सद्‌गुरु: ऐसे बहुत से तरीके हैं जिनसे आप संसार में हर चीज से संवाद कर सकते हैं। कुछ ऐसे लोग हैं जिनके साथ आप नम्र शब्दों में अपनी बात कहते हैं, कुछ लोगों के साथ आपको स्वर में कठोरता लानी होती है। जैसे कुछ लोगों को उनके इंफेक्शन के हिसाब से इंजेक्शन देना पड़ता है। कुछ लोग बात को तभी समझ जाते हैं जब आप उनकी तरफ़ नज़र घुमाकर देखभर लेते हैं। कुछ लोगों की ओर देखने की भी जरूरत नहीं होती है, मैं आँखें बंद कर बैठा रहूँगा और मेरी बात उन तक पहुँच जाएगी। इस तरह संवाद के भी कई तरीक़े हो सकते हैं। सवाल है कि संवाद का सबसे बेहतर साधन कौन सा है? इसका सबसे बेहतर साधन वही है जिससे आपकी बात सामने वाले को सही तरीक़े से समझ आ जाए। क्योंकि संवाद का मतलब ही ये है कि सामने वाले को बात समझ आनी

 

भाषा सिर्फ एक साधन है

मेरे लिए, भाषा एक साधन मात्र है। मैं एक जगह पर शांत बैठना पसंद करूँगा, लेकिन ऐसी दशा में बहुत कम लोग मेरी बात समझ सकेंगे। इसलिए बहुत बोलना पड़ता है - कई बार कोमलता से, कई बार कठोरता से और कई बार आग बरसाने वाले शब्दों में अपनी बात कहनी पड़ती है। ऐसा केवल इंसानों के बीच ही नहीं है, यह नियम सब पर लागू होता हे। कुछ लोगों के लिए, सब कुछ जैसे अनुकूल और मददगार होता है, जैसे उनका भोजन, पानी, साँस लेने वाली वायु, पैरों के नीचे की ज़मीन, धरती के सारे जीव। हर चीज़ उनकी मदद कर रही होती है, जबकि कुछ जीवों को देख कर लगता है मानो सब कुछ ही उनके ख़िलाफ़ हो गया हो। यह संवाद से जुड़ा मुद्दा है।

संवाद केवल भाषा से नहीं होता। संवाद केवल एक संदेश भर भी नहीं है। यह कई जीवन-बलों के बीच लेन-देन की बात है। अगर आप ख़ुद को पूर्ण व्यक्ति मानते हैं, ‘ऐब्सलूट इंडिविज़ूअल’ मानते हैं, तो आपसे संवाद करना कठिन होगा। अगर आप समझते हैं कि आप केवल जीवन का एक अंश हैं और आपके पास अपनी इंडिविज़ूऐलिटी(अलग व्यक्ति होना) का थोड़ा सा भाव है, तब आपके साथ संवाद स्थापित करने में मुश्किल नहीं होगी। इस बात से मुझे हाल ही में, घर पर हुई एक घटना याद आ गई।

 

योग की स्थिति हो, तो कहे बिना ही काम हो जाता है

महाशिवरात्रि के आसपास हमारे यहाँ कुछ मेहमान आए थे, और कुछ चूहे और गिलहरी भी थे। मुझे उनसे कोई परेशानी नहीं थी पर वे सारी रात फर्श पर भाग कर ऊधम मचाते रहते। मैंने किसी से कहा, ‘अगर बाग में दो सांप होते तो वे इनको क़ाबू में रख सकते थे।’ फिर एक शाम, जब मैं बाग में जा रहा था तो छह फुट लंबा सांप दिखाई दिया। मैंने सोचा, ‘ये तो अच्छी बात है। पर एक ही क्यों है, दो क्यों नहीं हैं?’

