सद्‌गुरुइस बार के ईशा लहर में सृष्टि से जुड़ी अनेक चर्चाएँ शामिल हैं। किसने रचना की है इस सृष्टि की? क्यों बनाई गई है ये सृष्टि? और इस सृष्टि की शुरुआत कब हुई? जैसे प्रश्नों के उत्तर पढ़े जा सकते हैं। आइये पढ़ते हैं सम्पादकीय स्तंभ...

आदिकाल से ही सृष्टि के सृजन के रहस्यों को जानने की कोशिश में इंसान कई तरह की कल्पनाएं करता रहा है। इंसान के जीवन में कुछ ऐसे पड़ाव आते हैं, जहां जीवन का सफर उसके लिए बेहद खुशनुमा हो जाता है या फि र जीवन उसे नितांत अर्थहीन लगने लगता है। कुछ ऐसे ही दुर्लभ लम्हों में, उसके मन को अस्तित्वगत प्रश्न कुरेदने लगते हैं - किसने बनाई यह सृष्टि? जीवन का मकसद क्या है? क्या वाकई ईश्वर है?

किसी कवि ने इस कविता के माध्यम से कुछ ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर ढूंढऩे की कोशिश की है।

वह रवि कहता है ‘पगली’ इसका है कहां किनारा,

इस उदय-अस्त में मेरा बीता है जीवन सारा।

 

मैं उठता गिरता फिरता इस पथ में मारा मारा,

पर फल न मिला है, क्या है भी कोई ‘कूल किनारा’।

 

मैं नित्य जहां से चलता, आ जाता वहीं सवेरे,

ऐसे ही व्यर्थ गगन में देता रहता हूं फेरे।

 

पा जाता पार क्षितिज, पर पुन: क्षितिज आ जाता,

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

अवसान जिसे कहते हैं, है वही उदय कहलाता।

 

जिसके वियोग की मेरे प्राणों में जलती ज्वाला,

क्या जग में जन्मा कोई उसका पथ पाने वाला।

 

जब एकाकार करेंगे, खोकर यह मेरी-तेरी,

उस दिवस शांत होगी ये ज्वाला अंतर की मेरी।

 

जब होगा शून्य जगत सब, अपना अस्तित्व मिटाकर,

तब अपने आप मिलेंगे, सब उस अनंत में जाकर।

 

है वही मुक्त कर सकता, जिसने जग जाल बिछाया,

यह वही मिटा सकता है, जिसने यह खेल बनाया।

 

जिसकी विशाल इच्छा की सागर भी एक लहर है,

उसका दर्शन पाने को लोचन पाना दुस्तर है।

 

कितना ही ऊंचा चढ़ जाए, कोई इस अम्बर में,

वह उसे गिरा देता है, बस उंगली से पल भर में।

 

कितनी नौकाएं निश-दिन सागर पर बहती रहतीं,

उनसे विनाश की गाथा, आ आकर लहरें कहती।

 

तू अपनी जर्जर नौका, क्यों खेती व्यर्थ अकेली,

जब सुलझाने वाला हो अंत-अनंत पहेली।

इस अनंत अनसुलझी पहेली ने, जिसे हम सृष्टि कहते हैं, पीढिय़ों से मानव मन को मथा है। यह मंथन विशेषकर हमारी सनातन संस्कृति में बहुत गहरा पैठा हुआ है। सृष्टि की गुत्थियों को सुलझाने की उत्कंठा में, जब इंसान ने भौतिक से परे के आयामों को अनुभव किया तो कई रहस्योद्धाटन हुए।

इस बार के अंक में, हमने कुछ ऐसे ही रहस्यों पर से पर्दा हटाने की कोशिश की है। आशा है हर बार की भांति इस बार भी हमारी कोशिशों को आपका स्नेह, आशीष व मार्गदर्शन अवश्य मिलेगा। शुभम् भवेत!!

– डॉ सरस

ईशा लहर प्रिंट सब्सक्रिप्शन के लिए इस लिंक पर जाएं

ईशा लहर डाउनलोड करने के लिए इस लिंक पर जाएं