Sadhguruबुढापा बढती आयु से नहीं बल्कि बोझ से आता है। सद्‌गुरु कहते हैं कि अधिक उम्र का व्यक्ति भी युवा हो सकता है यदि उसने ज़िंदगी को बोझ या संघर्ष नहीं बल्कि सिर्फ जीवन की तरह जिया हो। एक साधक ‘पर्मानेंट’ युवा होता है।

प्रश्नःकोई इंसान कैसे हरदम युवा बना रह सकता है, सद्‌गुरु? कभी-कभी ऐसा लगता है कि जीवन मुझे खींचे जा रहा है।
सद्‌गुरु: एक साधक हमेशा युवा होता है। युवा होने के लिए शरीर की भौतिक आयु कोई मायने नहीं रखती। साधक होने के लिए आपको शाश्वत युवा होना पड़ता है। जिस दिन आप बूढ़े होते हैं, उस दिन सब खत्म हो जाता है। वैसे भी उत्साह में आप कैसे बूढे़ हो सकते हैं? उत्साह में तो आप तभी बूढे़ होंगे, जब आप अपने अतीत को ढोते रहेंगे या आप उसका बोझ लेकर चलेंगे। मान लीजिए अगर आप पर किसी तरह कोई बोझ नहीं है तो आप बिल्कुल एक नवजात शिशु की तरह होते हैं। अगर आप अपने साथ साठ साल का बोझ ढो रहे हैं, तो आप साठ साल के लगेंगे। भौतिक शरीर में भले ही सीमाएं विकसित हो जाएं, लेकिन आप जिस तरहे से जीवन जी रहे हो, उसकी कोई सीमा नहीं होती। आप इतना साल के हैं या उतने साल के, इसका सीधा सा आशय हुआ कि आप अपने साथ उतने सालों का कूड़ा ढो रहे होते हैं।

जन्मदिन मनाना और यह याद करना कि आप इतने साल के हो गए हैं, यह सुनिश्चित करता है कि आप मील के पत्थर तय करने में विश्वास करते हैं। मेरे खेतों में काम करने वाला एक मजदूर हुआ करता था, जो एक बहुत साधारण आदमी था। उसकी मासूमियत दिल को छू जाती थी। वह लगभग पचास साल का था। अगर आप उससे उसकी उम्र के बारे में पूछते, तो शायद उसका जवाब होता, ‘शायद मैं बीस-पच्चीस का हूँ।’ वह इतना भोला था कि उसे सालों की भी समझ नहीं थी। वह यह सब नहीं जानता था, अगर वह कुछ जानता था तो बस इतना कि जब बारिश होगी, वह खेत जोतेगा, फिर वह बीज डालेगा। जब भोजन आएगा, वह खा लेगा। उसके लिए जीवन यूं ही चला जा रहा था, जाहिर है ऐसे में उसे उम्र से कोई लेना-देना नहीं था। संभवतः वह मूढ़ या मूर्ख था। लेकिन जब एक विवकेशील व्यक्ति इस तरह से जीता है, तो वह एक संत हो जाता है। वह मजदूर अपने अतीत के बोझ को न ढोता हुआ, अनजाने में वह एक साधु था। एक-एक क्षण, जो आप ढोए जा रहे हैं, उस बोझ के भार को जरा देखें। उस बोझ के चलते आपका चेहरा निचुड़ गया है। आप पर लदा बोझ साफ नजर आता है।

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