सद्‌गुरुभारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक साधना के कई सारे विकल्प मिलते हैं। मातृ शक्ति के रूप में देवी पूजा, भगवान शिव के अनेक अलग-अलग रूपों में पूजा से लेकर निराकार ईश्वर तत्व की पूजा - क्यों रचे गए थे पूजा के इतने विकल्प

सबसे मूल पूजा मातृ शक्ति की होती है

यही एक ऐसी संस्कृति है जिसमें ऐसे विकल्प मौजूद हैं कि अगर किसी को एक खास रूप की जरूरत है तो उसे रूप दे दिया जाताहै, अगर कोई रूप से आगे निकल जाता है, तो उसे आगे की चीजें दे दी जाती हैं।

इसे समझना लोगों के लिए बड़ा आसान है, क्योंकि हमारी संस्कृति में मां और बच्चों के बीच एक बेहद मजबूत रिश्ता होता है। यह रिश्ता पूरी तरह स्वाभाविक है, संस्कृति ने इसे और मजबूत कर दिया।
आगे की चीज ध्वनि हो सकती है, कोई विशेष सुगंध हो सकती है या फिर कोई और चीज भी हो सकती है। अगर कोई और ज्यादा विकसित हो जाए तो और आगे की चीजें दे दी जाती हैं, उससे भी ज्यादा विकसित हो जाए तो उससे भी आगे की चीज। इस तरह इस संस्कृति में लोगों के लिए पूजा के कई स्तर मौजूद हैं। अगर आप बिल्कुल शुरुआती अवस्था में हैं, तो आपको मातृ-पूजा करने को कहा जाता है। कहा जाता है कि शिव से भी पहले मातृ-शक्ति थीं। आप जानते हैं इसके बारे में? ईश्वर के आने से पहले भी मातृ-शक्ति मौजूद थी। यह बेहद बुनियादी सी बात है। इसे समझना लोगों के लिए बड़ा आसान है, क्योंकि हमारी संस्कृति में मां और बच्चों के बीच एक बेहद मजबूत रिश्ता होता है। यह रिश्ता पूरी तरह स्वाभाविक है, संस्कृति ने इसे और मजबूत कर दिया। अगर आप कहें कि सभी देवताओं और बाकी चीजों का स्रोत मातृ-शक्ति है, तो किसी बच्चे के लिए भी यह बात समझनी आसान होगी।

थोड़ी परिपक्वता आने पर शिव से जुड़ने लगते हैं

अगर अपने अस्तित्व के स्तर पर अभी तक आपमें बचपना हो, तो मातृ-शक्ति से आप आसानी से जुड़ जाएंगे। तीन, चार, पांच साल तक बच्चा अपनी मां से ही चिपटा रहना चाहता है। उसे इसमें शर्म नहीं आती, लेकिन जैसे ही उसकी उम्र दस, ग्यारह, बारह साल के करीब होती है, वह अपने पिता के साथ खड़ा होना चाहता है। वह पुरुष बनना चाहता है। वह अपनी मां को नजरंदाज करने लगता है, क्योंकि उसकी जरूरतें अब अलग तरह की होती हैं। ऐसे में लोगों ने शिव की रचना की। मां पर्याप्त नहीं हैं, अब आपके पास शिव भी हैं, एक असाधारण पुरुष के रूप में। उन्हें एक ऐसा नाम दे दिया गया, जिसका मतलब है ‐ जो नहीं है। यहां अपने आप में विरोधाभास है, लेकिन आपको यह समझना होगा कि वह एक यंत्र की तरह हैं। यही एकमात्र संस्कृति है जो यह समझती है कि हमारे विकास के लिए देवता एक यंत्र की तरह हैं। वैसे हर जगह ऐसा है, लेकिन लोगों को इस बारे में पता नहीं है।

अलग-अलग लोगों को अलग-अलग मदद की जरुरत है

आप देवताओं की पूजा करते हैं। क्यों? क्योंकि आपके कल्याण के लिए वह एक यंत्र की तरह हैं।

