आपका इंतज़ार खत्म हुआ...इस महीने, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की ख़ुशी में हम आपके लिए लाएं हैं इशा लहर का "योग विशेषांक"
आइये इस माह के संपादकीय में हम योग के आधुनिक जीवन में महत्व, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग को मान्यता मिल जाने से पैदा हुई असीम संभावनाओं पर गौर करें...

 

संपादकीय:

योग: आनंद की खान, भारत का सम्मान, एक विज्ञान

कभी किसी शहर के चौराहे पर खड़े हो जाइए और अपने आसपास से गुजरते चेहरों पर नजर डालिए और यह गिनने की कोशिश कीजिए कि कितने चेहरे आनंदित हैं? दो, चार, पांच...। इनमें से अधिकतर आनंदित चेहरे बच्चों के ही होंगे।

एक कथा है कि रामदास ने किसी योगी के पास जाकर पूछा, ‘योगीराज! योग क्या है?’ योगी ने रामदास को पास में रखी एक कुर्सी पर बैठने को कहा, जिसके हत्थों में कुछ स्क्रू लगे हुए थे। रामदास कुर्सी पर बैठ गए।
बचपन से किशोरावस्था तक आते-आते चेहरे पर आनंद कम दिखने लगता है और तनाव बढऩे लगता है। और फि र युवावस्था तक आते-आते यह आनंद बिल्कुल गायब सा हो जाता है। तीस साल से अधिक उम्र का कोई चेहरा शायद ही आनंदित दिखे।

 

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जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी हंसी-खुशी और आनंद के ग्राफ  में तो बढ़ोतरी होनी चाहिए, पर बढ़ोतरी की बजाय इसमें कमी ही आती गर्ई। ऐसा क्यों, कहां खो जाती हैं हमारी खुशियां, हमारा आनंद? कहां खो जाता है इंसान? हम कहां चूक जाते हैं, कौन है इसके लिए जिम्मेदार? हमें क्या करना होगा एक खुशहाल और आनंदमय दुनिया बनाने के लिए?

 

ये प्रश्न सिर्फ  मेरे ही नहीं हैं, ये प्रश्न हर जागरुक और संवेदनशील मन में उठते हैं। ये हर काल में, हर युग में उठते रहे हैं। जिसने भी गहराई में खोजा उसने इसका उत्तर भी जाना। जानकर जिसने भी उस पर आचरण किया और जीवन में अपनाया वह खुद तो निहाल हुआ ही, उसने दूसरों को भी आनंद बांटा।

 

यह आनंद पाने का मार्ग ही योग है। हमारा यह सौभाग्य है कि हम इस योगिक संस्कृति में पैदा हुए हैं। यह बहुत ही समृद्ध और वैज्ञानिक संस्कृति रही है। इस भूमि में ऐसे हजारों लोग पैदा हुए जिन्होंने आनंद की खोज हजारों तरह से की। आनंद के ये सभी मार्ग आज हमें विरासत में मिले हैं, हम इनके उत्तराधिकारी हैं। पर अफसोस कि हम इनकी कीमत नहीं समझते हैं। हजारों साल के विदेशी शासन से तो हम आजाद हो गए हैं, लेकिन गुलामी की मानसिकता से हम अभी भी निकल नहीं पाए हैं। हम बड़े शान से पश्चिम की शिक्षा-प्रणाली और मूल्यों का अंधानुकरण करते हैं, जिसकी वजह से हम मानसिक रूप से बीमार हो गए हैं। अपनी समृद्ध, विकसित और वैज्ञानिक संस्कृति को धीरे-धीरे उजाड़ कर सांस्कृतिक स्तर पर हम कंगाल होते जा रहे हैं।

 

ऐसे समय में ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ को पूरे विश्व में मनाया जाना बहुत महत्वपूर्ण है। दुनिया में योग के प्रति जागरूकता फैलाकर इसे एक जीवन शैली के रूप में अपनाने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका होगी। इस भूमि में योग विज्ञान को जीवन के हर पहलू में पिरोकर एक संस्कृति का रूप दिया गया और इसे आम आदमी के जीने के ढंग में, उसके रहन सहन में डाला गया। समय के साथ इसमें निहित विज्ञान लुप्त हो गया और कर्मकांड प्रमुख हो गाया। अब योग विज्ञान को उसके विशुद्ध रूप में प्रतिष्ठित करने का समय आ गया है। योग से इंसान न सिर्फ  स्वस्थ और खुशहाल होगा, बल्कि इसे अपनाकर इंसान अधिक जागरूक, जिम्मेदार और कामयाब भी होगा। ऐसे इंसानों से ही विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान मिल पाएगा।

 

एक कथा है कि रामदास ने किसी योगी के पास जाकर पूछा, ‘योगीराज! योग क्या है?’ योगी ने रामदास को पास में रखी एक कुर्सी पर बैठने को कहा, जिसके हत्थों में कुछ स्क्रू लगे हुए थे। रामदास कुर्सी पर बैठ गए। योगी ने रामदास से कहा, ‘इस स्क्रू को अपने हाथों से खोलो।’ रामदास ने बहुत कोशिश की पर स्क्रू हिला तक नहीं। योगी ने रामदास को एक पेचकस देकर कहा, ‘अब इसे खोलो।’

ऐसे समय में ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ को पूरे विश्व में मनाया जाना बहुत महत्वपूर्ण है। दुनिया में योग के प्रति जागरूकता फैलाकर इसे एक जीवन शैली के रूप में अपनाने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका होगी।
रामदास बड़े ही सहज ढंग से स्क्रू को हत्थों से बाहर निकालकर योगी की तरफ  देखने लगे। योगी मुस्कुराए और बोले, ‘योग इस पेचकस की तरह एक उपकरण है, एक तकनीक है, जिससे तुम जीवन के हर आयाम को खोल सकते हो। योग एक विज्ञान है, आनंद की खान है, भारत का सम्मान है, इसे अपनाओ, जीवन बनाओ, खुशहाली लाओ और विश्व में फैलाओ।’

 

भारत की इस शान को विश्व में मिली पहचान और सम्मान ने मानव जीवन के विकास और खुशहाली की राह को निश्चित तौर पर थोड़ा आसान किया है। आप भी योग के इस आनंददाई मार्ग को अपना कर खुद को स्थाई खुशहाली का उपहार दे पाएं - इस कामना और भावना के साथ आपको ईशा लहर का यह योग विशेषांक हम सादर भेंट करते हैं।

- डॉ सरस

 

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