सद्‌गुरुध्यानलिंग और देवी मंदिर में पूजा अराधना के तरीकों में अंतर को लेकर कई बार कुछ लोगों के मन में सवाल उठते रहते हैं। इस बार के स्पॉट में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि देवी कैसे कई तरह से अलग हैं।

देवी

प्रश्‍न:

सद्‌गुरु, आपने एक बार पहले संध्याकाल और ब्रम्ह मुहूर्त का महत्व बताया था। मैं पूछना चाहता हूं कि ईशा केंद्र स्थित देवी मंदिर में अभिषेक इस समय के अलावे क्यों होता है?

सद्‌गुरु:

यह सवाल कई पहलुओं से जुड़ा है। इसे आसान शब्दों में इस तरह समझते हैं कि जब हम किसी रूप को साकार करते हैं, या कहें किसी आकृति की रचना करते हैं तो उसके पीछे पूरा गणित होता है। ध्यानलिंग पूरी तरह से सौर तंत्र से संरेखित यानी उसकी सीध में है।

अगर हम मंदिर को केवल रात में ही खुला रख सकें तो यह जबरदस्त तरीके से लोकप्रिय हो उठेगा। देवी को रात की ही जरूरत होती है। रात में वह अति सक्रिय होती हैं।
इसीलिए हम पूरे विश्वास से कहते हैं कि वह अगले पांच से दस हजार साल जीवंत रहेगा। इसकी वजह है कि वह प्राकृतिक तंत्र के साथ बेहतरीन तरीके से तालमेल में है। जबकि देवी के साथ ऐसा नहीं है। वह इस तरह से नहीं बनाई गई हैं। वह थोड़ी अलमस्त और ‘ऑफबीट’ यानी काफी अलग हैं। यहां आपको ऑफबीट शब्द को समझना होगा। इसका मतलब है कि जो प्रकृति की ताल है, वह उससे अलग हैं। उन्हें जानबूझ कर ऐसा बनाया गया है, क्योंकि उनका काम और ऊर्जा दोनों ही काफी अलग तरह के हैं।

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सूर्य हर रोज गोल आकार में निकलता है जबकि चंद्रमा रोज एक नया आकार लेता है, इसलिए लोग चंद्रमा पर ज्यादा ध्यान देते हैं। देवी भी चंद्रमा की तरह हैं, जो अपने दो से ढाई दिन के चक्र या सत्ताइस से साढे सत्ताइस दिन के चक्र में चलती हैं। चूंकि उनकी ऊर्जा का अवधि चक्र छोटा होता है, इसलिए उनका घुमाव अपेक्षाकृत ज्यादा बड़ा होता है, और एक गोलाकार ऊर्जा मंडल की अपेक्षा उनकी ऊर्जा का अनुभव कहीं ज्यादा आसानी से होता है। इसलिए वह ब्रम्ह मुहूर्त और संध्याकाल को नहीं मानतीं। वह प्राकृतिक शक्तियों के साथ तालमेल में नहीं हैं, क्योंकि कोई भी स्त्री किसी न किसी तरीके से औरों से अलग होना चाहती है और निश्चित रूप से वह औरों से काफी अलग हैं। यही उनका आकर्षण, सुंदरता और संभावना है कि आप उनकी ओर ध्यान दिए बिना या उनसे आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकते। अगर आपकी जीवन ऊर्जा उनकी ओर आकर्षित होती है और आप उनका स्पर्श करते हैं तो आप बेहद आनंददायी स्थिति में पहुँच सकते हैं। अगर आप सहज रूप से उनके साथ बैठ जाएं तो वह आपको एक अलग आयाम में ले जाएंगी, क्योंकि उनकी रचना ही इस तरह हुई है।

