सद्‌गुरुपिछ्ले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि दुर्योधन ने भीम को ज़हर युक्त मिष्ठान खिलाकर नदी में फेंक दिया था। आगे पढ़ते हैं कि कैसे साँपों के सैंकड़ों बार काटने से भीम फिर से चेतन हो उठे...

विष से विष का नाश हो गया

सांपों ने सैंकड़ों बार उसे काटा। उनके जहर ने उसके शरीर में मौजूद जहर के लिए विषनाशक (एंटीडोट) का काम किया। ये दक्षिण भारतीय सिद्ध वैद्य चिकित्सा प्रणाली में आम बात है, कि जहर के उपचार के लिए जहर का इस्तेमाल किया जाता है।

नाग लोक में चौदह दिन रहने के बाद उस औषधि ने भीम को बहुत शक्तिशाली बना दिया था, मगर साथ ही उसे तगड़ी भूख भी लग गई थी।
आधुनिक चिकित्सा में भी वैक्सीन इसी तरह तैयार किए जाते हैं। जब एंटीडोट ने असर दिखाना शुरू किया, तो भीम की मूर्च्छा धीरे-धीरे खत्म होने लगी। जब सांपों ने यह देखा तो उन्होंने भीम को किसी अपनी की तरह मान लिया। नागराज ने इस वायुपुत्र को एक ओर ले जाकर कहा, ‘देखो, तुम्हें विष दिया गया है। खुशकिस्मती से उन्होंने तुम्हें नदी में फेंक दिया। अगर तुम्हें नदी के तट पर छोड़ दिया जाता, तो तुम अब तक मर चुके होते।’

नागों के राजा ने भीम को नव-पाषाण भेंट किया

छल का तरीका यही है, इसमें अति करने की कोशिश की जाती है। भीम को मरने के लिए नदी के तट पर छोड़ दिया जा सकता था, मगर दुर्योधन कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए उसने उसे नदी में फेंक दिया। नतीजा उल्टा हुआ। नागों ने भीम से कहा, ‘हम तुम्हें एक ऐसी औषधि देंगे, जिसकी जानकारी दुनिया के सिर्फ इसी हिस्से में है।’ उन्होंने अलग-अलग तरह के विष, पारे और कुछ जड़ी-बूटियों को मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया। इसे आज दक्षिण भारत में नव पाषाण या नौ घातक विषों के रूप में जाना जाता है। इसका प्रयोग एक औषधि के तौर पर होता है।

नव पाषाण तैयार करने में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है। किसी चीज की एक बूंद ज्यादा या किसी चीज की एक बूंद कम होने पर इंसान की मृत्यु हो सकती है। नागों ने बहुत सावधानी से यह औषधि तैयार करके भीम को दी। उसे पीने के बाद भीम के अंदर असाधारण शक्ति आ गई।

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पांडवों को समझ आने लगी दुर्योधन की चाल

इस बीच बाकी चार भाइयों ने ध्यान दिया कि भीम गायब है। वे परेशान हो गए। उन्हें एहसास हो गया कि उन्हें धोखा दिया गया है मगर वे खुलकर यह बात नहीं कह सकते थे क्योंकि दुर्योधन बहुत ही दुखी दिखने का ढोंग कर रहा था।

तभी भीम महल में लौट आया, उसके भाई और मां उसे देखकर खुशी से भर उठे। दुर्योधन और उसके भाइयों को विश्वास नहीं हो रहा था, शकुनि भयभीत था।
वह इधर-उधर भागते हुए भीम को ढूंढने का दिखावा कर रहा था और रोते हुए कह रहा था, ‘मेरा प्यारा भाई, मेरा इकलौता साथी कहां गया?’ सहदेव ने कहा, ‘उन्होंने उसे मार डाला।’ अब चारों भाइयों को एहसास हो रहा था कि वे उपहारों और भोजन से छले गए थे और इसलिए अपने भाई को खो बैठे हैं। वे बुरी तरह शर्मिेदा होकर वापस घर पहुंचे। उन्होंने अपनी मां कुंती को सारी बातें बताईं।

कुंती तीन दिन तक गहरे ध्यान में डूब गई। फिर वह बोली, ‘मेरा पुत्र भीम मरा नहीं है। उसे ढूंढो।’ चारों भाई और उनके मित्रों ने जंगल का चप्पा चप्पा छान मारा, नदी में अंदर तक ढूंढा, हर कहीं खोजा मगर भीम उन्हें कहीं नहीं मिला। आखिरकार उन्होंने हार मान ली। कुंती को अपनी दिव्यदृष्टि पर शंका होने लगी कि भीम जीवित भी है या नहीं। उन्होंने भीम को मृत मानकर मृत्यु के चौदहवें दिन होने वाले संस्कार की तैयारी कर ली। दुर्योधन ने भीम की स्मृति में एक बड़े समारोह का प्रबंध किया। उसने रसोइए बुलाए और परंपरा के अनुसार चौदहवें दिन शोक की समाप्ति के लिए एक विशाल भोज का आयोजन किया। दिल ही दिल में वह खुशी से नाच रहा था मगर शोकाकुल होने का दिखावा कर रहा था।

