सद्‌गुरुकर्मयोग दो शब्दों को जोड़कर बनता है – कर्म और योग।  हमारा ज्यादातर समय ऑफिस या घर पर काम करते हुए जाता है। क्या हमारी दिनचर्या को भी साधना का रूप दिया जा सकता है? अपने कर्म को योग बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

ज्यादातर लोग बिना सहारे के नहीं चल सकते। कुछ लोग ही ऐसे होते हैं, जो शुरु से ही बिना सहारे के चल सकते हैं। इसलिए साधना को सही तरीके से संतुलित करने के लिए कर्म योग को आपके जीवन में लाया गया है।

योग के लिए कर्म की जरूरत नहीं है। कर्म से परे जाना योग है। इंसान में संतुलन लाने के लिए कर्म योग की शुरुआत की गई। जिसे हम अपनी जागरूकता, प्रेम, अनुभव या सत्य की झलक कहते हैं, अगर उसे बनाए रखना है तो कुछ नहीं करने का मार्ग बहुत बढिय़ा मार्ग है।

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किसी ऐसे काम को पूरी भागीदारी के साथ करना, जो आपके लिए कोई मायने नहीं रखता, कर्म के ढांचे को तोड़ता है।
मगर वह बहुत फि सलन भरा और अस्थिर है। सचमुच बहुत ही फि सलन भरा है। यह सबसे आसान और सबसे मुश्किल रास्ता है। यह मुश्किल नहीं है मगर पूरी तरह आसान भी नहीं है, क्योंकि यह सरल है - अभी और यहीं। मगर इस ‘अभी और यहीं’ को कैसे पाएं? आप जो भी करते हैं, वह आपके हाथ में नहीं है। वह कभी आपके हाथ में नहीं होगा। मगर आपके हाथों को अभी किसी चीज की जरूरत है, आपको कुछ पकडऩे की जरूरत है। इसीलिए आपको कर्म योग का सहारा दिया गया है।

ज्यादातर लोग बिना सहारे के नहीं चल सकते। कुछ लोग ही ऐसे होते हैं, जो शुरु से ही बिना सहारे के चल सकते हैं। वे बहुत असाधारण जीव होते हैं। बाकी हर किसी को अपनी जागरूकता को संभालने के लिए सहारे की जरूरत होती है। इसके बिना, ज्यादातर लोग जागरूक नहीं रह सकते। इसलिए साधना को सही तरीके से संतुलित करने के लिए कर्म योग को आपके जीवन में लाया गया है।

कर्म - मुक्त करता है या उलझाता है

कर्म योग को दुर्भाग्यवश सेवा कहा जाता है, मगर ऐसा नहीं है। यह उन प्रभावों को खत्म करने का तरीका है, जो आपने जमा कर रखे हैं। अगर आप किसी क्रियाकलाप में खुद को खुशी से शामिल करते हैं, तो यह कर्म योग है। अगर आप उसे बहुत प्रयास के साथ करते हैं तो सिर्फ कर्म घटित होगा, योग नहीं।

आम तौर पर आप अपने तमाम कार्यकलापों से ही जीवन में फंसते और उलझते हैं। मगर जब वही कार्यकलाप उलझाव की जगह मुक्ति की प्रक्रिया बन जाए, तो उसे कर्म योग कहते हैं। चाहे वह कोई काम हो या सिर्फ  सडक़ पर टहलना हो या किसी से बातचीत करना हो, आप क्या करते हैं, यह अहम नहीं है। जब आप किसी चीज को सिर्फ  इसलिए करते हैं क्योंकि उसे किए जाने की जरूरत है, जहां वह काम आपके लिए कोई मायने नहीं रखता मगर आप खुद को उसमें इस तरह शामिल कर देते हैं मानो वह आपका पूरा जीवन हो, तो वह काम आपको रूपांतरित कर देता है और वह क्रियाकलाप आपके लिए मुक्तिदायक बन जाता है।

भरपूर भागीदारी

ऐसे बहुत से गुरु रहे हैं जिन्होंने इस तरह के काम कराए। जब गुरजिएफ ने यूरोप में अपने सेंटर शुरू किए, तो यूरोप का कुलीन वर्ग उनके पास गया। सुबह वह उन्हें एक कुदाल और खुरपे देकर कहते ‘बड़े गड्ढे खोदो।’ वे लोग कड़ी धूप में खड़े होकर मिट्टी खोदते। ये ऐसे लोग थे जिन्हें किसी तरह की मेहनत की आदत नहीं थी। कुछ घंटे काम करने के बाद ही उन्हें हर जगह छाले हो जाते। वह वहां खड़े होकर उनसे काम करवाते रहते।

कर्म योग को दुर्भाग्यवश सेवा कहा जाता है, मगर ऐसा नहीं है। यह उन प्रभावों को खत्म करने का तरीका है, जो आपने जमा कर रखे हैं।
देर शाम तक, उन्हें भूख लग आती मगर वे काम करते रहते और खाइयां खोदते रहते। फि र गुरजिएफ  घड़ी देखते हुए कहते, ‘ठीक है, सात बज गए हैं। लगता है कि डिनर का समय हो गया है। आप सब डिनर पर चलने से पहले इन गड्ढों को भर दीजिए।’ यह होता था पूरे दिन का काम!

किसी ऐसे काम को पूरी भागीदारी के साथ करना, जो आपके लिए कोई मायने नहीं रखता, कर्म के ढांचे को तोड़ता है। अगर अपने क्रियाकलाप को योग बनना है, तो उसे मुक्ति प्रदान करने वाला होना चाहिए। अगर आपका कार्य आपके लिए बंधन की एक प्रक्रिया बन गया है, तो वह कर्म है। इसलिए सवाल यह नहीं है कि आप कितना काम करते हैं। आप उस काम को कैसे करते हैं, इससे फ र्क पड़ता है। अगर आप घिसट-घिसट कर अपना काम कर रहे हैं, तो वह कर्म है। अगर आप मजे-मजे में नाचते-गाते हुए अपना काम कर रहे हैं, तो वह कर्म योग है।