इसीलिए मुझे हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं वह ध्यानलिंग से ज्यादा लोकप्रिय न हो जाएं। मेरा यह डर सच साबित भी हो रहा है। मैं आज तमाम लोगों को देवी का लॉकेट पहने देखता हूं, लेकिन मैंने किसी को अपने सिर पर ध्यानलिंग धारण किए हुए नहीं देखा। अगर वह बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो उठीं तो हम शायद तीन महीनों के लिए देवी मंदिर बंद कर दें। लेकिन दिक्कत यह है कि अगर हम उनका मंदिर बंद कर देते हैं तो वह और भी लोकप्रिय हो उठेंगी। क्योंकि एक बार आप किसी चीज पर रोक लगा देते हैं तो हर व्यक्ति उसको देखना चाहता है। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि देवी को कैसे संभाला जाए, लेकिन वह जबरदस्त रूप से बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं।

अगर हम मंदिर को केवल रात में ही खुला रख सकें तो यह जबरदस्त तरीके से लोकप्रिय हो उठेगा। देवी को रात की ही जरूरत होती है। रात में वह अति सक्रिय होती हैं। अगर आप रात में मंदिर में प्रवेश करें तो वहां आपको जीवन का एक अलग ही आयाम दिखाई देगा। लेकिन हम चीजों को उस सीमा तक नहीं ले जाना चाहते, क्योंकि आज भारत सहित दुनिया के सभी हिस्सों में पाखंड बुरी तरह से छा गया है।

लोग हर उस चीज से डरते हैं जो उग्र और प्रचंड हो। भारत में ऐसी देवी को हमेशा शेर पर सवार दिखाया गया है, जहां माना जाता है कि देवी शेर से ज्यादा उग्र और भीषण हैं।

देवी भी चंद्रमा की तरह हैं, जो अपने दो से ढाई दिन के चक्र या सत्ताइस से साढे सत्ताइस दिन के चक्र में चलती हैं।
लेकिन लोग जंगली जीव को अच्छा नहीं मानते। वे उनकी उग्रता और प्रचंडता को शांत कर देना चाहते हैं, ताकि वे शेर के साथ खेलने के काबिल बन सकें। सभ्यता की हमारी सोच ऐसी है, जहां हर कोई शांत हो। लोगों को ऐसे लोग नहीं पसंद जो जंगली दिखते हों, खासकर मेरे जैसे - दाढ़ी वाले। वहां सोच है कि जो भी चीज हटाई जा सकती है, उसे हटा देना चाहिए। ऐसा किसी मकसद या जागरूकता के चलते नहीं किया जाता, बस हटा देना होता है।

वह कतई सीधी-सादी या शांत नहीं हैं। वह पूरी तरह से उग्र और प्रचंड हैं। वह महज एक महिला नहीं हैं, बल्कि महिलाओं की महिला हैं। यही वजह है कि हमने आश्रम को शहर से इतना दूर रखा, जहां हमें जंगली जीवन की झलक मिल सके, न कि शहरी जीवन का सान्निध्य। हालांकि हमने आश्रम के चारों तरफ बाड़ों की कुछ बचकानी से चारदीवारी लगाई है, लेकिन अगर कभी हाथियों का कोई झुंड आना चाहे तो वह आराम से कभी भी यहां आ सकता है। इसी तरह से कोई शेर, तेंदुआ या किंग कोबरा आना चाहे तो उन बाड़ों को आसानी से पार कर आ सकता है।

आध्यात्मिक प्रक्रिया और किसी किनारे पर होना सीधा आपस में जुड़े हुए होते हैं। मुझे विश्वास है कि भविष्य में तमाम लोगों के लिए अध्यात्म में प्रवेश का पहला कदम देवी ही होंगी। वे लोग कुछ समय तक देवी की प्रचंडता और जंगलीपन का आनंद उठाएंगे और फिर ध्यानलिंग के साथ तालमेल में आ जाएंगे। भविष्य में यही होने वाला है, क्योंकि आप उनकी उग्रता को अनदेखा नहीं कर सकते।

देवी लिंग भैरवी मेरी इड़ा यानी मेरी बाईं ऊर्जा तंत्र की अभिव्यक्ति हैं। देवी की लीला मेरे लिए एक अनोखी प्रक्रिया और अनुभव हो गए हैं। मेरी कामना है कि आपको भी उनके उन चमत्कारी तरीकों का अनुभव हो - जो एक साथ उग्र और प्रेममय दोनों हैं।