कृष्ण को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीकों से देखा, समझा और जाना है। लेकिन जिन लोगों ने अपनी समझ का उपयोग किया, वे कृष्ण की कृपा को नहीं पा सके। उन्हें वास्तव में जानने के लिए दिल में प्रेम होना ज़रूरी है। कृष्ण के आस-पास मौजूद लोगों ने कृष्ण का अलग-अलग रूपों में अनुभव किया। लोगों के अनुभवों में इतना भेद क्यों है

हम अकसर कृष्ण की बात करते हैं। कभी सोचा है कि कृष्ण आखिर हैं कौन? कृष्ण एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं।

दुर्योधन कृष्ण के बारे में कहता है - "कृष्ण एक बहुत ही आवारा और मूढ़व्यक्ति है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक शरारती मुस्कान रहती है।वह प्रेम कर सकता है, झगड़ा कर सकता है, बड़े उम्र की महिलाओं के साथ वह गप्पें मार सकता है, और छोटे बच्चों के साथ खेल भी सकता है। ऐसे में कौन कहता है कि वह ईश्वर है?”
कृष्ण को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीकों से देखा और अनुभव किया है। इसे समझने के लिए दुर्योधन का उदाहरण लेते हैं। वह अपनी पूरी जिंदगी एक खास तरह की स्थितियों से घिरा रहा। इतिहास उसे एक ऐसे शख़्स की तरह देखता है, जो बहुत ही गुस्सैल, लालची और असुरक्षित था। वह हमेशा सब से ईर्ष्या करता रहा और सबका बुरा चाहता रहा। अपनी ईर्ष्या और लालच में उसने जो भी काम किये, वे उसके और उसके कुल के विनाश की वजह बन गए। ऐसा दुर्योधन कृष्ण के बारे में कहता है - "कृष्ण एक बहुत ही आवारा और मूढ़ व्यक्ति है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक शरारती मुस्कान रहती है। वह खा सकता है, पी सकता है, गा सकता है, प्रेम कर सकता है, झगड़ा कर सकता है, बड़े उम्र की महिलाओं के साथ वह गप्पें मार सकता है, और छोटे बच्चों के साथ खेल भी सकता है। ऐसे में कौन कहता है कि वह ईश्वर है?”

महाभारत का ही एक और चरित्र है  - शकुनि। शकुनि को कपट और धोखेबाजी का प्रतीक माना जाता है। वह कहता है - "अगर हम मान लें कि वह भगवान है तो इससे क्या फर्क पढ़ता है।  आखिर भगवान कर क्या सकता है? भगवान बस अपने उन भक्तों को खुश कर सकता है, जो उसकी पूजा करते हैं और उसे प्रसन्न रखते हैं। होने दो उसे भगवान, लेकिन मैं तो उसे बिलकुल पसंद नहीं करता। जब आप किसी को बिलकुल पसंद नहीं करते, तब भी आपको उसकी प्रशंसा करनी चाहिए।"

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कृष्ण की बचपन की सखी और प्रेमिका राधे उनको बिलकुल अलग तरीके से देखती थी। राधा कौन थी? एक साधारण सी गांव की लड़की, जो दूध का काम करती थी। लेकिन राधा के नाम के बिना कृष्ण का नाम अधूरा माना जाता है, क्योंकि कृष्ण के प्रति उनमें अत्यंत श्रद्धा और प्रेम था। हमकृष्ण-राधे कभी नहीं कहते हैं; हम कहते हैं राधे-कृष्ण। एक साधारण सी गांव की लड़की इतनी महत्वपूर्ण हो गयी, जितने कि स्वयं कृष्ण।और कहीं-कहीं तो वे कृष्ण से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है। कृष्ण के बारे में राधा कहती है - "कृष्ण मेरे भीतर हैं। मैं कहीं भी रहूँ, वे हमेशा मेरे साथ हैं। वे किसीके भी साथ रहें, तो भी वे मेरे साथ हैं।"

कृष्ण के बारे में राधा कहती है - "कृष्ण मेरे भीतर हैं। मैं कहीं भी रहूँ, वे हमेशा मेरे साथ हैं। वे किसीके भी साथ रहें, तो भी वे मेरे साथ हैं।"
गोमांतक पर्वत पर रहने वाले गरूड़ के पुत्र थे  - वेन्तेय। वे किसी बीमारी की वजह से पूरी तरह अपंग हो गए थे। जब वे कृष्ण से मिले तो उनकी बीमारी पूरी तरह ठीक हो गयी, और वे अपने दम पर चलने लगे। वे कहते हैं - "मेरे लिए तो कृष्ण भगवान हैं।"

कृष्ण के चाचा अक्रूर एक बुद्धिमान और सज्जन पुरुष थे। उन्होंने कृष्ण के बारे में अपनी सोच को इस तरह बताया है - "इस युवा बालक को देखकर मुझे लगता है मानो सूर्य, चन्द्र, तारे सब कुछ उसके चारों तरफ चक्कर काट रहे हों। जब वो बोलता है तो ऐसा लगता है, मानो कोई शाश्वत और अविनाशी आवाज़ सुनाई दे रही हो। अगर इस संसार में आशा नाम की कोई चीज़ है, तो वह स्वयं कृष्ण ही है। "

शिखंडी के बारे में तो हम सभी जानते हैं कि उसकी स्थितियां कुछ अलग तरह की थीं। बचपन से ही उन्हें काफी सताया गया था। उनकी सुनिए - "वैसे तो कृष्ण ने मुझे उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई है। लेकिन वह जहां भी होते हैं, आशा की एक लहर चलती है जो सबको छूती है। और सबका जीवन बदल देती है।"

अलग-अलग लोगों ने कृष्ण के अलग-अलग रूपों को देखा और समझा है। किसी के लिए वे भगवान हैं तो किसी के लिए धोखेबाज़। कोई उनके अंदर एक प्रेमी के दर्शन करता है, तोकिसी को उनमें लड़ाका नज़र आता है। इसका मतलब यह हुआ, कि उनके एक नहीं कई व्यक्तित्व हैं।

आगे जारी ...