एक तरफ तो जीवन को आनंदमय बनाने की कोशिश है तो दूसरी तरफ योग के इतने सारे नियम! क्या ये नियम जीवन में आनंद को बचने देंगे?

प्रश्न: सद्‌गुरु, मैं हठ योग टीचर ट्रेनिंग ले रही हूं। यहां हमें हर छोटी-छोटी बात का ध्यान रखना पड़ता है जैसे बैठना कैसे है, खाना कैसे है और क्या खाना है, यहां तक कि सांस कैसे लेना है। इन नए नियमों को अपनाने की कोशिश करते हुए खुद को दुखी करने और खुद को आनंदपूर्ण बनाने के बीच की सीमा रेखा आखिर कहां है?

सद्‌गुरु: पहली बात तो यह कि ये सब कोई नए नियम या नियंत्रण नहीं हैं। ये निश्चित तौर पर नियंत्रण नहीं हैं, हां, हम उन्हें नियम कह सकते हैं। भारतीय संस्कृति में कभी ज्ञान की शिक्षा नहीं दी गई। और भारतीयों को तो ईश्वर भी आदेश नहीं दे सकता, क्योंकि वे उससे बहस करने लगेंगे। वे बहुत सवाल पूछते हैं। कैलाश यात्रा के समय, एक भारतीय प्रतिभागी ने बहुत जटिल सवाल पूछा।

धरती पर हर दूसरे प्राणी ने अपने शरीर की ज्यामिति को अच्छी तरह समझ लिया और वह यह जानता है कि अपने शरीर का पूरी तरह इस्तेमाल कैसे किया जाए। सिर्फ इंसान ही ऐसा नहीं करता क्योंकि वह खुद के सिवा बाकी हर चीज पर ध्यान देता है।
मैंने कहा, ‘देखिए, यह एक भारतीय समस्या है। आप यह सोचते रहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा जटिल सवाल कैसे लाएं।’ एक चीनी महिला ने इस पर सहमति जताई, ‘हां, मैं संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करती हूं और हमेशा हैरान होती हूं कि सिर्फ भारतीय क्यों सवाल पूछते हैं।’ हर चीज पर सवाल उठाने की हमारी पुरानी परंपरा रही है।

ईश्वर ने अपने दूतों और अपने पुत्रों को दूसरी जगहों पर भेजा, इसलिए लोग दावा करते हैं कि उनके पास जो नियम हैं, वे ईश्वर ने बनाए हैं और उन पर सवाल उठाने की कभी किसी ने हिम्मत की। यहां ईश्वर खुद आया और बड़ी सावधानी से चुना कि किससे बात करनी है। इसके बावजूद, सवाल अंतहीन थे। आप जानते ही हैं कि अर्जुन ने कृष्ण से कितने प्रश्न पूछे। कृष्ण के लिए अर्जुन को आदेश देना संभव नहीं था। वह उसे विश्वास दिलाने की कोशिश करते रहे, मगर अर्जुन के पास सवाल भरे पड़े थे।

भारतीय संस्कृति में, हम जीवन को चलाने वाले मूलतत्व को धर्म कहते हैं। गौतम बु‍द्ध ने उसे धम्म कहा। दुर्भाग्यवश आजकल लोग गलती से धर्म को रिलीजन समझ लेते हैं, मगर धर्म का मतलब है नियम, न कि शिक्षा, दर्शन, किसी मत में विश्वास या फिर रिलीजन।

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अस्तित्व के नियम

समाज और दुनिया के विभिन्न पहलुओं को संचालित करने के लिए इंसान ने कुछ नियम बनाए हैं ताकि समाज यथा संभव सहजता से चले। उदाहरण के लिए, भारत में आपको सड़क के बाईं ओर चलना होता है।

भले ही आपके पास एक खूबसूरत मशीन हो, मगर जरूरी चिकनाहट के बिना उससे कर्कश आवाजें निकलेंगी। तभी कृपा की जरुरत होती है।
यह अंतीम सत्य नहीं है मगर एक नियम है जिसे यातायात को सुचारू करने के लिए बनाया गया। फिर वाहनों को भी उसी तरह बनाया गया। इस तरह समाज को संचालित करने वाले कई नियम और व्यवस्थाएं हैं ताकि हम एक-दूसरे के साथ टकराएं नहीं। मगर समाज और इंसानों के बनाए नियमों से पहले भी जीवन सहज रूप से चलता था, फिर वह विकसित हुआ। उस विकास के लिए भी कुछ मूलभूत नियम रहे होंगे।