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जिन लोगों ने जीवन को अच्छी तरह से जान लिया है, उन्हें पता है कि अलग-अलग लोगों की अलग-अलग तरीके से मदद की जानी चाहिए।
किसी के लिए कल्याण का मतलब पैसा कमाना हो सकता है, किसी के लिए कल्याण का मतलब अपने या अपने परिवार के लिए बेहतर स्वास्थ्य की जरूरत हो सकती है, किसी के लिए कल्याण मतलब स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन कुल मिलाकर लोग ईश्वर की पूजा इसीलिए करते हैं क्योंकि वे अपना कल्याण चाहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि ईश्वर आपकी भलाई के लिए एक यंत्र की तरह है। ऐसे में आपकी अलग-अलग अवस्था के लिए आपको अलग-अलग चीजें दी गई हैं। लेकिन आपको कई रूप दे दिएजाते हैं? इस सब झूठ का क्या मतलब है? यह झूठ नहीं है। एक तार्किक दिमाग काले और उजले के रूप में ही सोचता है, लेकिन जिसने जीवन को जान लिया है, वह काले-उजले के रूप में नहीं सोचता। जिन लोगों ने जीवन को अच्छी तरह से जान लिया है, उन्हें पता है कि अलग-अलग लोगों की अलग-अलग तरीके से मदद की जानी चाहिए। ऐसी कोई एक सीढ़ी नहीं है, जिससे हर कोई चढ़ जाए।

जीवन की वास्तविकता से जुड़ना होगा

जब बच्चा मां के गर्भ से बाहर आता है तो मां से चिपटने की उसके भीतर एक स्वाभाविक इच्छा होती है क्योंकि उसे पता है कि भोजन वहीं मिलेगा। आपको समझना होगा कि वह प्रेम की वजह से मां से नहीं चिपटता, यह तो अपनी भूख मिटाना है।

चूंकि आपको हर चीज में सही और गलत ढूंढने की आदत है, इसलिए खाली जीवन आपको खूबसूरत नजर नहीं आता। आपको लगता है कि इसे खूबसूरत बनाने के लिए आपको इसे सजाना होगा।
उसे पता है कि मां के पास ही भोजन है। मां के अलावा कहीं और भोजन मिलेगा ही नहीं। बच्चे का मां के पास जाना देखकर आप खुश हो सकते हैं, कई तरह के रुमानियत भरे ख्याल आपके मन में आ सकते हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि वह अपने जीवन को चलाने के मकसद से ही मां से चिपका रहता है। आप कह सकते हैं ‘अरे, आप क्यों इस रिश्ते को इतनी भद्दी तरह से देख रहे हैं?’ लेकिन यह भद्दापन नहीं है। मैं जीवन को उसी रूप में देखना चाहता हूं, जिस रूप में वह है। यह जैसा है, वैसा ही बेहद खूबसूरत है। खूबसूरत बनाने के लिए इसमें कोई भी चीज जोडऩे की जरूरत नहीं है। चूंकि आपको हर चीज में सही और गलत ढूंढने की आदत है, इसलिए खाली जीवन आपको खूबसूरत नजर नहीं आता। आपको लगता है कि इसे खूबसूरत बनाने के लिए आपको इसे सजाना होगा। लेकिन यह सच नहीं है। बच्चा मां से इसलिए चिपका हुआ है, क्योंकि मां के स्तनों में दूध है और उसे दूध ही चाहिए। उसे प्रेम का नहीं पता, उसे ऐसे किसी भाव का ज्ञान नहीं है। उसे तो इस बात की भी परवाह नहीं है कि आप हैं कौन। इसमें गलत क्या है? यह ऐसा ही है, इसमें भद्दा कुछ भी नहीं। यह तो बेहद खूबसूरत है। जीवन ऐसा ही है। जीवन की इच्छा जीवित रहने की ही है।

शिव पुराण  - सृष्टि की व्याख्या

शिव को हमारे यहां कई तरीकों से दर्शाया गया है, इतने तरीकों से कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। वह सबसे सुंदर हैं, वह सबसे बदसूरत भी हैं। वह सबसे भयानक हैं, वह सबसे दयावान हैं। शिव पुराण में इस तरह की कई कहानियां हैं।

