Sadhguruसपनों का संसार  एक ऐसा मायावी और दिलचस्प संसार है जिसने सदा इंसान की सोच को उकसाया है। सपनों के प्रकार और उनके कारणों के बारे में सद्‌गुरु के शब्दों में विस्तार से आप पढ़ चुके है, उसी कड़ी में आज आप जानिए उन सपनों के बारे में जो दरअसल स्वप्न नहीं . . . हकीकत हैं -

सपनों का एक और रूप है, जो सही मायने में सपना ही नहीं है। यहां आश्रम में भैरवी देवी हैं। (ईशा योग केंद्र में लिंग भैरवी की प्रतिष्ठा सद्गुरु ने खुद की थी) कुछ समय पहले यह एक सपना था। हमने इस सपने को देखा। आप कुछ सपने को इस तरह देखते हैं कि वह हकीकत बन जाता है। ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी सृजन के समय को स्वप्नकाल कहते हैं।

अगर आप संचित कर्म की सीमा को पार कर जाते हैं, तब आप उस आयाम को छू पाते हैं, जो इस रचना का स्रोत है। उस सीमा तक जाने के बाद आपका मन काम करना बंद कर देता है।
वहीं भारत में हम इसे माया या भ्रम कहते हैं, या यह भी कह सकते हैं कि भ्रम को ही सपना कहते हैं। हम इसे लीला भी कहते हैं। रचयिता माया का जाल बुनता है। वैसे ये शब्द-’लीला. और ’माया’ रचना के लिए सबसे सटीक हैं, क्योंकि रचना ऐसी ही है। जिंदगी एक सपना है पर यह सपना सच है। जिसे हम तंत्र कहते हैं, उसका पूरा विज्ञान यही है कि आप किसी चीज का सपना देखते हैं और फिर धीरे-धीरे उसे वास्तविकता में बदल देते हैं। सबसे पहले इसे आप मन में रचते हैं। फिर धीरे-धीरे इसे बाहर लाते हैं और यह हकीकत में बदल जाता है।

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खास मकसद के लिए सभी देवी-देवताओं की रचना पहले मन में हुई थी, जो बाहर आने पर पूरी तरह वास्तविक बन गए। अगर ये केवल आपके ही अनुभव में सत्य हैं तो भी यह एक सपना है। आपका सपना हर किसी के लिए एक जीता-जागता अनुभव बन जाए, तभी वह हकीकत बनता है। ऐसा इसलिए नहीं होता है कि आप लोगों को अपनी बातों से प्रभावित करने की कोशिश करते हैं, या उन्हें सम्मोहित कर देते हैं। जब आप देवी के मंदिर में जाते हैं तो आपको कुछ जानने की जरूरत नहीं होती। आपको अलग से कुछ विश्वास करने की भी जरूरत नहीं होती, क्योंकि मंदिर और देवी, आपके सामने एक हकीकत है। लेकिन दो तीन साल पहले वह एक सपना था। अब वह सपना हकीकत में बदल चुका है। अब यह सपना नहीं, एक रचना है। पूरे जगत की रचना इसी तरह से हुई है।

अगर आप इस भ्रमजाल से खेल सकें-भ्रम से खेलने का मतलब यह है कि अगर मैं गेंद से खेलना चाहूं तो मैं खेल सकता हूं, पर यहां कोई गेंद नहीं है फिर भी मैं खेलना शुरू कर देता हूं। अगर मैं इसे पूरी तल्लीनता और तीव्रता के साथ करुं, तो कुछ समय के बाद यहां एक गेंद होगी। ऐसा नहीं है कि हम उस गेंद को कहीं से ले आएंगे। दरअसल आप अपने चारों ओर कुछ उछलता हुआ महसूस करने लगेंगे। ऐसा सिर्फ मुझे ही नहीं लगेगा, बल्कि यहां जो भी व्यक्ति आएगा, उसे एक गेंद के होने का अहसास होगा।

सपने और संचित कर्म

यही रचना है और इसकी जड़ें भी आपके सपने में गहरे धंसी हुई हैं। अगर आप संचित कर्म की सीमा को पार कर जाते हैं, तब आप उस आयाम को छू पाते हैं, जो इस रचना का स्रोत है।