अगली सुबह, साढ़े दस के करीब घर के डरे हुए लोग मेरे पास आए और बोले, ‘सद्‌गुरु, आपके बाथरुम में एक बहुत बड़ा सांप है।’ वह मेरे बाथरुम में कैसे आया? हम कभी दरवाजे खुले नहीं छोड़ते क्योंकि पहले भी रेप्टायल्स(साँपों और रेंगने वाले जीवों) के साथ हमारे कई अनुभव हो चुके हैं। घर का नियम यही है कि आप भीतर और बाहर निकलते हुए दरवाजा बंद करें। सांप को उस जगह तक जाने के लिए तीन दरवाजे पार करने पड़े होंगे। किसी न किसी तरह, वह हर बार दरवाजा खुलने पर आगे बढ़ा होगा। ख़ैर, मैंने उसे उठाया और बाहर छोड़ दिया। मैं अब भी यही सोच रहा था कि एक ही क्यों है? कुछ ही देर बाद, एक और छोटा सांप दिखा जो चार फीट लंबा था। मैंने कहा, ‘यह अच्छी बात है। यह सब ऐसे ही होना चाहिए।’

जिन बातों की आप कल्पना नहीं कर सकते, जिन बातों के बारे में आपको पता न हो, वे आपके साथ घटित होनी चाहिए - तभी ये जीवन घटित होगा, यह सब संवाद का ही प्रभाव है।

यह जीवन ऐसा ही है। अगर आप योग की स्थिति में हों तो आपको कहना भी नहीं पड़ता, और आप जो चाहते हैं, वह स्वयं ही घट जाता है। ऐसा केवल बाग के सांपों के मामले में नहीं होता - जीवन के हर पहलू में ऐसा ही होता है। अगर आप चाहेंगे तो आप कुछ ऐसा चाहेंगे जो आप जानते हैं। यह जीवन की बरबादी होगी। जीवन में ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें चाहने से क्या लाभ, जिन्हें आप पहले से जानते हैं? जिन बातों की आप कल्पना नहीं कर सकते, जिन बातों के बारे में आपको पता न हो, वे आपके साथ घटित होनी चाहिए - तभी ये जीवन घटित होगा, यह सब संवाद का ही प्रभाव है।

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संवाद शब्द के मायने

जब मैं ‘संवाद’ शब्द का बोलता हूँ, तो लोगों को लगता है कि फोन पर बात करने या मैसेज देने की बात हो रही है। वह भी संवाद है, लेकिन उस तरह का संवाद केवल सामाजिक परिस्थितियों के लिए बना है, उसका कोई और लाभ नहीं है। सामाजिक हालात आपका ध्यान भटका सकते हैं - वे आपको संतुष्टि का एहसास नहीं देते। सामाजिक मेल-जोल भी कुछ समय तक ध्यान भटका कर मनोरंजन करते हैं,लेकिन वे आपके संतोष के लिए कुछ नहीं करते क्योंकि ऐसा करना उनका स्वभाव नहीं है। यह बहुत महत्व रखता है कि अगर आप कहीं बैठे हैं, तो आपका अपने आसपास की हर चीज के साथ गहरा संवाद होना चाहिए। न कुछ कहना, न कोई संदेश देना, केवल आपके और आसपास की चीजों के बीच एक जुड़ाव का भाव। योग यानी संयोग, जब आप यहाँ बैठे हैं तो आपकी इंडिविज़ूऐलिटी(अलग इंसान होने का भाव) एक छोटा अंश भर हो, जबकि जीवन एक बहुत विशाल हिस्सा हो। जीवन कभी बूँदों में नहीं घटता - यह अपने-आप में एक बड़ी घटना है।

 

