सद्‌गुरुपतंजलि योग सूत्रों को योग की महानतम पुस्तकों में से एक माना जाता है। क्या हम इसे पढ़कर योग के बारे में कुछ समझ सकते हैं? जानते हैं कि कैसे ये पुस्तक पढ़ने या समझने के लिए नहीं है, बल्कि ये यंत्रों की एक जटिल व्यवस्था है। 

पतंजलि की ‘योग सूत्र’ एक ऐसी किताब है जिसका हर वाक्य एक कुंजी की तरह है। यह खतरनाक है, बेहद खतरनाक। यही वजह है कि पतंजलि ने भाषा के इस्तेमाल में बेहद सावधानी से काम लिया है। भाषा पर उनका जबर्दस्त अधिकार था। पतंजलि और एक अन्य योगी व्याघ्रपाद के बीच चुहलबाजी होती रहती थी। पतंजलि, व्याघ्रपाद और एक और महान योगी नंदीकेश्वर एक बार साथ-साथ थे। व्याघ्रपाद और नंदीकेश्वर ने पतंजलि को लेकर कुछ चुटकुले मारे, जो अच्छी भावना और हल्के मजाक वाले ही थे। व्याघ्रपाद का मतलब होता है - व्याघ्र यानी बाघ के समान पैर वाला और नंदीकेश्वर वह होता है, जिसके सिर पर सींग हों। संस्कृत वर्णमाला में कुछ अक्षर ऐसे हैं, जिनमें सींग जैसा होता है यानी उनकी लिखावट में अक्षर के ऊपर कुछ निकला होता है और कुछ अक्षर ऐसे होते हैं जिनमें पैर जैसा बना होता है।

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पतंजलि ने कहा, ‘तुम लोग मेरा मजाक बना रहे हो। मैं कुछ ऐसा लिखूंगा, जिसमें सींग और पैर न हों। इसके लिए मैं सिर्फ  बाकी के अक्षरों का ही उपयोग करूंगा।’ ज्यादातर अक्षरों में यह सब था। बचे हुए अक्षरों से ही उन्होंने शानदार रचना की, क्योंकि भाषा पर उनकी पकड़ ऐसी थी जो किसी इंसान की तो नहीं हो सकती। भाषा पर अपनी इसी पकड़ के कारण उन्होंने सूत्रों को इस तरीके से लिखा कि उनका हर हिस्सा एक यंत्र की तरह से हो गया। मैं हमेशा यह बात कहता हूं कि योग सूत्र पढऩे के लिए नहीं हैं, समझने के लिए भी नहीं हैं, उन पर टीका टिप्पणी भी नहीं की जा सकती। अगर आप एक खास तरह के अनुभव तक पहुंच गए तो हर सूत्र विस्फोटक है।

"योग सूत्र" पुस्तक नहीं यंत्र है 

आपको इन सूत्रों के अर्थ जानने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये अस्तित्वपरक हैं। यह सिर्फ  कुछ शब्दों और उनके अर्थों का मेल नहीं है। आप वैसे भी उसके अर्थों के साथ कर ही क्या सकते हैं? ये एक अस्तित्व की तरह मौजूद हैं। इनमें एक तरह का यंत्र मौजूद है। अगर आप इजाजत दें तो ये आपके भीतर एक अलग विशाल आयाम को खोल सकते हैं। इसलिए योग सूत्र, यानी पतंजलि योग सूत्र को एक किताब कह देना सही नहीं है, क्योंकि यह किताब है ही नहीं। यह यंत्रों की एक बेहद जटिल व्यवस्था है। ऐसे शानदार यंत्रों को इतनी बुद्धिमानी के साथ व्यवस्थित किया गया है कि इस तरह की दूसरी चीज का मिलना दूर-दूर तक संभव नहीं दिखता है। अगर ऐसा कभी हुआ भी तो बहुत मुश्किल से होगा, क्योंकि इस तरह के अनुभव वाला कोई शख्स हुआ भी तो शायद वह इस तरह का विद्वतापूर्ण सिरदर्द नहीं लेगा। अगर कोई इतना विद्वान होता है तो वह आमतौर पर अपनी विद्वता में इतना खो जाता है कि उसे कभी कोई अंदरूनी अनुभव नहीं हो पाता। ऐसा शख्स जिसके पास अंदरूनी अनुभव की गहराई हो और विद्वता के साथ-साथ भाषा पर भी जबर्दस्त पकड़ हो, इसके पहले कभी नहीं हुआ।