सबसे पहले मातृ शक्ति थीं। उनके तीन पुत्र हुए - ब्रह्मा, विष्णु, शिव। ये तीन लोग नहीं, बल्कि तीन शक्ति हैं, लेकिन इनका इंसानों के प्रतीक रूप में चित्रण किया गया है।
जो लोग सिर्फ तार्किक ढंग से सोचते हैं, जो आधुनिक शिक्षा-व्यवस्था में पले-बढ़े हैं, उनके लिए यह सब समझना बड़ा मुश्किल है। हमारी संस्कृति संवादात्मक या कहें कथा-कहानियों की संस्कृति है। कहानी के भीतर कहानी, उसके भीतर और कहानी। जरुरी नहीं है वे तथ्यों के एक खास क्रम में हों, क्योंकि उनकी दिलचस्पी तथ्यों के क्रम में नहीं है। वे जीवन के बारे में कुछ और कहना चाहते हैं। वे जीवन की जो मूल डोर है उसे बताना चाहते हैं। वे इस पर कोई परत नहीं चढ़ाना चाहते। ऐसा वे तभी करते हैं, जब उन्हें इसकी जरूरत लगती है।

शिव पुराण में सृष्टि की व्याख्या इसी तरीके से की गई है। सबसे पहले मातृ शक्ति थीं। उनके तीन पुत्र हुए - ब्रह्मा, विष्णु, शिव। ये तीन लोग नहीं, बल्कि तीन शक्ति हैं, लेकिन इनका इंसानों के प्रतीक रूप में चित्रण किया गया है। अब मातृ शक्ति ने इन तीनों से संसार की रचना करनी चाही। संसार की रचना कैसे हो? कोई स्त्री नहीं है। मां हैं और तीन बेटे हैं। इसके अलावा कोई स्त्री ही नहीं है। मैं आपके तार्किक दिमाग को समझ रहा हूँ। अतिनैतिकतावादी लोगों के मन में अचानक वर्जिन मैरी का ख्याल आएगा। लेकिन ये लोग ऐसे नहीं थे।

भगवान शिव को स्वीकार करने से सब कुछ सुंदर लगने लगेगा

मातृ-शक्ति ने अपने बेटों से कहा - अगर संसार को चलाना है तो तुममें से एक को मुझे स्त्री के रूप में स्वीकारना होगा। ब्रह्मा ने कहा - मैं यह सब नहीं कर सकता। उन्होंने सिर झुकाया और चले गए।

अगर आप शिव को स्वीकार कर लें और उनकी पूजा करें, तो आपको इस जगत की किसी भी चीज से कोई समस्या नहीं होगी। आपको सब कुछ शानदार महसूस होगा।
विष्णु पूरे दृश्य से ही गायब हो गए। इसके बाद मातृ-शक्ति शिव के पास गईं। शिव उस समय नशे की हालत में थे। उन्होंने बस यूं ही उनके साथ सहवास कर लिया और इस तरह इस संसार की रचना हुई। यह कहानी है। नैतिकतावादी मन इसे पचा नहीं पाएगा। वह आपके लिए शिव हैं। वह तपस्वी हैं, संयमी हैं। वह कभी अपनी आंखें नहीं खोलते। ज्यादातर समय वह ध्यान में रहते हैं, और वह ऐसे भी हैं। इतनी सारी विरोधाभासी चीजें एक ही व्यक्ति में क्यों मौजूद हैं, शायद इसलिए कि अगर आप उन्हें स्वीकार कर लेते हैं तो आप पूरे जगत को बिना किसी संघर्ष के स्वीकार कर लेंगे। अगर उन्हें आपने स्वीकार कर लिया तो आपको यहां किसी से कोई समस्या नहीं होगी। वह नशे के आदी हो सकते हैं, उनमें सारी कमियां हो सकती हैं। अगर आप शिव को स्वीकार कर लें और उनकी पूजा करें, तो आपको इस जगत की किसी भी चीज से कोई समस्या नहीं होगी। आपको सब कुछ शानदार महसूस होगा। ‘अपने पड़ोसियों से प्रेम करो’ कहने का यह एक और तरीका है - हालांकि एक बेहद जटिल तरीका है यह।

ईशा योग केंद्र में अगला यंत्र उत्सव 22 जुलाई 2017 के दिन आयोजित किया जाएगा। इस दिन आप सद्‌गुरु से यंत्र ग्रहण कर सकते हैं। ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएं -