सद्‌गुरुकभी-कभी हम ऐसे लोगों को देखते हैं, जो गणित या किसी अन्य विषय से जुड़े बेहद जटिल प्रश्नों का कुछ ही क्षणों में उत्तर दे देते हैं। इसे इन्टूइशन या फिर अंतर्बोध कहा जाता है। क्या ये चेतना या बोध की कोई उच्च अवस्था है? आइये जानते हैं


बोध या चेतना की उच्च अवस्था नहीं है इन्टूइशन

प्रश्न: क्या आध्यात्मिक रहस्यवाद और अंतर्बोध (इन्टूइशन) का कोई नाता है? क्या अंतर्बोध (इन्टूइशन), बोध का ही एक ऊंचा स्तर है? जो इसका प्रयोग करते हैं, वे दिव्यदर्शी होते हैं या कोई चालबाज होते हैं?

सद्‌गुरु: अंतर्बोध (इन्टूइशन) हमारी बोधशक्ति का कोई अलग पहलू नहीं है, जैसा कि लोग आम तौर पर बताने की कोशिश करते हैं। अंतर्बोध उसी जवाब तक पहुंचने का एक तीव्र और शीघ्र तरीका है। अपनी जानकारियों का इस्तेमाल कर के कुछ सीढिय़ां लांघ कर आगे बढ़ जाने का तरीका है अंतर्बोध।

तार्किक दिमाग पूरी प्रक्रिया से होकर जाता है, पर अंतर्बोधी दिमाग प्रक्रिया को किनारे छोड़ कर वक्तपर जरूरत की जानकारी सीधे उठा लेता है।
मसलन, मान लीजिए मैं आपसे पूछता हूं, ‘इस साल पहली अक्टूबर को कौन-सा दिन है?’ अब आप क्या करेंगे? आप एक कागज-कलम ले कर हिसाब करना शुरू कर देंगे। आठ-दस जोड़-घटाव, गुणा-भाग के बाद आप जवाब तक पहुंच पाएंगे। पर देखा जाए तो ये सारे हिसाब-किताब वैसे भी आपके दिमाग में मौजूद हैं। अगर आप अंतर्बोधी हैं, तो आपको ये आठ-दस हिसाब करने की जरूरत नहीं, आप सीधे जवाब तक पहुंच जाएंगे। जैसे आप जब कैल्कुलेटर का बटन दबाते हैं, जवाब हाजिर होता है, वह हिसाब नहीं करता, उसमें ये सब पहले से ही है। वह पलक झपकते ही जरूरी जानकारी अंदर से खींच लेता है। अगर आपका दिमाग इसी तरह काम करे, तो आपको हर बार हर चीज का हिसाब करने की जरूरत नहीं, आप जरूरी जानकारी जब चाहें खींच सकते हैं। यही है अंतर्बोध (इन्टूइशन)।

कुछ बच्चों में अंतर्बोध या इन्टूइशन होता है

बहुत-से बच्चे अंतर्बोधी होते हैं। खास तौर से ऑटिस्टिक बच्चे, जो आम लोगों की तरह न हो कर मानसिक रूप से कमजोर होते हैं, लेकिन अपने दिमाग के किसी दूसरे पहलू में बहुत अंतर्बोधी होते हैं।

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आपको जानकारी की जरूरत तो पड़ेगी ही। पर इसमें किसी हिसाब-किताब की जरूरत नहीं पड़ेगी।
कुछ समय पहले मैं ग्यारह साल के एक लडक़े से मिला था। वह कई तरह से विकलांग है और उसके साथ कई सारी व्यावहारिक दिक्कतें हैं। वह एक स्पेशल स्कूल में है। लेकिन अगर आप उससे पूछें कि 3000 वर्ष ईसा पूर्व 1 मार्च को कौन-सा दिन था? वह तुरंत जवाब देगा। दस हजार वर्ष ईसा पूर्व, 13 सितंबर को कौन-सा दिन था? वह तुरंत बता देगा। आप जांच करें तो सही निकलेगा। वह कभी गलत नहीं होगा। उसको जरा भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ती। जवाब हमेशा हाजिर होता है।

इसलिए अंतर्बोध, तर्क की सीढिय़ां चढऩे के बजाय, जवाब तक सीधे पहुंचने का एक अलग तरीका है। तार्किक दिमाग पूरी प्रक्रिया से होकर जाता है, पर अंतर्बोधी दिमाग प्रक्रिया को किनारे छोड़ कर वक्तपर जरूरत की जानकारी सीधे उठा लेता है। आप इसके लिए खुद को प्रशिक्षित कर सकते हैं।

प्रश्न: क्या हम अपने दिमाग को इस तरह से ट्रेंड कर सकते हैं कि अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में वह अंतर्बोधी हो कर बेहतर और कारगर फैसले ले सके? सद्‌गुरु, आप किस हद तक अंतर्बोध का इस्तेमाल करते हैं?

