सद्‌गुरुसद्‌गुरु बता रहे हैं कि जैसे एक गर्भवती स्त्री एक अन्य जीवन को अपने अंदर समा लेती है, अगर ठीक उसी तरह हम भी पूरे अस्तित्व को अपने अंदर समा सकते हैं तो हम अध्यात्मिक हैं।

हमारे समाज में संतान उत्पत्ति को सिर्फ धरती पर दूसरा जीवन लाने वाली मैथुन क्रिया के रूप में नहीं देखा जाता है। हमने इसके साथ गहन भावनात्मक और सामाजिक अर्थ जोड़ रखे हैं। जरा सोचिए, एक स्त्री के रूप में, एक बच्चे को जन्म देने और उसे बढ़ते हुए देखने में आपको कितनी खुशी और पूर्णता का अनुभव होता है।

संभोग की क्रिया में थोड़ी पवित्रता लाने के लिए, एक स्थिरता की भावना लाने के लिए आप परिवार कायम करते हैं। वरना इंसानों में और कुत्ते-बिल्लियों में कोई अंतर नहीं होता।
बहुत से समाज में “बांझ” स्त्रियों को सताया जाता है। हमारे देश में भी संतानहीन स्त्री को शापित माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सांसारिक दृष्टि में बच्चे पैदा करना पूर्णता की निशानी है। और जो स्त्री अपने शरीर से एक और जीव उत्पन्न करने में असमर्थ होती है, उसे नीची नजर से देखा जाता है।

मातृत्व को देखने के दो नजरिये हैं। पहला यह कि एक स्त्री मैथुन क्रिया के द्वारा मातृत्व प्राप्त करती है, जो पूरी तरह से उसकी शारीरिक लालसा का नतीजा है। दूसरी ओर, एक मनुष्य का किसी दूसरे शरीर से उत्पन्न होना अपने आप में एक चमत्कार है। तो एक तरीके से हम उसे तार्किक दृष्टि से देखकर उससे जुड़ी सारी रुमानियत को नष्ट कर सकते हैं; या हम उसे रहस्यात्मक या आध्यात्मिक बना सकते हैं क्योंकि ये दोनों आयाम मौजूद हैं।

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इन सजावटों को हटा देने से बहुत लोगों के लिए जिन्दगी और अपनी प्रबल कामवासना को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हो सकता है।
एक स्त्री एक शारीरिक क्रिया के कारण मां बनती है क्योंकि उसके शरीर में एक कामना होती है। जो मैं कह रहा हूं, हो सकता है कि वह कुछ आहत करने वाला लगे, लेकिन सच्चाई यही है कि हम इसमें छिपी कामुकता को स्वीकार नहीं कर पाते और शब्दों की आड़ लेने लगते हैं कि यह तो “परिवार शुरू करने” की क्रिया है। जी हां, संभोग की क्रिया में थोड़ी पवित्रता लाने के लिए, एक स्थिरता की भावना लाने के लिए आप परिवार कायम करते हैं। वरना इंसानों में और कुत्ते-बिल्लियों में कोई अंतर नहीं होता।

परंतु जिन्दगी को समझदारी से देखने और उसका सीधे सामना करने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। जीवन की नग्नता बदसूरत नहीं है – यह सौंदर्य का साकार रूप है।

इसलिए इस सच्चाई को स्वीकार करें कि यह साधारण शारीरिक जरूरत वास्तव में हमारी जिन्दगी की एक प्रबल भावना है। प्रमाण के तौर पर देख लीजिए कि हम किस तरह इस जरूरत को लेकर अपने नजरिये को शादी, प्रेम और न जाने किन-किन सामाजिक रस्मों से सजाते हैं।

इस साज-सज्जा में कोई बुराई नहीं है। अधिकतर लोगों के लिए जीवन को उसके असली रूप में देखना एक चीज है और उससे निपटना दूसरी चीज। क्योंकि इन सजावटों को हटा देने से बहुत लोगों के लिए जिन्दगी और अपनी प्रबल कामवासना को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हो सकता है। 

अगर आप पूरे अस्तित्व को इस तरह समेट सकते हैं, जिस तरह एक गर्भवती स्त्री एक दूसरे जीवन को अपने शरीर में रखती है, तब आप वाकई आध्यात्मिक हैं।
अब इसके आध्यात्मिक पहलू की बात करते हैं। गर्भावस्था एक दूसरे जीवन को अपना एक हिस्सा बनाना है। मनोवैज्ञानिक लोग व्यक्तिगत घेरे(स्पेस) के उल्लंघन की बात करते रहते हैं और इधर स्त्रियां हैं जो एक जीवन के निर्माण के लिए अपनी कोख और शरीर को समर्पित कर देती हैं। अपनी जगह किसी के साथ बांटना ही प्रेम है।

क्या आपने ध्यान दिया है कि कुछ महिलाएं अपनी गर्भावस्था के दौरान कितनी सुंदर हो जाती हैं? सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि हर तरीके से! जब आप किसी को अपने शरीर और जीवन में एक अंश के रूप में शामिल कर लेते हैं, तो यह आपके लिए एक व्यापक अनुभव होता है।

इस रूप में आध्यात्मिकता गर्भावस्था के समान है। अगर आप पूरे अस्तित्व को इस तरह समेट सकते हैं, जिस तरह एक गर्भवती स्त्री एक दूसरे जीवन को अपने शरीर में रखती है, तब आप वाकई आध्यात्मिक हैं।