एक वैज्ञानिक हैं जिन्होंने एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक है - अंतहीन ब्रह्मांड। विज्ञान की दुनिया में यह किताब बहुत मशहूर हुई। मुझे एक बार उनके विज्ञान के शो में शामिल होने का मौका मिला। उन्होंने अपने उस खास सत्र को नाम दिया था - ‘बियोंड बिग बैंग।’ अभी तक वैज्ञानिकों का मानना था कि अरबों साल पहले एक बड़ा धमाका हुआ, जिसके प्रभाव से ही ये सारे ग्रह बने, यह ब्रह्मांड बना। लेकिन अब वे कह रहे हैं कि ऐसा सिर्फ एक ही धमाका नहीं हुआ है, बल्कि बहुत सारे धमाके हुए होंगे।

अगर आप प्रकाश के मुकाबले कम गति से चलते हैं तो जैसे ही आप ब्रह्मांड के एक सिरे से दूसरे सिरे पर पहुंचेंगे, तब तक यह और तेजी से फैल चुका होगा। 
मैं इस विज्ञान के विस्तार में नहीं जाऊंगा, लेकिन मेरे लिए यह दिलचस्प बात है कि ये सिद्धांत उसी तरह की बातें करने लगे हैं, जैसी बातें योगिक कथाओं में कही जाती हैं। यह कुछ ऐसा है, जो हम हमेशा से अपने भीतर जानते हैं। वैज्ञानिक धीरे-धीरे न केवल योग विद्या के बारे में बातें कर रहे हैं, बल्कि उन रूपों और आकारों की व्याख्या भी कर रहे हैं, जिन्हें हम हमेशा से पवित्र मानकर पूजते रहे हैं।

ब्रह्माण्ड के सिरे तक क्यों नहीं पहुँच सकते?

योगिक सिस्टम में हम यह नहीं मानते कि आप इस ब्रह्मांड में बाहर जाकर वहां मौजूद हर एक चीज की खोज कर सकते हैं। यह एक ऐसा मत है जिसे अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं। जब कोई वैज्ञानिक इस ब्रह्मांड को अंतहीन कहता है, तो दरअसल वह यह कह रहा है कि आप इसके बारे में कभी पूरी तरह पता नहीं लगा पाएंगे कि यह क्या है। ब्रह्मांड की हर एक चीज पर एक ही मूल सिद्धांत(नियम) लागू होता है और वह है प्रकाश की गति। यही वह अधिकतम गति है, जिस गति से आप चल सकते हैं। अगर आप प्रकाश के मुकाबले कम गति से चलते हैं तो जैसे ही आप ब्रह्मांड के एक सिरे से दूसरे सिरे पर पहुंचेंगे, तब तक यह और तेजी से फैल चुका होगा। ऐसा कोई तरीका ही नहीं है, जिससे आप इसकी पूरी दूरी तय कर सकें। इसी वजह से हम इसे अंतहीन ब्रह्मांड कह रहे हैं। यह कुछ ऐसी बात है जिसे हजारों साल पहले भी कहा जा चुका है।

ब्रह्माण्ड को जानने का तरीका क्या है?

ऐसे में इसके अस्तित्व को समझने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि अपने भीतर की ओर मुड़ा जाए। ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी घटित होता है, वह किसी न किसी रूप में हमारे शरीर रूपी छोटे से ब्रह्मांड में रेकॉर्ड हो जाता है। इस रेकॉर्डिंग के कारण और इस सृष्टि के प्रतिबिंब की वजह से ही हम कहते हैं कि इंसान ईश्वर का ही एक रूप है। हजारों साल पहले योगिक प्रणाली में कही गई इस तरह की बात की झलक लगभग हर धर्म में मिलती है, लेकिन उसका रूप विकृत कर दिया गया। हमारा सिर्फ इतना कहना था कि ब्रह्मांड में जो कुछ भी घटित होता है, वह छोटे पैमाने पर आपके भीतर भी घटित होता है। अगर आपने इसे समझ लिया तो बाहर होने वाली घटनाओं के बारे में भी आपको सबकुछ पता चल जाएगा। हम सृष्टि (ब्रह्माण्ड) और स्रष्टा को अलग नहीं कर सकते। जैसी रचना है, वैसा ही रचनाकार है।

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शिव शक्ति की कथा के माध्यम से समझाया गया ब्रह्माण्ड को

अब मैं आपको बताता हूं कि योग में सृष्टि को कैसे अपने भीतर से समझाया गया है। देखिए, यह एक कथा-कहानी की संस्कृति रही है। अगर आप चाहें तो मैं इसकी पूरी एबीसी समझा सकता हूं, लेकिन पहले इस संस्कृति का आनंद लेते हैं। इस कथा-कहानी में हर शब्द की अपनी एक खास सुंदरता होती है। चूंकि हम यहां एक ऐसे पहलू पर बात कर रहे हैं जो तर्क से परे हैं, तो अच्छा होगा कि हम इसे कहानी के अंदाज में ही जानें। तो कहानी कुछ इस तरह है।

शिव सो रहे हैं। जब हम यहां ‘शिव’ कहते हैं तो हम किसी व्यक्ति या योगी के बारे में बात नहीं कर रहे, बल्कि यहां शिव का मतलब है - जो है ही नहीं। जो नहीं है, वो केवल सो सकता है। उसे हमेशा ‘अंधकार’ से संबोधित किया गया है।

