खेल को हम शुरु में तो तनाव को दूर करने के लिए खेलना शुरु करते है, लेकिन उसमें आगे बढ़ते ही हम उसमें जीत के तनाव से जूझने लगते हैं। कैसे जीतें अपने तनाव को?

सिर्फ आनंद के लिए खेलते थे खेल

जब हम बच्चे थे हम खेल खेलते थे, सिर्फ इसलिये कि उससे हमें आनंद मिलता था। धीरे-धीरे, खेल पूंजी-निवेश के एक अवसर के रूप में विकसित होता गया। उदाहरण के तौर पर क्रिकेट वल्र्ड कप को ले लीजिये। अफसोस, जैसे ही खिलाड़ी विश्वविजेता होने में अधिकाधिक लिप्त होते जाते हैं, वे खेल को भूलते जाते हैं। फिर खेल एक काम बन जाता है। खिलाड़ी जब खेल का सिर्फ आनंद लेते हैं, तभी वे अपना अव्वल प्रदर्शन कर सकते हैं।

भारत के लिये खेलने का अर्थ है एक अरब लोगों की आशाओं को पूरा करना और यह आसान नहीं है।

दूसरे दल की काबिलियत और उनकी जीत के कीर्तिमान अब आपके लिए कोई समस्या नहीं रह जाते। पूर्ण स्वीकृति में उनकी उपस्थिति गायब हो जाएगी।
जब खिलाड़ी दूसरे लोगों की अपेक्षाओं को संतुष्ट करने के लिये खेलना शुरू कर देते हैं, उनके मन पर दबाव बढ़ जाता है और उनकी शारीरिक सक्रियता भी मंद हो जाती हैं। जब कोई व्यक्ति वास्तव में प्रसन्न और बेफिक्र होता है, वह असाधारण शारीरिक कार्यों में हिस्सा ले सकता है। खेल के लिये योग का मुख्य पहलू यह है कि बिना किसी पूर्व विचार के कार्य का निष्पादन किया जा सकता है। विचार करने से इरादे स्पष्ट हो सकते हैं।

खेल : बिना किसी पूर्व विचार के

तो, अच्छा खिलाड़ी सोचता नहीं है, इस क्षण में जो भी जरूरी है वह बस उसे करता है। जब खिलाड़ी भरपूर अभ्यास करते हैं, तो उन्हें मैदान में जो भी करना है, उनके अंदर से सहज निकल आता है। उनमें से खेल की मांग के अनुसार कार्य सहज प्रवाहित होता है। फिर विपक्षी जो भी दांव खेलें, खिलाड़ी बहुत फुर्ती से उसका जवाब दे सकते हैं।

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किसी खास स्थिति से जुडऩे और उसका बुद्धिमानी से उत्तर देने के लिये स्वीकृति महत्त्वपूर्ण है। हम दूसरे दल को स्वीकार करें यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
योग के ठीक-ठीक अभ्यास से अपने मन और शरीर पर पूरा नियंत्रण रखते हुए, वे बिना किसी पूर्व विचार के सहज ही कार्य करना सीख सकते हैं।

ध्यान का अर्थ है, अपनी मूल प्रकृति में लौटना। जब आप इस सांस के साथ सहज होते हैं आपकी सारी पहचान मिट जाती है। एक विश्वविजेता के लिए ध्यान करना असंभव है। इसलिए एक क्रिकेटर को खेल खेलते समय अपनी सारी पहचान छोड़ देनी चाहिये। यदि कोई खिलाड़ी निरंतर अपनी पहचान के अनुसार सोचे, तो यह बहुत बोझिल हो जाएगा। जैसे ही वह अपनी पहचान से पूर्ण रूप से मुक्त होता है, फिर उसे खेल खेलना नहीं पड़ता, वह बस स्वभाविक होता है।

खेल : ऊर्जा, मन और शरीर का तालमेल

कोई व्यक्ति एक महान क्रिकेटर कैसे बन जाता है? इसलिये नहीं कि विरोधी दल में हुनर नहीं था। ऐसे खिलाड़ी को चीजों के बीच तालमेल बिठाना बहुत अच्छी तरह से आता है। वह जानता है कि उसे अपने जीवन में क्या चाहिए।

किसी खास स्थिति से जुडऩे और उसका बुद्धिमानी से उत्तर देने के लिये स्वीकृति महत्त्वपूर्ण है। हम दूसरे दल को स्वीकार करें यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
वह जो चाहता है, उसके लिये इतना समर्पित होता है कि उसकी चाहत एक सच्चाई बन जाती है। अगर हमारे क्रिकेट खिलाड़ी अपनी ऊर्जा, शरीर और मन को इस तरह से संगठित करें कि वे अधिक से अधिक केन्द्रित होते जाएं, फिर जो भी होगा उत्तम हेागा। क्रिकेट भी बस एक तरह का काम है जिसे किसी खिलाड़ी ने चुना है।

उस व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से सचमुच सचेतन होना बहुत महत्त्वपूर्ण है। तब वह जो भी खेल खेलता है, वह बहुत अच्छी तरह से खेलता है। जब मूर्ख लोग क्रिकेट खेलते हैं, क्रिकेट एक मूर्खतापूर्ण खेल बन जाता है। जब बुद्धिमान लोग क्रिकेट खेलते हैं, यह बुद्धि का खेल बन जाता है। यह सब इस पर निर्भर करता है कि खेल कौन खेल रहा है।

विनम्रता से ऊँचाइयों को छू सकते हैं

खिलाड़ी अपने को तैयार कैसे करते हैं यह खेल से अधिक महत्त्वपूर्ण है। अपने अंदर कोई खास गुण लाए बिना वे खेल में गुण नहीं ला सकते, वे खेल की गुणवत्ता को नहीं बढ़ा सकते।

खिलाड़ी जब खेल का सिर्फ आनंद लेते हैं, तभी वे अपना अव्वल प्रदर्शन कर सकते हैं।
यदि वे अपने अंदर विनम्रता लाएं, तो उनकी उपलब्धि ऐसी ऊंचाइयों को छूएगी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जो मौजूद है, उसकी स्वीकृति ही विनम्रता है। इस स्वीकृति में वे अपनी बुद्धि का उपयोग करके कार्य कर सकते हैं।

किसी खास स्थिति से जुडऩे और उसका बुद्धिमानी से उत्तर देने के लिये स्वीकृति महत्त्वपूर्ण है। हम दूसरे दल को स्वीकार करें यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। पूर्ण स्वीकृति में कोई विरोध शेष नहीं रहता।

विरोधी दल को पूर्ण रूप से स्वीकार करें

कोई खेल तभी खेला जा सकता है जब दूसरी टीम के खिलाड़ी मौजूद हों - सिर्फ तभी एक मैच संभव हैं। लेकिन जब आप उन्हें स्वीकार कर लेते हैं तो स्वीकृति में कोई तनाव नहीं रह जाता। दूसरे दल की काबिलियत और उनकी जीत के कीर्तिमान अब आपके लिए कोई समस्या नहीं रह जाते। पूर्ण स्वीकृति में उनकी उपस्थिति गायब हो जाएगी। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया भी है। पूर्ण स्वीकृति में संपूर्ण अस्तित्व हमारा एक अंश बन जाता है। प्रकृति का यही नियम है।