साधना अगर एक सफर है तो इसकी मंजिल क्या है? अगर यह एक प्रक्रिया है तो इसका मकसद क्या है?


चाहे आप कितने भी साल साधना कर लें, आप किसी मंजिल पर नहीं पहुंचेंगे। ऐसा नहीं है कि पहुंच नहीं सकते, आप नहीं पहुंचेंगे। क्योंकि साधना का मकसद कहीं पहुंचना नहीं है। साधना का मकसद तो उस अवस्था में आना है, जहां आप बस यहां मौजूद रह सकें। अगर आप कहीं पहुंचना चाहते हैं, तो ट्रेन पकड़िए, बस पर चढ़िए, दौड़ना शुरू कर दीजिए। साधना का मकसद कहीं पहुंचना नहीं है। साधना का मकसद तो कहीं पहुंचने की इस बेचैनी को बस समाप्त करना है। कहीं जाने की जरूरत से परे जाना ही साधना है, क्योंकि जाने के लिए कोई जगह नहीं है। अगर आप नहीं जानते कि यहां कैसे मौजूद रहना है, तो आप यह नहीं जान पाएंगे कि कहीं और कैसे रहना है।
अगर आप कहीं पहुंचना चाहते हैं, तो ट्रेन पकड़िए, बस पर चढ़िए, दौड़ना शुरू कर दीजिए। साधना का मकसद कहीं पहुंचना नहीं है। साधना का मकसद तो कहीं पहुंचने की इस बेचैनी को बस समाप्त करना है।

कन्नड़ संत बसावा ने कहा था, ‘जो लोग यहां नहीं रह सकते, वे कहीं और भी नहीं पहुंच सकते।’ आप कहीं नहीं पहुंच सकते क्योंकि ऐसी कोई जगह है ही नहीं। जिन चीजों का ज्ञान होना चाहिए, वे सब यहीं और अभी हैं। सिर्फ यही वह जगह है, जहां आप हो सकते हैं। अगर आप जीवित हैं, तो आप यहां और अभी हैं, अगर आप मरते हैं, तो भी आप यहीं और अभी हैं। साधना आपको समझदारी के एक खास स्तर पर पहुंचाने का एक तरीका है, जहां कहीं पहुंचने की जरूरत खत्म हो जाती है। यहीं बैठे रहना काफी है। इसीलिए जो लोग साधना में डूबे होते हैं, वे किसी दिशा में नहीं जाते। वे बस बैठे रहते हैं और जिन चीजों को भी जानने की जरूरत है, उन्हें यहीं बैठे हुए जाना जा सकता है। उसे जानने के लिए आपको दुनिया भर में दौड़ने-भागने की जरूरत नहीं है।

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