ब्रह्माण्ड में आप धूल के कण के बराबर हैं

हम असल में इस ब्रह्माण्ड का बस एक हिस्सा हैं, लेकिन अस्तित्व ने हमें एक ख़ास सुविधा दी है – कि हम एक अलग इंसान के रूप में महसूस करते हैं। हालांकि हम सही मायनों में कुछ नहीं, हम इस सृष्टि में धूल के कण भर हैं, पर फिर भी यहीं बैठे-बैठे एक अलग व्यक्ति की तरह महसूस कर सकते हैं। यही इस सृष्टि की उदारता(बड़प्पन) है। अस्तित्व के साथ आपके संवाद की योग्यता और मेलजोल इस बात पर निर्भर करती है कि आपकी इंडिविज़ूऐलिटी(अलग इंसान होने की भावना) कितनी कम है। आप ख़ुद को इतना बड़ा मान लेते हैं, पर सही मायनो में इस ब्रह्माण्डीय आयाम में, जिसका आप आदि और अंत तक नहीं जानते, आप इसका एक कण मात्र भी नहीं हैं। परंतु यही कण जाने क्या-क्या कल्पनाएँ करता रहता है। और आपका जीवन धीरे-धीरे बीत रहा है। इसके बावजूद, आप निरंतर खुद से इसी बारे में बकवास कहते रहते हैं कि आप कौन हैं।

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संवाद ऐसा होना चाहिए जैसा दुनिया के लिए जरुरी हो, काम ऐसे होने चाहिए, संसार में जिनकी ज़रूरत हो। आप अपने भीतर कैसे हैं, यह एक अलग बात है।

पर अगर आप कुछ नहीं हैं तो आप इस संसार में काम नहीं कर सकते - आपको कुछ तो होना ही होगा। हाल ही में किसी ने मुझसे कहा, “सद्‌गुरु, इन दिनों आप अचानक बहुत गुस्से में बोलने लगते हैं।”

मैंने कहा, “हमेशा।”

“नहीं, सद्‌गुरु, कृपया ऐसा न करें। देख कर लगता है मानो आपने अपनी ‘कूलनेस’ खो दी हो।”

मैंने कहा, “अगर मैं कभी ‘कूल’ था ही नहीं,तो अपनी ‘कूलनेस’ खोने का सवाल ही कहाँ है? मैं तो हमेशा से एक ज्वालामुखी की तरह था जो फटने के इंतज़ार में रहता है।”

संवाद ऐसा होना चाहिए जैसा दुनिया के लिए जरुरी हो, काम ऐसे होने चाहिए, संसार में जिनकी ज़रूरत हो। आप अपने भीतर कैसे हैं, यह एक अलग बात है। आदियोगी को देखिए - ज्वलंत। और अतीत के महान योगियों को देखिए - वे सभी इसी तरह अग्नि से भरे रहते थे। केवल कैलेंडरो में दिखने वाले योगी ही चेहरे पर कोमल भावों के साथ दिखाए जाते हैं।

 

जीवन में धीमी आंच से जलने का समय नहीं है

जीवन और इसके बहुत सारे रूपों को तीव्र ताप में प्रकट होने की जरुरत है। धीमी आँच से जलने का समय नहीं है। जो बहुत ही दुखी और फंसा हुआ हो, सिर्फ उसे जीवन पहाड़ जैसा लगता है क्योंकि उन्होंने कभी एक इंसान से जुड़ी असीम संभावनाओं को नहीं जाना। वे कुछ चीजों, लोगों और अपने आसपास सामान इकठ्ठा करके अपना जीवन सुन्दर बनाना चाहते हैं। अगर आप मनुष्य होने की विशालता की खोज करना चाहें, तो ऐसा करने के लिए यह जीवन वास्तव में बहुत ही छोटा है। अगर यह छोटा है तो ये बहुत अहम हो जाता है कि आपमें अग्नि पूरी तेज़ी से चमके। नहीं तो इससे पहले कि आप कुछ समझेंगे, आपकी चिता की अग्नि आपको जला देगी। जीवन के अंत में अग्नि दिखेगी पर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। आप पूरे जोश के साथ चलें या फिर किस्तों में धीरे-धीरे चलें।