सद्‌गुरु: हम यहां जो आसान-सा योगाभ्यास आपको सिखाते हैं, उससे आपकी तर्कशक्ति और अंतर्बोध दोनों में बढ़ोतरी होती है। क्या मैं तार्किक हूं? हां, मैं हूं।

जब मैं गाड़ी चलाता हूं, तो मेरे दिमाग में अगले मोड़ की तस्वीर उभरती चली जाती है। बाकी सारे लोग 25-30 किलोमीटर की रफ्तार से जा रहे होते हैं और मैं गाड़ी तेज रफ्तार से दौड़ाता रहता हूं।
लेकिन मैं कुछ भी तार्किक रूप से नहीं करता, मेरे लिए हर चीज अंतर्बोधी होती है। इसीलिए सब-कुछ इतना आसान होता है। मैं जो कुछ कर रहा हूं अगर वह सब मुझे तार्किक ढंग से करना पड़े, तो मैं पागल हो जाऊंगा। मैंने अपनी जिंदगी में तरह-तरह के जो कई काम हाथ में ले रखे हैं, उनसे तो कोई भी पागल हो जाएगा। लेकिन चूंकि मैं यह सब तर्क की कसौटी पर जांच कर नहीं करता, चूंकि मैं अंतर्बोध से फैसले लेता हूं, इसलिए कोई मेहनत नहीं लगती। ये सब काम बस यूं ही हो जाते हैं।

अंतर्बोध या इन्टूइशन जानकारी के आधार पर काम करता है

परंतु यह समझना जरूरी है कि अगर आपने अपने दिमाग में जानकारी जमा नहीं की है, तो फिर अंतर्बोध किसी काम का नहीं। आपको जानकारी की जरूरत तो पड़ेगी ही। पर इसमें किसी हिसाब-किताब की जरूरत नहीं पड़ेगी। और फिर जानकारी तो हर पल इक्कठी होती ही रहती है; जैसा कि मैंने पहले कहा, पांचों इंद्रियां लगातार जानकारी इक्कठी करती ही रहती हैं।

मेरे पास लोग सिर्फ आध्यात्मिक मकसद से ही नहीं आते। अगर कोई एक इमारत बना रहा है और उसे इंजीनियरिंग को ले कर कोई दिक्कत पेश आ रही है, तो वह भी मेरे पास आता है।

अपनी जानकारियों का इस्तेमाल कर के कुछ सीढिय़ां लांघ कर आगे बढ़ जाने का तरीका है अंतर्बोध।
अगर कोई किसी तरह की मशीन लगवा रहा है और वह काम ठीक से नहीं हो रहा, तो वह भी मेरे पास आता है। इसलिए नहीं कि मैंने ये सब काम भी सीख रखा है। दरअसल बात सिर्फ इतनी है कि मान लीजिए आप एक इमारत को देख रहे हैं, तो सचेतन या अचेतन हर हाल में आपकी आंखों ने इसकी पूरी तस्वीर खींच ली है। आप जब चाहें इससे जुड़ी जानकारी अपने भीतर से खींच कर निकाल सकते हैं। अगर आप स्पष्ट रूप से सोचने-समझने वाले इंसान हैं, तो आप जब चाहें इस तस्वीर को अपने मन में वापस ला सकते हैं।

आज अगर मैं गाड़ी चालाऊं, खास तौर से हिमालय क्षेत्र में, तो सडक़ के हर मोड़, हर चट्टान और हर बड़े पेड़ को मैं जानता हूं। जब मैं गाड़ी चलाता हूं, तो मेरे दिमाग में अगले मोड़ की तस्वीर उभरती चली जाती है। बाकी सारे लोग 25-30 किलोमीटर की रफ्तार से जा रहे होते हैं और मैं गाड़ी तेज रफ्तार से दौड़ाता रहता हूं। इस बार मेरी ‘पोर्श’ कार थी और मैं उसको खूब दौड़ा रहा था। लोग सोच रहे थे कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन दरअसल सडक़ के अगले दो-तीन मोड़ मेरे दिमाग में साफ दिखते रहते हैं।

अंतर्बोध उसी जवाब तक पहुंचने का एक तीव्र और शीघ्र तरीका है।
मुझे सिर्फ दूसरी गाडिय़ों का ख्याल रखना पड़ता है, सडक़ का बिलकुल नहीं, क्योंकि मेरे दिमाग में सडक़ की बड़ी साफ तस्वीर मौजूद रहती है। बाकी लोगों के दिमाग में भी यह तस्वीर मौजूद होती है, लेकिन उन्होंने उसको इस तरह बिगाड़ लिया है कि जरूरत पडऩे पर वे उस जानकारी को बाहर नहीं निकाल सकते। उन्होंने उसको अपने अंदर ही तोड़-मरोड़ कर बिगाड़ रखा है।

इसलिए जब अभ्यास करके आप अपनी चेतना के साथ जुड़ जाते हैं, तब आपका मन आजाद हो जाता है। आपने आज तक जो कुछ भी सूंघा, चखा, सुना और देखा है, वह सब आपके भीतर है, आपको उन्हें याद करने की जरूरत नहीं है, ये सब बस आपके भीतर जमा है। आप इन सबको आसानी-से बाहर खींच सकते हैं। याद्दाश्त, कुछ याद करने से नहीं जुड़ी है। याद्दाश्त - बस जानकारी वापस खींचने की काबिलियत है, है न?