उदाहरण के लिए अगर आप जंगल में चले जाएं, तो हो सकता है कि आप उसके नियमों को न जानते हों मगर जंगल लाखों सालों से मौजूद हैं। इतने लंबे समय तक खुद को नष्ट किए बिना या सभी प्राणियों द्वारा एक-दूसरे को नष्ट किए बिना अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए उसे संचालित करने वाले कुछ नियम तो होंगे ही। इस संस्कृति में लोगों ने उन नियमों पर गौर किया जो ब्रह्माण्ड को ही नहीं, हमारी आंतरिक प्रकृति और सृष्टि की प्रक्रिया को भी संचालित करते हैं। लोगों ने उन नियमों का पता लगाया – कोई कल्पना नहीं की या सिर्फ विश्वास नहीं कर लिया, बल्कि जीवन के विभिन्न आयामों को ध्यान से और बारीकी से देखते हुए इन नियमों का पता लगाया।

शरीर को समझकर नियम तय किये गए हैं

कैसे बैठना चाहिए, यह मैंने तय नहीं किया है। मानव शरीर एक खास तरह से बना है। नंदी जिस तरह ध्यानलिंग के सामने बैठा है, वह एक बैल के लिए सही तरीका है। मगर आप इंसान के रूप में दुनिया में आए हैं, इसलिए आपके शरीर की ज्यामिति अलग है।

धरती पर हर दूसरे प्राणी ने अपने शरीर की ज्यामिति को अच्छी तरह समझ लिया और वह यह जानता है कि अपने शरीर का पूरी तरह इस्तेमाल कैसे किया जाए। सिर्फ इंसान ही ऐसा नहीं करता क्योंकि वह खुद के सिवा बाकी हर चीज पर ध्यान देता है।
सभी भौतिक चीजों और जीवन के भौतिक पहलुओं का एक ज्यामितिय आधार है। अगर आप किसी भौतिक चीज – चाहे वह इंसानी शरीर हो, बैल हो या कोई मशीन – उसकी ज्यामिति को समझ लेते हैं, तो आप जान पाएंगे कि उसका अधिकतम लाभ कैसे उठाया जाए।

धरती पर हर दूसरे प्राणी ने अपने शरीर की ज्यामिति को अच्छी तरह समझ लिया और वह यह जानता है कि अपने शरीर का पूरी तरह इस्तेमाल कैसे किया जाए। सिर्फ इंसान ही ऐसा नहीं करता क्योंकि वह खुद के सिवा बाकी हर चीज पर ध्यान देता है। इसलिए ईशा हठ योग में जो निर्देश दिए जाते हैं, वे नए नियम नहीं हैं। अगर आप अपने शरीर की ज्यामिति पर ध्यान देते हैं, तो आप एक खास तरह से उठेंगे और बैठेंगे ताकि आपका शरीर कम से कम ऊर्जा में अधिक से अधिक प्रभाव पैदा कर सके। भौतिक शरीर की क्षमता, इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी ज्यामिति की समझ कैसी है। दूसरे शब्दों में आप सामाजिक नकल से जागरूकता की ओर बढ़ रहे हैं।

अगर हम सभी फर्नीचर हटा दें, तो आप अपने शरीर की ज्यामिति को जान जाएंगे। यही बात भोजन पर लागू होती है। मानव शरीर एक खास तरह के भोजन के लिए तैयार किया गया है। मगर जीवित रहने की प्रक्रिया में या सांस्कृतिक प्रभावों के कारण, लोगों ने हर तरह की चीजें खानी शुरु कर दी। मूल रूप से अगर दुनिया के किसी हिस्से में किसी ने मांस का एक टुकड़ा खाया होगा, तो वह पसंद के कारण नहीं, बल्कि जीवित रहने के खाया होगा। हो सकता है कि वहां कुछ उगता नहीं होगा या उन्हें खेती के बारे में पता नहीं होगा। बाद में जाकर वह पसंद या उनकी संस्कृति का हिस्सा बना होगा। अगर यह जीवन-रक्षा का प्रश्न है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। यह कोई नैतिक मुद्दा नहीं है। बात बस यह है कि अगर आप अपने सिस्टम में गलत ईंधन डालेंगे, तो आप इसके अच्छे से चलने की उम्मीद नहीं कर सकते।

एक सक्षम जीवन

कार्य में कुशल होने का मतलब सिर्फ किसी एक काम को अच्छी तरह करना नहीं है। एक बार जब आप इंसान के रूप में दुनिया में आते हैं, तो आपके अंदर वह बुद्धि होती है कि आप वो कोई भी काम कर सकें जो आपको करना चाहिए और सबसे बढ़कर इंसान होने की पूर्ण गहराई और आयाम को प्राप्त कर सकें।