जो लोग अनंतकाल तक किस्तों में जाना चाहते हैं - आप सबको हमारी शुभकामनाएँ! ऐसा कभी नहीं होता कि आप एक, दो, तीन गिनते हुए किसी दिन अनंत तक पहुँच जाएँगे।

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जो लोग अनंतकाल तक किस्तों में जाना चाहते हैं - आप सबको हमारी शुभकामनाएँ! ऐसा कभी नहीं होता कि आप एक, दो, तीन गिनते हुए किसी दिन अनंत तक पहुँच जाएँगे। अगर आप जीरो हो जाते हैं, अगर आप वास्तव में कुछ नहीं बनते तो आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। पर तब आप संसार में काम नहीं कर सकते। वह अवस्था भी सुंदर है, लेकिन तब आपको अपने आसपास के लोगों की मदद की ज़रूरत होगी। लेकिन अगर आप पूरी तरह से इससे जुड़ कर, संसार में भी काम करना चाहते हैं तो आपको अपने भीतर आग पैदा करनी होगी। इसका मतलब यह नहीं कि आपको हर जगह उसे दिखाना है। अगर सामने वाला व्यक्ति उसका अधिकारी हो, तो कभी-कभी आप आग दिखा सकते हैं।

 

अतीत के पद चिन्ह

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परेशानी तब पैदा होती है, जब आप मजबूरी में गर्म या ठंडे पड़ जाते हैं। क्या आप जागरूक होकर कुछ करते हैं या विवश होकर – यही फर्क है। आग की गर्मी और ठंडा पानी, क्या ये चीज़ें जागरूक होकर की जा रही हैं,या वे इसलिए हो रही हैं क्योंकि आपने मजबूरी भरा स्वभाव बना लिया है। मजबूरी वाले स्वभाव का मतलब है दोहराव - दोहराव यानी अतीत आपके वर्तमान पर हावी हो कर भविष्य में भी घुसपैठ कर रहा है।

अगर आपके भविष्य में भी अतीत के पैरों के निशान हैं तो यह जीवन बहुत ही भयंकर होगा। तभी हम आपके लिए ‘हॉरर-स्कोप’ (जन्म-कुंडली) लिख सकते हैं और बता सकते हैं कि आप कैसा जीवन जीने जा रहे हैं। ‘होरोस्कोप’ सिर्फ उनके लिए सच होती है जो अपने भविष्य में अतीत को घुसने की इजाज़त देते हैं। अगर आप सजग हों तो आप अपने होरोस्कोप या कुंडली को आग लगा सकते हैं। जब आप सजग होंगे तो अतीत ख़ुद को दोहरा नहीं सकेगा। यह बहुत महत्व रखता है कि आपका हर विचार, हर भाव, हर कर्म, आपका सब कुछ सजग भाव से घटे। आपके सजग रहने तथा बाकी ब्रह्माण्ड के साथ संवाद करने की योग्यता एक ही बात है। अगर एक छोटा सांप भी सजग होकर सुन सकता है, तो आपके साथ क्या दिक्कत है?

 

