सद्‌गुरुहिमालय में केदारनाथ के रास्ते में एक बहुत ही शक्तिशाली तांत्रिक मंदिर है : भैरवेश्वर मंदिर। ‘ईशा सैक्रेड वाक्स’ द्वारा हर साल हिमालय यात्रा का आयोजन किया जाता है। सद्‌गुरु के साथ इस यात्रा पर गए कुछ लोगों ने सद्‌गुरु से इस मंदिर के रहस्य, मकसद और लाभ के बारे में जानना चाहा। आइए जानते हैं...

प्रश्न : सद्‌गुरु, केदारनाथ के रास्ते में हमनें एक तांत्रिक मन्दिर देखा था। ऐसा मन्दिर बनाने का मकसद क्या था और इससे तीर्थयात्रियों को किस तरह से फायदा होता है?

मुक्ति नहीं, शक्ति के लिए है ये मंदिर

सद्‌गुरु : केदार के रास्ते में आने वाला तांत्रिक मन्दिर, जिसे भैरवेश्वर मन्दिर के नाम से जाना जाता है, आम तीर्थयात्रियों के लिए नहीं बनाया गया है।

यह मन्दिर आम तीर्थयात्रियों के लिए नहीं बना है। इसीलिए इस मन्दिर को बहुत छोटा और मामूली तरीके से बनाया गया है, ताकि लोग भी उसे ज्यादा महत्व न दें और न ही वहां ज्यादा वक्त गुजारें।
यह एक खास तरह के लोगों के लिए बनाया गया है, जो अपने जीवन में साधना के एक खास स्तर, ग्रहणशीलता और निपुणता के एक खास स्तर तक पहुंच चुके हैं। यह ऐसे साधकों के लिए है, जिन्हें कुछ खास आयामों में मदद की जरूरत है। देखिए, यह कोई मुक्ति के लिए संभावना नहीं है। एक तरह से यह तांत्रिक मन्दिर एक सलाहकार की भूमिका अदा करता है - खासकर उन लोगों के लिए जो क्रिया के मार्ग पर हैं और जो अपनी ऊर्जाओं को रूपांतरित करने के लिए गहरी प्रक्रियाएं कर रहे हैं, लेकिन जिनके लिए कुछ खास आयाम उलझे हुए हैं, या उनमें कुछ रुकावटें हैं। यह मन्दिर आम तीर्थयात्रियों के लिए नहीं बना है। इसीलिए इस मन्दिर को बहुत छोटा और मामूली तरीके से बनाया गया है, ताकि लोग भी उसे ज्यादा महत्व न दें और न ही वहां ज्यादा वक्त गुजारें। उस दिन भी शायद केवल हम लोग ही वहां मन्दिर में जाकर बैठे थे; ज्यादातर लोगों ने तो इस मन्दिर की तरफ ध्यान भी नहीं दिया होगा। तो यह मन्दिर सिर्फ उन लोगों के लिए है, जो चेतना के एक खास स्तर तक पहुंच चुके हैं।

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क्या ऐसे मंदिरों में पूजा कर सकते हैं?

प्रश्न : क्या हम ऐसे तांत्रिक मंदिरों में जाकर पूजा कर सकते हैं?

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सद्‌गुरु : ऐसे तांत्रिक मन्दिर वास्तव में आपकी आम तरह की पूजा के लिए नहीं बने हैं। वैसे आपको पूजा और प्रार्थना के बीच के फ र्क को अच्छी तरह समझने की जरूरत है।

इसलिए जब हम तांत्रिक मन्दिरों की बात करते हैं, तो वहां प्रार्थना का कोई मतलब नहीं है। तंत्र कोई आध्यात्मिकता नहीं है।
हो सकता है कि आप बस प्रार्थना करना जानते हों, आप कोई पूजा या उपासना नहीं जानते हों। शैव संस्कृति में, सृष्टा से कुछ करने के लिए कहना अभद्र माना जाता है। क्योंकि प्रार्थना का मतलब तो यह हुआ जैसे कि ईश्वर नहीं जानता कि उसे क्या करना चाहिए। वैसे भी अगर वह जानता ही नहीं कि आपको किस चीज की जरूरत है तो उससे मांगने का मतलब ही क्या है। तो पूजा आपके अन्दर कुछ खास अवस्था पैदा करने के लिए एक व्यापक पद्धति और प्रक्रिया है। यह एक तरह की साधना है, भक्त के लिए एक तरह की क्रिया है। क्रिया और कर्म में भी अंतर है। अपने शरीर या अपने मन या अपनी भावनाओं के साथ जो काम आप करते हैं, वह कर्म कहलाता है। जबकि जो कार्य अपने भीतर किया जाता है, वह क्रिया कहलाता है। इसलिए पूजा या पूजा के भाव से किया गया काम, क्रिया है।