फिर भीम लौट आए

तभी भीम महल में लौट आया, उसके भाई और मां उसे देखकर खुशी से भर उठे। दुर्योधन और उसके भाइयों को विश्वास नहीं हो रहा था, शकुनि भयभीत था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि भीम जीवित है या यह भीम का भूत है। भीम क्रोध में आकर तहस-नहस करने ही वाला था कि विदुर ने आकर उसे समझाया, ‘यह दुश्मनी को जाहिर करने का सही समय नहीं है। अभी तक वे छिप कर ये चीजें कर रहे हैं। इसका मतलब है कि अभी तुम थोड़े सुरक्षित हो। अगर तुम दुश्मनी जाहिर कर देते हो, तो वे महल में ही तुम्हें मार डालेंगे। तुम लोग सिर्फ पांच हो, जबकि वे सौ। साथ ही उनके पास सिपाहियों की पूरी फौज भी है।’

अत्यंत भूखे होने के कारण खुद ही सब्जियां पकाई

भीम और उसके भाइयों ने अपने गुस्से को दबा लिया। नाग लोक में चौदह दिन रहने के बाद उस औषधि ने भीम को बहुत शक्तिशाली बना दिया था, मगर साथ ही उसे तगड़ी भूख भी लग गई थी।

नागों ने भीम से कहा, ‘हम तुम्हें एक ऐसी औषधि देंगे, जिसकी जानकारी दुनिया के सिर्फ इसी हिस्से में है।’ उन्होंने अलग-अलग तरह के विष, पारे और कुछ जड़ी-बूटियों को मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया।
जब उसने देखा कि महल में एक विशाल भोज की तैयारी चल रही थी, मगर उसे जीवित पाने के बाद यह काम बीच में ही छोड़ दिया गया था, तो उसने सभी कटी सब्जियों को एक कड़ाह में डालकर एक व्यंजन तैयार कर लिया। आर्य संस्कृति में यह माना जाता है कि कुछ सब्जियों को एक-दूसरे के साथ नहीं मिलाया जाता है, मगर भीम ने सब कुछ मिलाकर एक व्यंजन तैयार किया, जो आज भी दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में बड़े चाव से खाया जाता है। उसे अवियल कहा जाता है, जिसका अर्थ है मिश्रण।

दोनों पक्षों के बीच दुश्मनी बढ़ती रही। पांचों भाई सतर्क हो गए और उन्होंने अपना सुरक्षा घेरा बनाना शुरू कर दिया। वे अपने भरोसेमंद लोगों को महल में लाने लगे। अभी तक वे महलों के षड़यंत्र से बेखबर थे, अब तक वे लड़कों की तरह बर्ताव कर रहे थे। मगर अब वे राज्य के लिए एक गंभीर संघर्ष में उतर चुके थे।

योद्धा द्रोण का अवतरण

इस बीच, भारद्वाज के पुत्र और शिष्य द्रोण गर्भ में आए और एक द्रोण बर्तन में पैदा हुए, जिसकी वजह से उनका नाम द्रोण पड़ा। कहा जाता था कि जब तक उनकी आंखें खुली हों, उन्हें कोई नहीं मार सकता था। उन्होंने अपने पिता भारद्वाज से तीरंदाजी और दूसरी युद्ध कलाएं सीखीं।

फिर द्रोण परशुराम के पास गए। परशुराम एक महान और क्रोधी ऋषि थे जिन्होंने अपने कुल की क्षति करने पर क्षत्रियों का नाश करने की कसम खाई थी और सैंकड़ों क्षत्रियों को मौत के घाट उतार दिया था। जब परशुराम वृद्ध हो गए तो उन्होंने अपने सभी अस्त्रों को किसी को दे देने का निर्णय किया। ये खास अस्त्र थे, जिन्हें तंत्र विद्या से और शक्तिशाली बनाया गया था। हरेक अस्त्र को चलाने के लिए एक मंत्र था। इस आयु में परशुराम ने लड़ना छोड़ दिया था और वह अस्त्रों को देने के लिए किसी योग्य व्यक्ति की तलाश कर रहे थे। जब द्रोण को इस बारे में पता चला तो वह उनके पास गए और जितने अस्त्र प्राप्त कर सकते थे, उतने ले लिए।