बड़ी संख्या में लोगों को यह विश्वास ही नहीं होता है कि किसी एक शख्स को जीवन की इतनी गहरी समझ भी हो सकती है। इसी के चलते आजकल विद्वान लोग यह तर्क भी करते रहते हैं कि यह कई लोगों का सामूहिक काम हो सकता है, किसी एक इंसान का नहीं। लेकिन सच्चाई यही है कि यह एक ही इंसान के द्वारा लिखा गया है। खास बात यह भी है कि इसे इतने रूखे और अरुचिकर तरीके से लिखा गया है कि कोई इसे पढऩा ही पसंद ही नहीं करेगा। यह सतही लगता है। शब्द भी सतही हैं। उनके कोई मायने नहीं हैं। बहुत सारे मूर्ख योग सूत्रों की व्याख्या करने की कोशिश कर रहे हैं, वे इन पर बड़ी-बड़ी किताबें लिख रहे हैं। जब तक आप किसी सूत्र को अनुभव न कर लें तब तक आप उसके बारे में कोई भी टिप्पणी करने की स्थिति में हो ही नहीं सकते। आपकी व्याख्याएं सिर्फ व्याख्याएं हैं, जबकि सूत्र तो अपने आप में सत्य का विस्फोट है। वे व्याख्या के लिए नहीं हैं, उन्हें सिर्फ  अनुभव से समझा जा सकता है और अनुभव से ही समझाया जा सकता है। यह कोई किताब नहीं है जिसमें एक से दो सौ सूत्र आप पढ़ लें। अगर आप एक सूत्र का अनुभव कर लें तो आप एक सिद्ध पुरुष बन जाएंगे। अगर आप इन्हें अपने भीतर एक वास्तविकता बना लें तो आपकी चेतना में जबर्दस्त प्रस्फुटन होगा। जिस बुद्धिमानी से भाषा का प्रयोग किया गया है, वह अविश्वसनीय है, सचमुच अविश्वसनीय है। न इससे पहले ऐसा काम हुआ न उसके बाद इस धरती पर किसी ने ऐसा काम किया है।

इनमें किसी अभ्यास की सलाह नहीं है

पूरे पतंजलि योग सूत्र में कहीं भी आपसे किसी भी तरह के अभ्यास को करने की सलाह नहीं दी गई है। वे केवल सूत्र हैं, यानी एक तरह का धागा। धागा किसी हार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। धागे के बिना कोई हार नहीं होगा, लेकिन धागे के कारण आप हार नहीं पहनते। आप इसे इसके फूलों की वजह से पहनते हैं। इसलिए पतंजलि ने केवल सूत्र दिए। अपने आप में ये कुछ भी नहीं हैं। जब आप इसमें सही चीजों को जोड़ते हैं, केवल तभी ये सुंदर बनते हैं। लोग इसे तभी पहनेंगे, जब यह हार बनेगा। इसलिए पतंजलि ने यह सब भविष्य में आने वाले गुरुओं पर छोड़ दिया कि वे इसमें अपने हिसाब से चीजों को जोड़ लें। आप इसमें मोती जोड़ सकते हैं, आप इसमें फूल भी जोड़ सकते हैं, आप इसमें हीरे भी जोड़ सकते हैं। आप क्या जोड़ते हैं, यह आपकी योग्यता पर निर्भर करता है। आपके पास जो है, आप वही जोड़ेंगे।

कहां से आए ये योग सूत्र?

आपको समझना होगा कि पतंजलि ने योग की रचना नहीं की। आदियोगी ने सबसे पहले अपने सात शिष्यों को योग की शिक्षा दी थी, जिन्हें हम सप्तऋषि कहते हैं। जब सप्तऋषि ने इसका प्रसार किया तो यह और विकसित हुआ। समय के साथ इसमें इतनी विशेषज्ञता आ गई कि लोग योग में अलग-अलग तरह की विशेषज्ञता ढूंढने लगे। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे आज मेडिकल साइंस है। यह बेहद विशेषज्ञता प्रधान बनता जा रहा है। आज से पच्चीस-तीस साल पहले अगर आपको स्वास्थ संबंधी कोई समस्या होती थी तो आपके पूरे शरीर के लिए एक ही डॉक्टर काफी होता था। आज आपके दिल के लिए अलग डॉक्टर है, नाक के लिए अलग डॉक्टर है, आपके हर अंग के लिए एक अलग डॉक्टर है। अगले पचास सालों में यह भी हो सकता है कि अगर आपको मेडिकल चेकअप कराने की जरूरत हो तो आपको सौ डॉक्टरों के पास जाना पड़ेगा। यह दिन बहुत दूर नहीं है।

ऐसा ही कुछ बड़े स्तर पर योग के साथ हुआ। सप्तऋ षियों से योग की शिक्षा सात अलग-अलग धाराओं में बंट गई और उसके बाद इन सात की भी सैकड़ों शाखाएं बन गईं। एक समय ऐसा आया कि योग की लगभग साढ़े तीन हजार से अधिक शाखाएं प्रचलन में थीं। यह सब इतना उलझन भरा हो गया था कि सभी शाखाओं को न कोई जानता था, न अभ्यास कर पाता था। जब पतंजलि आए तो उन्होंने समस्त ज्ञान को अपने भीतर समाहित किया और उसे लगभग दो सौ योग सूत्रों में समेट दिया। तो जैसा मैंने कहा कि वे सूत्र हैं और यह हर गुरु पर है कि वह उसमें क्या जोड़ता है। यह सब निर्भर करता है उसकी सिद्धि पर, उसके अनुभव की गहराई पर। तो क्या मैंने पतंजलि योग सूत्र से सूत्र उठाए? नहीं। अगर आप अपने भीतर सिस्टम में देखें, तो आप सूत्र जानते हैं क्योंकि यह अनुभव करने वाला विज्ञान है।