तो हम जिसे पूजा कहते हैं, वह एक ऐसी क्रिया है, जिसके साथ भक्ति जुड़ी है। यह कुछ खास तकनीकों और भावनाओं का एक जटिल मेल है। वैसे भावनाएं और टेक्नोलॉजी एक बहुत ही खतरनाक मेल है, अगर उसे सही ढंग से न संभाला जाए। इसलिए जब हम तांत्रिक मन्दिरों की बात करते हैं, तो वहां प्रार्थना का कोई मतलब नहीं है। तंत्र कोई आध्यात्मिकता नहीं है। तंत्र बस एक तकनीक है, एक व्यक्तिनिष्ठ तकनीक, यानी यह करने वाले पर निर्भर करेगी। वैसे यह एक भौतिक तकनीक है, इसलिए मैं ‘व्यक्तिनिष्ठ’ शब्द का इस्तेमाल करने में हिचक रहा हूं; लेकिन फि र भी यह व्यक्तिनिष्ठ ही है, क्योंकि आप किसी बाहरी चीज का इस्तेमाल नहीं करते। इन सब चीजों को करने के लिए आप सिर्फ अपने शरीर, मन और ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे होते हैं।

तंत्र का इस्तेमाल पहली सीढ़ी की तरह हो सकता है

तंत्र के कुछ दूसरे आयाम हैं, जिनका इस्तेमाल आध्यात्मिक प्रक्रिया में आगे बढऩे के लिए पहले कदम की तरह कर सकते हैं, क्योंकि कई मायनों में तंत्र भौतिकता का आखिरी कदम है।

पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है।
भौतिक का जो सबसे गूढ़ और सूक्ष्म पहलू है, हम उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। चूंकि यह भौतिक की चरम सीमा है, इसे भौतिक के परे जाने के लिए पहली सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए कई तरह के मंत्र और अभ्यास हैं, अलग-अलग तरह की पूजाएं हैं और कई दूसरे तरीके हैं, जिनसे ऐसी शक्तियों और रूपों का आह्वान किया जा सकता है, जो बहुत शक्तिशाली हैं।

क्या आप पुरुष और प्रकृति के बारे में कुछ जानते हैं, क्या आप इसका मतलब जानते हैं? पुरुष का अर्थ एक तरह से है - मर्दाना। प्रकृति का अर्थ है स्त्री। तो सृष्टि जिस तरह से है, उसे समझाने के लिए सृष्टि के सृजन के बीज को पुरुष कहा गया है। यह नर है, लेकिन उसकी जीवन-निर्माण में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। यह बिलकुल मनुष्य के जन्म जैसी है। पुरुष सिर्फ बीज डालता है, लेकिन बाकी सारा सृजन नारी द्वारा होता है। इसलिए, देवी मां या पार्वती या काली को प्रकृति कहा गया है। वह संपूर्ण सृजन करती हैं, लेकिन इस सृजन का बीज है शिव या पुरुष। इसे शिव-शक्ति या पुरुष-प्रकृति, या यिन-यैंग या और भी कई तरह से समझा जा सकता है।

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शिव और शक्ति हैं - सृजन और उसका स्रोत

हम सृजन के बस दो पहलुओं की बात नहीं कर रहे; हम सृजन और सृजन के स्रोत की बात कर रहे हैं।

