वीवीएस लक्ष्मण: प्रिय सद्गुरु, मैं बच्चों की परवरिश के बारे में सत्य को जानना चाहता हूं। मैं एक बच्चे और युवा के रूप में आजादी चाहता था, अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीना चाहता था। मेरे ख्याल से हर पीढ़ी में ऐसा ही होता है। क्या अपने बच्चों को यह आजादी देना और उन्हें अपने फैसले करने देना ठीक है? हमें कहां लकीर खींचना चाहिए या लकीर खींचनी भी चाहिए या नहीं? सही माता-पिता बनने के लिए आप हमें क्या सलाह देंगे?

सद्गुरु: नमस्कारम लक्ष्मण। हमने क्रिकेट के मैदान पर आपकी कलाई में छिपे कौशल का खूब आनंद लिया है। जब बात बच्चों की परवरिश की आती है तो यह विचार कि हमें अपने बच्चों को पालना है, पश्चिम से प्रभावित विचार है। आपको बस उन्हें बढ़ने देना है, उन्हें पालना नहीं है। आप सिर्फ गाय-भैंस पालते हैं, इंसानों को नहीं। आपको बस प्रेम, खुशी और जिम्मेदारी का माहौल बनाना है।

बच्चों को ‘आज़ादी’ शब्द की आदत नहीं पड़नी चाहिए

आपने अपने प्रश्न में ‘आजादी’ शब्द का इस्तेमाल किया। आजादी एक गलत शब्द है। आपको कभी ‘आजादी’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, न ही आपके बच्चों को ‘आजादी’ शब्द का आदी होना चाहिए। आपको उनके कल्याण, उनकी सेहत, उनके विकास और जीवन के हर आयाम के प्रति प्रतिक्रिया करने की उनकी क्षमता के लिए उनके अंदर जिम्मेदारी की भावना लानी चाहिए। इसे उनके जीवन में लाना चाहिए।

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आपको कभी ‘आजादी’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, न ही आपके बच्चों को ‘आजादी’ शब्द का आदी होना चाहिए।

अगर उनके अस्तित्व में आवश्यक जिम्मेदारी हो, तो आजादी उसका सहज परिणाम है। यह आज की दुनिया की एक मूलभूत समस्या है कि हम लक्ष्य केंद्रित हो गए हैं। हमें नतीजे में दिलचस्पी है, प्रक्रिया में दिलचस्पी नहीं है। अगर आप बगीचे में फूल चाहते हैं, तो आपको फूलों की बात नहीं करनी चाहिए। अगर आप एक अच्छे माली हैं तो आप कभी फूलों की बात नहीं करेंगे। आप मिट्टी, खाद, पानी, धूप की बात करेंगे। अगर आप इन चीजों का ख्याल रखेंगे तो सुंदर फूल आएंगे।

आपके मन में बने सख्त ढांचों में बच्चों को मत ढालें

इसी तरह अगर आप किसी बच्चे के सुंदर विकास के लिए जरूरी शर्तों का ध्यान रखते हैं, तो बच्चे अपने आप विकसित होंगे। लेकिन अगर आप उन्हें अपने मन में बने सांचों के मुताबिक पालने की कोशिश करते हैं, तो हर बच्चा विरोध करेगा क्योंकि आपके मन में बने सांचों में कोई जीवन फिट नहीं हो सकता। जीवन को मन के सांचों में फिट नहीं किया जा सकता। मन को हमारे जीवन में फिट होना होगा। इसे समझना होगा।

सबसे बड़कर बच्चों को अपने माता-पिता में कभी नाराजगी, जलन, डिप्रेशन, निराशा, गुस्सा नहीं दिखना चाहिए।

तो बच्चों की परवरिश को लेकर लंबे-चौड़े विचार न पालें। बस प्रेम, खुशी और जिम्मेदारी का एक वातावरण बनाएं। सबसे बड़कर बच्चों को अपने माता-पिता में कभी नाराजगी, जलन, डिप्रेशन, निराशा, गुस्सा नहीं दिखना चाहिए। आप देखेंगे कि आपके बच्चे बहुत बढ़िया तरीके से विकसित होंगे क्योंकि अगर आप प्रक्रिया का ध्यान रखेंगे तो परिणाम अपने आप आएंगे। लेकिन अगर आपका ध्यान नतीजे पर है और आप प्रक्रिया का ध्यान नहीं रख रहे, तो आपका नतीजा या आपका मनचाहा नतीजा बस एक सपना होगा।