अपने जीवन के बारे में सब कुछ जानने की चाहत

अगर आपने ख़ुद को इंडिविज़ूऐलिटी(अलग इंसान होने का भाव) के क़िले में क़ैद कर लिया है और फिर संवाद करना चाहते हैं, तो यह काम नहीं करेगा। अगर आप सजग होंगे तो स्वभाविक तौर पर इस किले की दीवार में छेद होने लगेंगे। अगर आप सच में सजग हो जाएँगे, तो आप पारदर्शी हो जाएंगे। तब सब कुछ आर-पार दिखने लगेगा। आप या तो अपनी पहचान को विलीन दें या हम इसे आपके लिए घिस देंगे। घिसना एक पीड़ादायक प्रक्रिया होगी। अगर आप इसे विलीन कर सकें तो यह एक सुंदर प्रक्रिया होगी। इसे घिसने में समय लगता है। जीवन भी लोगों को कुछ समय में घिस देता है, पर वह एक भद्दा तरीका है। अगर आप चाहते हैं कि आपके और संसार के साथ कुछ असली चीज़ हो तो उसके लिए यही समय और जगह है। केवल आपको सही मायनों में ईमानदार बनना होगा। नहीं तो आप सबको ताकते हुए यही पूछते रहेंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है, वैसा क्यों हो रहा है? अगर आप सही मायनों में कुछ तलाशना चाहते हैं तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कुछ क्यों हो रहा है? यह इस बारे में नहीं है, ‘मुझे क्या मिलेगा? क्या मुझे आत्म-ज्ञान मिलेगा? क्या मुझे यह या वह मिलेगा’?’ यह सब इस बारे में है कि आप अपने अस्तित्व की चरम क्षमता को जानें।

क्योंकि जब आप इतने बड़े दिमाग के साथ दुनिया में हैं, तो इस समझदारी और सजगता के होते आपको पता लगाना चाहिए कि ये जीवन किस बारे में है। आपको यहाँ से जाने से पहले, पता होना चाहिए, ‘मेरे अस्तित्व का स्वभाव क्या है? इसकी संभावना क्या है?’ आप उन सबको एक्सप्लोर(खोज) करने जा रहे हैं या नहीं, यह अलग बात है,लेकिन कम से कम आपको पता तो हो कि वे क्या हैं। अगर आप जीवन से अछूते रहना चाहते हैं तो कब्र ही सबसे बेहतर जगह होगी। लोग मेरे पास आते हैं, सद्‌गुरु, आशीर्वाद दें कि मेरे साथ कुछ न हो।’ ये कैसा आशीर्वाद है? मेरा आशीर्वाद है, ‘जीवन में जो भी है, वह सब आपके साथ घटे।’

आप भले ही कितना भी कानून क्यों न थोप दें, लोग अलग-अलग तरह से ये काम करते ही रहेंगे। इस हालात को बदलने का केवल एक ही तरीका हो सकता है कि इंसान ख़ुद को बदल ले।

 

जब तक आप जीवित हैं, तब तक कुछ न कुछ होता रहेगा। सवाल यही है कि क्या आप जीवन के लिए तैयार हैं? क्या आप मानसिक, भौतिक और सजग भाव से, जो भी हो रहा है, उसे संभालने को तैयार हैं? ‘नहीं, सद्‌गुरु मेरे साथ सचमुच कुछ भयंकर हो गया।’ नहीं, केवल जीवन घट रहा है। कोई जन्म ले रहा है, कोई मर रहा है, कोई यहीं है, कोई चला गया है - यही सब हो रहा है। कुछ लोग सुंदर काम कर रहे हैं, कुछ लोग बुरे काम कर रहे हैं। ऐसा हमेशा से होता आया है। मैं इंसानों के हर बुरे काम को ठीक नहीं बता रहा, पर अगर आप इसे रोकना चाहें तो आप इसे केवल कानून के बल पर नहीं रोक सकते। आप भले ही कितना भी कानून क्यों न थोप दें, लोग अलग-अलग तरह से ये काम करते ही रहेंगे। इस हालात को बदलने का केवल एक ही तरीका हो सकता है कि इंसान ख़ुद को बदल ले। मानव जाति में रूपांतरण के लिए विशाल स्तर पर साधन उपलब्ध हों। नहीं तो आप इंसानों द्वारा इस ग्रह पर किए जाने वाले गंदे कामों को नहीं रोक सकते।

