शरीर को भला चंगा रखने की इच्छा से लोग योग सीखने आते हैं। कुछ लोग सुबह टहलने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग अन्य व्यायामों के बारे में पूछकर जानकारी पाते हैं। लेकिन, यदि गौर करें कि क्या ये लोग सीखे हुए योगासन या व्यायामों को नियमित रूप से करते हैं, तो यही पाएँगे कि नहीं करते। उन्हीं से पूछकर देखिए, फट से जवाब मिलेगा, “आज बड़ी थकान है। कल से मैं बिना नागा करूँगा।”

दरअसल कल से ये लोग टहलने जाएँगे? व्यायाम करेंगे? कोई गुंजाइश नहीं। आप अपनी पसंद का काम किये बिना सुस्ती से बैठेंगे तो खुद आपका मन अपराध-बोध के साथ आपको डाँटेगा, “यह क्या? सुस्ती से बैठे हो? उठो।” आपका अहंकार कभी भी आपको यह स्वीकार करने नहीं देगा कि ‘मैं गैरज़िम्मेदार हूँ।’ आपका अहंकार यही तसल्ली देकर मन को धोखे में रखेगा,‘मैं आलसी नहीं हूँ भई, कल से शुरू करने वाला हूँ।’

कर्नाटक के कुछ गाँवों में एक अंधविश्वास है। लोग यह मानते हैं कि सूर्यास्त के बाद उस इलाके के भूत-प्रेत घरों में घुसने की कोशिश करेंगे। लोगों को इस बात का डर है कि इन भूत-प्रेतों को भगाने की कोशिश करें तो वे गुस्सैल हो जाएँगे फिर उसका नतीजा बहुत बुरा होगा। इसलिए उन लोगों ने एक युक्ति लड़ा रखी है। भूत-प्रेतों को लाल रंग पसंद रहता है, इसलिए उसी रंग में हरेक घर के किवाड़ पर यों लिख देते-‘कल आना'।

कारण पूछें तो लोग कहते हैं, "भूत-प्रेत जब भी आएँ यह सूचना देखकर वापस चले जाएँगे।" किसी काम को आज या अभी करने को कहा जाए तो उसे फौरन करने की ज़रूरत पड़ती है। 'कल’ एक अनागत दिन होता है, कभी न आने वाला दिन।

इसलिए यदि आप अपने स्वास्थ्य से, कामयाबी से, आनंद से, अपने जीवन की ज़रूरतों से कहें 'कल आओ’ तो वे खुशी से निकल जाएँगे। सावधान रहिए। 'कल से...’ यह जुमला मन के अंदर गहराई से जमी हुई चालाकी है। जीवन के कई चरणों पर आपने इस मायाविनी चालाकी को बढ़ावा दिया है।

बस, एक बात समझ लीजिए। हम जिसे 'कल’ कहते हैं उससे हमारा सामना होने वाला नहीं है। वही जब 'आज’ बन जाता है तभी उसका सामना करते हैं। कल नामक समय हमारे जीवन के अनुभव में साकार होने वाला नहीं है।

मन में एक दृढ़ संकल्प। बाहर अनुकूल परिस्थिति। इन दोनों को बना लीजिए, इच्छित कामों को टाले बिना पूरा करने की ताकत अपने आप आ जाएगी।

शंकरन पिल्लै कार मैकानिक के पास गए।

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"क्या आप मेरी गाड़ी के हार्न को बदल सकते हैं ताकि वह और ज़्यादा ज़ोर से बजे?" उन्होंने पूछा।

"हार्न तो सही है" मैकानिक ने कहा।

"ब्रेक काम नहीं कर रहा है। उसकी मरम्मत करने की बनिस्बत हार्न की आवाज़ बढ़ाने का खर्च कम ही होगा, इसी ख्याल से पूछा था" शंकरन पिल्लै ने सफाई दी।

'कल’ कहने का मतलब, ब्रेक को ठीक करने के बजाए ज़ोर से भोंपू बजा कर लोगों को रास्ते से हटवाने के बराबर ही है। कभी भी दुर्घटना का सामना करना पड़ स्कता है।

इस स्थिति को कैसे बदलें?

चाहे घर का काम हो, कोई उद्योग चलाना हो या फिर स्वास्थ्य के लिए कोई व्यायाम हो, पहले उसके लिए अनुकूल परिस्थिति बना लेनी चाहिए। रात को दस बजे के बाद पेट भर पूरी ठूँस लें और सुबह छह बजे योग की कक्षा में जाने की सोचें तो शरीर कैसे सहयोग करेगा?

रात को इस तरह कम खाकर देखिए कि सुबह चार बजे नींद खुल जाए। अपने आप जग जाएँगे। शरीर आप से कहेगा, चलो योग की कक्षा में चलें या टहलने निकलें। लगातार कुछ दिनों तक करके देखिए, उसके बाद किसी को आकर आपको समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। मन में एक दृढ़ संकल्प। बाहर अनुकूल परिस्थिति। इन दोनों को बना लीजिए, इच्छित कामों को टाले बिना पूरा करने की ताकत अपने आप आ जाएगी।

कल

वो दिन जो कभी आया ही नहीं

पर बिगार जरूर देता है हर खेल को

वो दिन जो गुनाहगार है हर हालात का

वो वजह है सभी डर और शर्म की

जीवन की ज्योत को फीका कर देता है दहकने के पहले ही

वो भंगी, जो एक सपना बना देता है जीवन को

असीम को सीमाओं में फंसाकर रखता

वो दिन जो कभी आया ही नहीं

पर दुनिया पर है हुकुम चलाता।