मगर आखिरकार जब तक कि आप जीवन को संचालित करने वाले नियमों का पता नहीं लगा लेते, आप उतने सक्षम और कामों में नतीजे पैदा करने वाले नहीं बन पाएंगे, जैसे आप बन सकते हैं।
मानव जीवन को सफल बनाने, ढेर सारी चीजें करने की संभावना का लाभ उठाने और सबसे बढ़कर उस स्तर की संवेदनशीलता लाने, जहां आप इंसान होने के हरेक आयाम का अनुभव कर सकें – इन सबके लिए यदि आपका आहार, मुद्रा या मानसिकता बाधा बनते हैं, तो मैं इसे एक असक्षम जीवन कहूंगा। सही चीजें करने का संबंध नैतिकता से नहीं है, यह स्वर्ग का टिकट लेने या सामाजिक स्वीकृति से भी जुड़ा मुद्दा नहीं है। सही चीजें करने से इंसान के जीवन में अधिकतम नतीजे मिल सकते हैं। अलग-अलग लोग अलग-अलग तरीके से इसे पाने की कोशिश करते हैं। मगर आखिरकार जब तक कि आप जीवन को संचालित करने वाले नियमों का पता नहीं लगा लेते, आप उतने सक्षम और कामों में नतीजे पैदा करने वाले नहीं बन पाएंगे, जैसे आप बन सकते हैं।

कभी कभी झूठ भी कारगर होता है

पहली झलक में झूठ या कपट से भी सफलता मिलती दिखती है। एक बार ऐसा हुआ, दो कारें एक-दूसरे से टकरा गईं। एक गाड़ी एक डॉक्टर की थी और दूसरी एक वकील की। टक्कर के बाद, दोनों मुश्किल से अपनी कारों से निकले।

अगर आप जीवन को संचालित करने वाले नियमों के तालमेल में नहीं हैं, तो आप निश्चित रूप से जीवन की प्रक्रिया से कुचल कर रह जाएंगे।
वकील ने अपनी कार से व्हिस्की की बोतल निकाली और बोला, ‘हमें जश्न मनाना चाहिए। हमारी इतनी जबर्दस्त टक्कर हुई, फिर भी हम दोनों जख्मी नहीं हुए। चलो जश्न मनाते हैं।’ उसने बोतल डॉक्टर को पकड़ा दी। डॉक्टर इस दुर्घटना से थोड़ा डर गया था, इसलिए उसने एक बड़ी घूंट भरी और बोतल वकील को दे दी। वकील ने उसे वापस कार में रख लिया। डॉक्टर ने पूछा, ‘आप नहीं पिएंगे?’ वकील बोला, ‘पुलिस के जाने के बाद।’

कभी कभी, चालाकी या कपट काम कर जाती है। लेकिन अगर आप इस तरह की चीजें नियमित रूप से करेंगे, तो बाकियों को पता चल जाएगा कि उन्हें क्या करना है और जीवन को पता चल जाएगा कि आपके साथ क्या करना है।

ज्यादातर लोगों के जीवन में कोई बड़ी आपदा नहीं आती। बाहरी जीवन उनके प्रति उदार रहता है मगर अंत में जीवन अंदर से उन्हें पीसता है। ऐसा सिर्फ जीवन को संचालित करने वाले नियमों के साथ तालमेल में न होने के कारण होता है।
अगर आप जीवन को संचालित करने वाले नियमों के तालमेल में नहीं हैं, तो आप निश्चित रूप से जीवन की प्रक्रिया से कुचल कर रह जाएंगे। ज्यादातर लोगों के जीवन में कोई बड़ी आपदा नहीं आती। बाहरी जीवन उनके प्रति उदार रहता है मगर अंत में जीवन अंदर से उन्हें पीसता है। ऐसा सिर्फ जीवन को संचालित करने वाले नियमों के साथ तालमेल में न होने के कारण होता है। उसके बाद टकराव और घर्षण होता है। अपने अंदर घर्षण के कारण, आपके अंदर कष्ट और पीड़ा, घबराहट, तनाव, दुख, पागलपन होता है, आप इसे जो चाहे नाम दे सकते हैं। घर्षण या टकराव की मात्रा तय करती है कि समय के साथ आपका चेहरा कितना लटक जाएगा। अगर घर्षण या टकराव न हो, तो आपका चेहरा मुस्कराहट से भरा रहेगा।

इंसानों ने जो संभावनाएं खोली हैं, उसकी वजह यह है कि प्रकृति कुछ खास नियमों पर चलती है। वह जिस तरह संचालित हुई, उसके कारण आप इंसान बने। अगर वह दूसरी तरह से संचालित होती, तो शायद आप बैल या पेड़ बन जाते। अगर आप ध्यान दें और समझ पाएं कि मानव प्रणाली ने किस तरह और क्यों खुद को आकार दिया, और अगर आप इन नियमों से जुड़ें तो आपका सिस्टम कम से कम घर्षण के साथ काम करेगा। अगर कोई घर्षण न हो, तो आप दुखी या तनावग्रस्त नहीं होंगे। आप रोजाना दुखों को गढ़ेंगे नहीं। अगर आप अपने सिस्टम को सीध में लाना नहीं जानते, तो कम से कम आपको कृपा की चिकनाई का इस्तेमाल करना चाहिए। भले ही आपके पास एक खूबसूरत मशीन हो, मगर जरूरी चिकनाहट के बिना उससे कर्कश आवाजें निकलेंगी। तभी कृपा की जरुरत होती है। आपकी मशीन पर्याप्त सीध में नहीं है, मगर कृपा उसे घर्षण या टकराव रहित बना देगी।