अगर आपने अपने दिमाग को खास साधना से ऐसे तैयार कर रखा है कि जब आप ऐसी स्थिति में पहुंचे जहां याददाश्त नहीं हो, वहां भी आपका मन मौजूद हो, तब यह काफी उपयोगी सिद्घ होगा। फिलहाल आपका मन जिस तरह से है, वह सिर्फ याद्याश्त की वजह से है।
उस सीमा तक जाने के बाद आपका मन काम करना बंद कर देता है। अकसर ऐसा होता है कि उस पहलू को जब आप छूते हैं तो आपका मन पूरी तरह अभिभूत हो जाता है, बशर्ते उसे इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं किया गया हो। संभवतः इसे ही कुछ लोग मन से मुक्ति या नो माइंड कहते हैं। आप एक ऐसे क्षेत्र या स्थान में पहुंच जाते हैं जहां पहुंचते ही आप एक ऐसी उर्जा के संपर्क में आ जाते हैं, जो आपकी समझ के परे है और आप बिल्कुल सुन्न हो जाते हैं, जम जाते हैं।

आप किसी जंगल में जाते हैं। हाथियों के बारे में आप काफी जानते हैं, लेकिन आपने उनका सामना कभी नहीं किया है। अचानक कोई हाथी आपके सामने आ जाता है। आप देखेंगे कि अचानक सब कुछ सुन्न हो गया, क्योंकि इस परिस्थिति को संभालना आपकी क्षमता से बाहर होगा। ऐसे में आपकी शारीरिक क्षमता, मानसिक क्षमता, हर तरीका, सब कुछ सुन्न हो चुका होगा। आप बस आंखे फाडक़र हाथी को देखते रह जाएंगे और कुछ देर बाद वह हाथी भी आपको नजर नहीं आएगा। सचमुच ऐसा ही लोगों के साथ होगा, क्योंकि आपका मन एक ऐसी हालत में पहुंच गया है, जहां आप कुछ देख तो रहे हैं, लेकिन समझ नहीं पा रहे हैं। इसे भ्रम या उलझन नहीं कहा जा सकता। यह एक ऐसी स्थिति है, जहां मन का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है, अगर आपने कुछ खास तरीके ये उसे तैयार नहीं कर रखा हो।

आमतौर पर जब आपको भगवान के दर्शन होते हैं, तब आपका मन सुन्न हो जाता है। फिर फायदा क्या हुआ? वहां तक पहुंचने के लिए आपने क्या-क्या नहीं किया और जब पहुंचे तो सब बेकार।

खास मकसद के लिए सभी देवी-देवताओं की रचना पहले मन में हुई थी, जो बाहर आने पर पूरी तरह वास्तविक बन गए।
अगर आपने अपने दिमाग को खास साधना से ऐसे तैयार कर रखा है कि जब आप ऐसी स्थिति में पहुंचे जहां याददाश्त नहीं हो, वहां भी आपका मन मौजूद हो, तब यह काफी उपयोगी सिद्घ होगा। फिलहाल आपका मन जिस तरह से है, वह सिर्फ याद्याश्त की वजह से है। जब आप यादों की सीमा से आगे निकलते हैं, तो वहां केवल बोध होता है। ज्यादातर लोगों का मन, मैं तो कहूंगा कि निन्यानवे दशमलव नौ नौ नौ... प्रतिशत लोगों का मन वहां काम करना बंद कर देगा, अगर उसे चलाने के लिए याद्याश्त साथ न हो। वे नहीं जान पाएंगे कि कैसे क्या करना है। आप योग में क्या करते हैं? अपने मन को इस तरह तैयार करते हैं कि अगर कल को आपकी यादें मिटने लगे, आपका पूरा कार्मिक ढांचा गिर जाए, तो उस वक्त भी आपका मन आपके पास मौजूद हो। इसका मतलब हुआ कि आप मर भी जाएंगे, तो भी आपके पास मन जरूर होगा।

इस तरह सपनों की चार श्रेणियां हैं। आखिरी श्रेणी को आप सपना नहीं कह सकते। दरअसल, यह इस श्रेणी में नहीं आता। एक बात मैं आपको सलाह के रूप में कहना चाहूंगा, कि नींद में देखे गए सपनों को भूलने की कोशिश करें, क्योंकि अगर आपने सपनों के अर्थ निकालने शुरू कर दिए, तो आप अपने जीवन का मतलब खो देंगे। आप भ्रम में जीने लगेंगे।