सद्‌गुरुसद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि वास्तविक अर्थों में धर्म एक अंदरूनी कदम है, और एक जीसस या बुद्ध का आना काफी नहीं, हमें सैंकड़ों बुद्ध और जीसस की जरूरत है।

क्या है धर्म का असली अर्थ?

धर्म एक अंदरूनी कदम है। लेकिन धर्म अगर एक या दूसरे समूह से जुडऩा भर रह जाए तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। उससे सिर्फ अलगाव ही उपजा है। 

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दस मिनट पहले वे ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। जैसे ही वे किसी धार्मिक समूह से अपनी पहचान जोड़ लेते हैं, वे लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
उससे सिर्फ संघर्ष ही आया है। इसने लोगों के बीच सिर्फ घृणा ही फैलाई है। जो लोग आज एक साथ हैं, जैसे ही वे अपने धर्म के साथ पहचान जोड़ लेते हैं, वही अचानक अलग-थलग हो जाते हैं। कल वे एक-दूसरे के घर जलाने लगेंगे। दस मिनट पहले वे ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। जैसे ही वे किसी धार्मिक समूह से अपनी पहचान जोड़ लेते हैं, वे लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। अगर वे इन समूहों से नहीं जुड़ते तो कम से कम उनके पास लडऩे का कोई कारण तो नहीं होगा। शायद व्यक्तिगत स्तर पर लोग लड़ेंगे, लेकिन समूह के रूप में लडऩे का उनके पास कोई कारण नहीं होगा। कुछ लोग निजी कारणों से झगड़ते हैं, यह अलग बात है। लेकिन इस तरह सामूहिक रूप से हैवानी शक्ति का प्रदर्शन तो नहीं होगा।

धर्म का अर्थ बिगड़ने से युद्ध पर उतारू हुए लोग

अभी फिलहाल धर्म का मतलब हो गया है समूहों से जुड़ना; धर्म लोगों से यही करवा रहा है।

जैसे ही आप खुद को किसी एक समूह से जोड़ते हैं, आप दूसरे समूह के लिए खतरा बन जाते हैं।
धर्म का मकसद लोगों को देवता बनाना है, लेकिन इसने उन्हें इन्सान भी नहीं रहने दिया। वे जानवर के जैसे बनते जा रहे हैं, क्योंकि जैसे ही आप किसी समूह से जुड़ते हैं, आप उस समूह की रक्षा करना चाहते हैं। आपके अंदर की यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। यह मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। एक बार आप किसी खास समूह से जुड़ गए तो आप हमेशा दूसरे समूह के लिए खतरा बन जाते हैं। जैसे ही आप खुद को किसी एक समूह से जोड़ते हैं, आप दूसरे समूह के लिए खतरा बन जाते हैं। शायद आप सब एक-दूसरे से बातचीत करेंगे, ठीकठाक बर्ताव करेंगे, लेकिन जैसे ही सीमा लांघी गई कि उसी क्षण आप युध्द के लिए उतारू हो जाते है।

शांति की लहर पैदा करने का समय

निश्चित रूप से हर व्यक्ति शांति चाहता है, वाकई में चाहता है। कोई भी संघर्ष नहीं चाहता, पर जिस क्षण वह एक समूह से जुड़ता है, वह लड़ता है, है न?

आज अगर हम इसके बारे में सिर्फ बात करना शुरू करें, कम से कम अगली सहस्राब्दी तक, इस स्थिति में कुछ बदलाव आ सकता है।
व्यक्तिगत स्तर पर अगर आप उनसे बात करें तो पाएंगे कि इस व्यर्थ चीज़ को कोई नहीं चाहता। पर जैसे ही वे किसी समूह के साथ जुड़ते हैं, वे अपनी बुद्धि खो देते हैं और एक अलग किस्म की भावना में जलने लगते हैं। तो, हम शांति की बात क्यों नहीं कर सकते? समय आ गया है कि हम इसकी बात करें। यह नई सहस्राब्दी है, है कि नहीं? आज अगर हम इसके बारे में सिर्फ बात करना शुरू करें, कम से कम अगली सहस्राब्दी तक, इस स्थिति में कुछ बदलाव आ सकता है। अगर आप इस बारे में बात करने का साहस नहीं करते तो आप इस संसार को हमेशा के लिये इसी दशा में छोड़ देंगे।

एक बुद्ध और जीसस से काम नहीं चलेगा

जीसस को सूली पर लटकाने का एकमात्र कारण यही था कि उन्होंने इसके बारे में बोलने का साहस किया था। एक बार फिर लोगों के साथ वही चीजें हो रही हैं। तो, ऐसा नहीं है कि आपने इसे एक बार ठीक कर दिया, तो यह हमेशा ठीक रहेगा। नहीं, इसे निरंतर सुधार की ज़रूरत है, हर वक्त। मात्र एक जीसस से काम नहीं चलेगा; एक बुद्ध से काम नहीं चलेगा। कईयों की आवश्यकता है। केवल तभी इस दुनिया के लिए एक संभावना पैदा होगी, जहाँ मानव स्वस्थचित्त होगा। अन्यथा उसका उग्रवादी बनना जारी रहेगा।