हाल ही में हुई आतंकवादी घटनाओं को लेकर सद्‌गुरु अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सख्त कदम लेने का समाधान भी सुझा रहे हैं। आइये जानते हैं इन कदमों के बारे में ?

सद्‌गुरुयह गहरी चिंता और खेद का विषय है कि आजकल देश में आतंकी हमलों और बम धमाकों में निर्दोष लोगों की जानें चली जाना एक आम बात हो गई है। आतंकवाद का मकसद युद्ध नहीं बल्कि समाज को भय से पंगु कर देना होता है। उनका लक्ष्य लोगों के बीच आतंक फैलाना, समाज को बांटना, देश के आर्थिक विकास को पटरी से उतारना, हर स्तर पर तनाव, हिंसा और अराजकता पैदा करना – दूसरे शब्दों में देश को एक विफल राष्ट्र में बदल देना होता है।

सभी तरह की हिंसा में, धर्म से प्रेरित आतंकवाद सबसे खतरनाक होता है। किसी और चीज के लिए लड़ने वाले इंसान को आप तर्क से समझा सकते हैं, मगर जब कोई यह मान लेता है कि वह अपने ईश्वर के लिए लड़ रहा है, तो आप उससे तर्क नहीं कर सकते।

दीर्घकालीन समाधान अलग चीज है, मगर ‘ईश्वर के लिए लड़ने’ की इस प्रवृत्ति को पूरी तरह कुचल देना चाहिए, चाहे वह समाज के किसी भी वर्ग से आया हो।
जब लोग दौलत, संपत्ति या किसी और चीज के लिए लड़ते हैं तो उन्हें समझाना आसान होता है क्योंकि वे जीवन के लिए, जीवन-उपयोगी चीजों के लिए लड़ रहे होते हैं। मगर जिन लोगों को लगता है कि वे ईश्वर के लिए लड़ रहे हैं या ईश्वर का काम काम कर रहे हैं, वे मरने और अपने साथ-साथ हम सब को मारने के लिए कुछ ज्यादा ही उत्सुक होते हैं।

हजारों सालों तक विदेशी हमलों, विदेशी अधीनता और घोर गरीबी को झेलने के बाद, यह देश अब जाकर आर्थिक खुशहाली की देहरी पर खड़ा है। यह मौका हमें मुफ्त में नहीं मिला है बल्कि हमसे पहले की पीढ़ियों ने इसके लिए काफी पीड़ा, दुख झेले हैं और बलिदान दिए हैं। इसलिए उनके प्रयासों को कामयाब बनाना और उनके सपनों को साकार करना हमारा कर्तव्य है। यह सच है कि कुछ तत्व इस देश को मजबूत बनते नहीं देखना चाहते। मगर अब समय आ गया है कि हम इन राष्ट्रविरोधी तत्वों के नापाक इरादों को नाकाम कर दें।

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सख्त कदम और फौलादी संकल्प

कुछ ऐसे लोग हैं जो राष्ट्रीयता के विचारों को नहीं मानते, उनके साथ नरमी से पेश नहीं आया जा सकता। अगर हम इस देश की प्रभुसत्ता को बचाए रखना चाहते हैं और इस देश को विकसित करना चाहते हैं, तो निर्दोष लोगों को अंधाधुंध मारने और खुद भी मरने के लिए तैयार इन तत्वों से सख्ती से और दृढ़ संकल्प के साथ निपटा जाना चाहिए। ये तत्व राष्ट्र के सिद्धांतों से सहमत नहीं होते। सड़क पर निर्दोष लोगों, महिलाओं और बच्चों को गोली मारने और उनकी हत्या करने के इरादे से बंदूक या बम लेकर चलने वाले लोगों के साथ दृढ़ता से निपटा जाना चाहिए।

यदि हमें एक राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व बचाना है, तो हमें सीखना होगा कि देश की प्रभुसत्ता को कैसे बरकरार रखा जाए। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जो भी समाज और देश की सामान्य कार्यवाही को खतरे में डालता है, उसे कुचल देना चाहिए। दीर्घकालीन समाधान अलग चीज है, मगर ‘ईश्वर के लिए लड़ने’ की इस प्रवृत्ति को पूरी तरह कुचल देना चाहिए, चाहे वह समाज के किसी भी वर्ग से आया हो।

ये आतंकी हमेशा राजनीतिक मोहरे या किसी और के हाथों का खिलौना नहीं होते। ऐसे तत्वों को बढ़ावा देने वाली शक्तियां हमेशा होती हैं। जब कोई कहता है, ‘आओ अपने ईश्वर के लिए लड़ें और लोगों को मारें’, तो चाहे आप इस काम सीधी हिस्सेदारी करें या नहीं, लेकिन जब तक आप यह मानते हैं कि आपका तरीका ही इकलौता सही तरीका है, आप परोक्ष रूप से ही सही, उसमें शामिल होते हैं। हम अब भी यह मानने को तैयार नहीं कि हमारे बीच ही ऐसे लोग हैं जिनकी सोच ऐसी है, इरादे ऐसे हैं। कहीं न कहीं हमें लगता है कि सीमा पार की शक्तियां उन्हें उकसा रही हैं। मगर बाहरी मदद सिर्फ इसलिए मिल पाती है क्योंकि यहां के लोगों के ऐसे इरादे होते हैं।

बड़ी तस्वीर

इन बढ़ती समस्याओं के लिए ज्यादा बड़े और दीर्घकालीन हल हैं। हमें अलग-अलग सामाजिक, जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों के बीच एक मजबूत जुड़ाव और देश की अखंडता को‍ विकसित करना चाहिए। हमें हर स्तर पर शिक्षा, आर्थिक अवसरों, संपत्ति और हितों का समान बंटवारा सुनिश्चित करना चाहिए।

धर्म से प्रेरित आतंकवाद सबसे खतरनाक होता है। किसी और चीज के लिए लड़ने वाले इंसान को आप तर्क से समझा सकते हैं, मगर जब कोई यह मान लेता है कि वह अपने ईश्वर के लिए लड़ रहा है, तो आप उससे तर्क नहीं कर सकते।
सामाजिक आर्थिक विकास के फायदे हर किसी तक पहुंचें ताकि युवा आतंकवाद की दिशा में न जाएं। समय के साथ इन सभी पहलुओं का ध्यान रखना होगा। मगर फिलहाल इन आतंकी गतिविधियों को मजबूती से कुचलना होगा। इस अराजकता को समाप्त करना होगा।

अगर एक व्यापक दृष्टि से देखें तो हमें देश और दुनिया के लिए हर इंसान, समुदाय और संस्थानों में सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति लानी होगी। समावेश सिर्फ आध्यात्मिक प्रक्रियाओं की मूल प्रकृति नहीं है, बल्कि खुद जीवन का आधार और लक्ष्य भी है।

इस समय यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम धर्म, जाति, वर्ग या राजनीति के संकीर्ण विभाजनों से परे एक देश के रूप में साथ मिलकर खड़े हों, और अपने सुरक्षा बलों को हर स्तर पर अपना काम करने में सहयोग दें। अब समय है कि हम अपनी आध्यात्मिक शक्ति और स्थिरता और किसी समाधान की दिशा में अपने दृढ़ संकल्प को दिखाएं।