शिव चौरासी बार गरज चुके हैं और एक सौ बारह के बाद वह नहीं गरजेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि शून्यता ही अपने आप में ब्रह्मांड बन जाएगी।  
शिव सो रहे हैं, और शक्ति उन्हें ढूंढती हुई आती हैं। वह उन्हें जगाना चाहती हैं, क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना और प्रेम करना चाहती हैं। वह अपना प्रेम जताना चाहती हैं। शुरू में तो वह नहीं उठते, लेकिन कुछ देर बाद उठ जाते हैं। जब कोई व्यक्ति गहरी नींद में होता है और आप उसे जगा देते हैं तो वह थोड़ा नाराज तो होगा ही। जब आप गहरी नींद में होते हैं और कोई आकर आपको जगा दे तो आपको इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वह कितना सुंदर है, आपको उस पर गुस्सा आएगा ही, इसलिए शिव भी गुस्से में गरजते हुए उठते हैं। चूंकि वह गरजते हुए उठे, इसलिए उनका पहला नाम ‘रुद्र’ पड़ गया। रुद्र का अर्थ होता है गरजने वाला।

बिग बैंग को गर्जन कहना ज्यादा ठीक होगा

मैंने उस वैज्ञानिक से सवाल किया कि ‘अगर लगातार धमाके हुए हैं तो क्या यह गर्जन जैसा था? वह केवल एक धमाका था या यह लगातार हो रहा था?’ उन्होंने कुछ सोचा और फिर बोले, ‘वह एक धमाका नहीं हो सकता’। फिर मैंने पूछा - ‘आप उसे धमाका क्यों कह रहे हैं, वह गर्जन भी तो हो सकता है?’

आज हम अपने अनुभव से जानते हैं कि मानव-शरीर में एक सौ चौदह चक्र होते हैं। एक सौ चौदह बिंदुओं में से चौरासी बिंदुओं की प्रकृति एक सी होती है और बाकी की अलग। पहले चौरासी बिंदुओं का संबंध अतीत से है और बाकी का भविष्य से। हम मानते हैं कि शिव चौरासी बार गरजे थे, जिसका मतलब हुआ कि चौरासी बिग बैंग हुए जिससे चौरासी ब्रह्माण्ड बनें। धीरे-धीरे जैसे-जैसे समय बीतता गया, ये ब्रह्मांड अपने आकार खोते गए और इन्होंने हल्के होकर फैलना शुरू कर दिया, जिससे ये विघटित हो गए (बिखर गए)। एक ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ, उसने अपनी सीमाओं तक अपना फैलाव किया, अपने को नष्ट किया और फिर से बनना शुरू कर दिया।

जिस तरह इस सृष्टि की रचना हुई, हमारा भौतिक शरीर भी उसी तरह बना है। जब आप एक पेड़ काटते हैं तो आपको उसके अंदर कई रिंग दिखाई देते हैं। ये रिंग आपको उस पेड़ के जीवन-काल में इस धरती पर घटित हुई लगभग सभी घटनाओं की जानकारी देंगे। ठीक वैसे ही अगर आप इस शरीर के भीतर देखें, आपको इसे खोलकर देखने की भी जरूरत नहीं है, तो आपको पता चल जाता है कि इस पूरे ब्रह्माण्ड की रचना कैसे हुई।

ये चौरासीवां ब्रह्माण्ड है, और कुल 112 ब्रह्माण्ड बनेंगे

खैर, यह चौरासीवां चक्र है और जब तक यह एक सौ बारह तक नहीं पहुंचता, यह ऐसे ही चलता रहेगा। बस एक सौ बारह चक्र ही हैं, जो घटित होने हैं, क्योंकि बाकी के दो अभौतिक हैं। यह एक सौ बारह ब्रह्मांड ही भौतिक प्रकृति के हैं, जबकि आखिरी दो शाश्वत हैं, निरंतर हैं। इसका मतलब यह हुआ कि एक सौ बारह के बाद एक सौ तेरहवीं रचना जो होगी, वह आंशिक रूप से भौतिक होगी और एक सौ चौदह आते ही वह पूरी तरह अभौतिक हो जाएगी। यह रचना ‘जो नहीं है’ से होगी, जो अभी तक किसी रूप में प्रकट नहीं हुई है। ‘जो नहीं है’ वो एक बिलकुल ही सूक्ष्म रूप में प्रकट होगा। यही बात योग कहता है। शिव चौरासी बार गरज चुके हैं और एक सौ बारह के बाद वह नहीं गरजेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि शून्यता ही अपने आप में ब्रह्मांड बन जाएगी। यह ब्रह्मांड भौतिक नहीं होगा।

इस शरीर के साथ और भी कई पहलू जुड़े हैं। जिस तरह से ब्रह्मांड विज्ञान का विकास हुआ है, इन सबको बस अपने भीतर की तरफ मुड़कर भी समझा जा सकता है। हमने न जाने कितना पैसा, समय और उर्जा इन चीजों की खोज में लगा दी, लेकिन अगर आप एक पल के लिए भी अपने भीतर देखें, तो हर इंसान के लिए इन पहलुओं को देख पाना संभव है। आप चौरासीवें ब्रह्मांड में रहते हैं और आपमें अलग अलग प्रकृति के चौरासी चक्र होते हैं। इसी को आधार बनाकर योग में चौरासी मूल आसन हैं। ध्यान के एक सौ बारह तरीके हैं, लेकिन मूल आसन चौरासी हैं, क्योंकि ये चौरासी आसन आपके अतीत की यादों से संबंधित हैं। बाकियों का संबंध आपके भविष्य से है। भूतकाल की इन स्मृतियों से मुक्त होना पड़ता है। अब तक के चौरासी धमाकों तक की सूचनाएं या कार्मिक बंधन हमारे भीतर हैं। सब कुछ इस शरीर में रिकॉर्ड होता है, इसीलिए भौतिक प्रकृति एक बंधन है।