महान ऋषि-मुनि और योद्धा भी हैं। कुंती ने वायु पुत्र भीम के रूप में अपनी दूसरी संतान को जन्म दिया। भीम बड़े होकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली मनुष्य बने।

कुछ समय बाद, पांडु ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि मैं लालच में पड़ रहा हूं, मगर इन दो सुंदर पुत्रों को देखने के बाद, मैं कैसे रुक सकता हूं? मैं सिर्फ एक और पुत्र चाहता हूं – सिर्फ एक और।’ कुंती बोली, ‘नहीं, नहीं।’ समय बीतता गया, मगर पांडु ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। आखिरकार कुंती बोलीं, ‘ठीक है, अब कौन?’ वह बोले, ‘अब देवताओं के राजा इंद्र को बुलाते हैं, उनसे कम पर बात नहीं बनेगी।’ कुंती ने अब इंद्र के पुत्र को अपनी कोख में धारण किया और महान तीरंदाज तथा योद्धा अर्जुन को जन्म दिया। महाभारत में उन्हें क्षत्रिय कहा गया, जिसका मतलब योद्धा होता है। उनके जैसा कोई और योद्धा नहीं हुआ और न होगा। उन्हें सिर्फ युद्ध में संतुष्टि मिलती थी।