पेड़ उगते रहते हैं, कुत्ते भौंकते रहते हैं, फूल खिलते रहते हैं, मनुष्य भी पैदा होते रहते हैं - यह सब प्रकृति है।
पूरे सृजन को नारी कहा गया है, और सृजन के स्रोत को पुरुष माना गया है। शिव निष्क्रिय हैं। वे शायद ही कभी सक्रिय होते हैं; बाकी के समय वे निष्क्रिय रहते हैं। वे ध्यानस्थ रहते हैं, कभी हिलते-डुलते नहीं। जब शिव जागते हैं, तो वे रौद्र हो जाते हैं, वरना वे निष्क्रिय रहते हैं। लेकिन प्रकृति, या पार्वती हमेशा सक्रिय रहती है। पेड़ उगते रहते हैं, कुत्ते भौंकते रहते हैं, फूल खिलते रहते हैं, मनुष्य भी पैदा होते रहते हैं - यह सब प्रकृति है। यह सब मां का काम है। सृजन इसी तरह से हो रहा है। आपको समझना चाहिए कि अस्तित्व में जो मौलिक शक्तियां हैं, उनका बस मानवीकरण कर दिया गया है। इन्हें इंसानों की तरह देखने की जरूरत नहीं है।

मां काली : तंत्र विद्या से रचा गया ऊर्जा रूप

इसलिए तंत्र-विद्या की इस पूरी प्रक्रिया का संबंध प्रकृति से है, शिव से उसका कोई लेना-देना नहीं। शिव तंत्र की परवाह नहीं करते, हालांकि वे तंत्र के गुरु हैं। वे लोग, जो तंत्र का अभ्यास करते हैं, शिव की पूजा कभी नहीं करते, वे शिव को सिर्फ दूर से पूजते हैं।

इसलिए जब किसी एक विशेष ध्वनि या मंत्र का एक खास तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, तो इस रूप को प्रकट किया जा सकता है। ऊर्जा के इस सूक्ष्म रूप का इस्तेमाल कर बहुत सारी चीजें की जा सकती हैं।
लेकिन वे हर रोज देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। इन रूपों को पैदा किया जा सकता है। ऐसा दुनिया में हर जगह होता है, लेकिन इस संस्कृति में हमने देवी के अनेक रूपों का सृजन किया है, जो बहुत शक्तिशाली हैं। उदाहरण के लिए, काली। काली सिर्फ एक मूर्ति नहीं हैं। अनेक योगियों और दिव्यदर्शियों ने एक विशेष ऊर्जा-रूप के सृजन के लिए काम किया, जो कुछ खास तरीके से काम करता है और एक खास नाम पर प्रतिक्रिया दिखाता है। आम तौर पर वे बहुत ही प्रचंड रूप का सृजन किया करते हैं, क्योंकि ये प्रचंड लोग एक सौम्य नारी के साथ नहीं रह सकते। वे सचमुच किसी तूफानी अस्तित्व को चाहते हैं, इसीलिए तो उन्होंने सचमुच प्रचंड नारी का सृजन किया, और यह ऐसा ऊर्जा-रूप है, जो अभी भी जीवंत है और जो एक खास मंत्र पर प्रतिक्रिया करता है। जब उन्होंने इस रूप का सृजन किया, उसके साथ एक निश्चित ध्वनि को भी जोड़ा गया था। इसलिए जब किसी एक विशेष ध्वनि या मंत्र का एक खास तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, तो इस रूप को प्रकट किया जा सकता है। ऊर्जा के इस सूक्ष्म रूप का इस्तेमाल कर बहुत सारी चीजें की जा सकती हैं। तो सारा तंत्र विज्ञान इसी के बारे में है। किसी विशेष रूप के लिए ही कुछ खास तांत्रिक मन्दिरों को बनाया गया है, और आप उस रूप का आह्वान कर के कई तरह की चीजें कर सकते हैं।

शायद कुछ संस्कृतियों में इसकी चर्चा जिन्न के रूप में होती है

मेरे विचार से, दूसरी संस्कृतियों में, इस तरह की चीजों के बारे में कुछ अलग तरीके से चर्चा होती रही है। वे ऐसा मानते हैं कि अगर किसी दिन उन्हें एक चिराग मिल जाए, और अगर वे उसे रगड़ें तो एक जिन्न सामने आएगा। तो तांत्रिक रूपों का सृजन इस तरीके से किया गया था और आज भी लोग कई तरह की चीजें करने के लिए उन्हें प्रकट कर सकते हैं। तंत्र की पूरी पद्धति इसी पर आधारित है। क्या आपने अघोरियों के बारे में सुना है? शिव भी एक अघोरी हैं। योग की अघोरी विधि काफी कुछ इसी दिशा में है।