हम इस बात को नहीं समझते कि इंसान होना का बुनियादी मतलब क्या है। हमने जीवन की बुनियादी बातों को बिलकुल नहीं समझा है। हम जिस तरह से अपने संसार, अपनी शिक्षा, अपने व्यवसाय आदि को चला रहे हैं, हमने बुनियादी तत्व खो दिया है। कम से कम, संवाद की तकनीकों के मामले में तो हम उस बिंदु पर आ गए हैं, जहाँ अगर हम चाहें तो एक ही जगह बैठ कर, सारी दुनिया से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

संवाद के ये अद्भुत साधन तथा इंटरनेट आदि को बुरे से बुरे कामों के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा है। हर रोज, कई हजार बच्चे इंटरनेट पर बेचे जाते हैं, नशीले पदार्थों का सौदा होता है, हथियार खरीदे-बेचे जाते हैं - सब तरह की बातें हो रही है। इससे भी परे, जब हम दूसरों के साथ बुरे काम करने के लिए अपने बच्चे भी बेचने लगें तो जान लें कि सब खत्म हो गया है। हमने पूरी तरह से अपनी मानवता खो दी है। मुझे लगता है कि किसी आध्यात्मिक संगठन की तरह शांत और मौन भाव से चलने का समय नहीं रहा। हमें हर चीज को रॉकेट की रफ़्तार से करना होगा।

 

क्या आप कोई भविष्यवाणी या योजना चाहते हैं?

इसे पूरी गति से बढ़ाना होगा, हम अगले कुछ माह में यही करने जा रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि आप सभी इसमें हिस्सा लें। यह आंदोलन, मानवता को धर्म से उत्तरदायित्व की ओर ले जाने के लिए है। लंबे समय से, हम जो भी बुरा काम करते हैं, उसके लिए ईश्वर को दोषी ठहराते आए हैं। अच्छे कामों को श्रेय हम ख़ुद ले लेते हैं। आज किसी को चोट लग गई तो कहा जाएगा कि भगवान की मर्जी थी। ये चीज़ बदलनी होगी। अब समय आ गया है कि मानवजाति अपनी मूर्खताओं के लिए स्वयं जिम्मेदारी लेना सीखे। और साथ ही अपनी संभावनाओं के लिए भी। उसके साथ ही हमें अपने अच्छे और बुरे - दोनों तरह के कामों का उत्तरदायित्व लेना होगा। हम आने वाले कल में क्या करने जा रहे हैं, इसका उत्तरदायित्व भी हमारा ही तो है।

मैं चाहता हूँ कि ये सभी काम पूरे रफ़्तार से किए जाएँ।

लोग मुझसे पूछते रहते हैं, ‘सद्‌गुरु, आपके अनुसार आज से पचास साल बाद दुनिया कहाँ होगी?’ मैं उनसे पूछता हूँ, ‘आप कोई भविष्यवाणी चाहते हैं या योजना?’ जितने भी मूर्ख योजना नहीं बना सकते, वे कोई भविष्यवाणी तलाश रहे हैं। सृष्टि ने आपको इतनी समझ दी है कि आपके भीतर कई बड़े काम करने की संभावना है, पर आप कोई अच्छी योजना बनाने की बजाए किसी बेवकूफ भविष्यवाणी की राह देख रहे हैं। सवाल यह पैदा होता है कि हम किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा करने के लिए आपको इंसानों को सशक्त बनाना होगा। उनके मन और उनके शरीर से भी परे उन्हें क्षमतावान बनाना होगा। उनको उनसे परे की किसी चीज़ का स्वाद चखाना होगा। हम अपनी ओर से यही बुनियादी काम कर रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि ये सभी काम पूरे रफ़्तार से किए जाएँ।

संवादकेवल भाषा से नहीं होता। संवादकेवल एक संदेश भर भी नहीं है। यह कई जीवन-बलों के बीच गहन लेन-देन की बात है। अगर आप ख़ुद को पूर्ण व्यक्ति मानते हैं, ‘ऐब्सलूट इंडिविजूअल’ मानते हैं, तो आपसे संवाद करना कठिन होगा।