प्रश्न: सद्गुरू, मैं पेशे से एक एनेस्थीसियोलॉजिस्ट हूं। दो सौ साल हो चुके हैं, मगर हम लोग अब तक नहीं समझ पाए कि हम वास्तव में मरीजों को कैसे बेहोश करते हैं। इस बारे में बस सिद्धांत हैं। परेशानी की बात यह है कि कुछ मरीज सर्जरी की पूरी अवधि के दौरान पूरी तरह सचेत रहते हैं और हम इसकी वजह नहीं समझ पाते। चेतनता की सात परतों के बारे में मैंने आपको बात करते हुए सुना। दवाओं से कितनी चेतनता खत्म की जा सकती है? और क्या योगाभ्यास करने वाले लोग इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सचेत रहते हैं?

एनेस्थीसिया का चेतना पर कोई असर नहीं पड़ता

 सद्‌गुरु: चाहे आप किसी भी तरह का एनेस्थेटिक इस्तेमाल करें, आप चेतनता को जरा भी खत्म नहीं कर सकते। आप सिर्फ पीड़ा और याद करने की क्षमता को खत्म करते हैं।

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एनेस्थेसिया एक वरदान है, जो आपके शरीर की पीड़ा और याददाश्त को खत्म करता है, लेकिन वह किसी भी तरह से चेतनता को खत्म नहीं करता। यह आपके उस पहलू को नहीं छूता। 
ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति एक बड़ी सर्जरी से गुजरे, जिसमें उसे फुल एनेस्थीसिया दिया गया हो और होश में आने के बाद उसे कुछ भी याद न हो, मगर पच्चीस साल बाद उसे अचानक से सर्जरी का हर क्षण याद आ जाए। मुझे पता नहीं कि ऐसे मामले हुए हैं या नहीं, लेकिन ऐसा होना संभव है क्योंकि आप सिर्फ याद करने की प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं। आप चेतनता को कितनी भी मात्रा में दवा देकर खत्म नहीं कर सकते। एक बार ऐसा हुआ, शंकरन पिल्लै डेंटिस्ट के पास गए और बोले, ‘मुझे एक दांत निकलवाना है। कितना खर्च आएगा?’ डेंटिस्ट ने कहा, ‘पांच हज़ार रुपए लगेंगे।’ शंकरन पिल्लै ने कहा, ‘नहीं, नहीं, यह तो बहुत महंगा है।’ डेंटिस्ट ने कहा, ‘मगर फीस तो यही है।’ फिर शंकरन पिल्लै ने पूछा, ‘मुझे पता चला है कि सर्जरी का आधा खर्च एनेस्थीसिया के कारण है। मान लीजिए, आप किसी तरह का एनेस्थीसिया इस्तेमाल न करें, तो इसमें कितना खर्च आएगा।’ डेंटिस्ट बोला, ‘यह बहुत कष्टदायी होगा, लेकिन इसका खर्च सिर्फ़ ढाई हज़ार रुपए होगा।’ फिर शंकरन पिल्लै बोला, ‘मान लीजिए, दांत आप खुद नहीं निकालते, बल्कि अपने एक ट्रेनी डेंटिस्ट को ऐसा करने देते हैं, तो इसमें कितना खर्च आएगा?’ डेंटिस्ट बोला, ‘आपको फिर वही प्रोफेशनलिज्म और विशेषज्ञता नहीं मिल पाएगी, लेकिन खर्च सिर्फ एक हज़ार रुपए रह जाएगा।’ फिर शंकरन पिल्लै ने पूछा, ‘मान लीजिए आपका कोई छात्र, जो प्रशिक्षण ले रहा डेंटिस्ट हो, दांत उखाड़े और दूसरे दस विद्यार्थी उसे ऐसा करते हुए देखें, मतलब अगर आप इसे डेमो की तरह इस्तेमाल करें, फिर?’ डेंटिस्ट बोला, ‘इसमें काफी कष्ट होगा और दस लोग आपके मुंह के अंदर झांक रहे होंगे तो इससे काफी शर्मिंदगी हो सकती है, लेकिन इसके लिए मुझे आपको दो हज़ार रुपए देने होंगे।’ शंकरन पिल्लै बोला, ‘अरे, ये असल बात की न आपने! मैं अपनी सास के लिए कल का एप्वाइंटमेंट लेना चाहता हूं।’

एनेस्थीसिया से मृत्यु होने पर भी चेतना पर असर नहीं पड़ता

एनेस्थीसिया एक वरदान है, जो आपके शरीर की पीड़ा और याददाश्त को खत्म करता है, लेकिन वह किसी भी तरह से चेतनता को खत्म नहीं करता। यह आपके उस पहलू को नहीं छूता।

  योग में पीड़ा को सुन्न नहीं किया जाता। योग का तरीका यह है कि अगर आपको एक छोटी सी समस्या है, तो हम चाहते हैं कि आप उससे कहीं अधिक बड़ी समस्या को समझें।  
चाहे अधिक एनेस्थीसिया की वजह से किसी की मृत्यु भी हो जाए – मुझे आशा है कि ऐसी घटनाएं अधिक नहीं होती होंगी – उस समय भी आप उस व्यक्ति की चेतनता को नहीं छू पाते। आप बस उस शरीर को इतना सुन्न कर देते हैं, कि वह ठीक नहीं हो पाता। लेकिन आपने उसकी चेतना को नहीं छुआ है और न ही छू सकते हैं। इसी वजह से आध्यात्मिक प्रक्रिया इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आप एक ऐसे आयाम को छूते हैं, जिसे कोई और नहीं छू सकता। इसीलिए गुरु का स्पर्श जीवन में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि वह उस आयाम को छूता है, जिसे दूसरा कोई नहीं छू सकता। प्रश्न: आपने कहा कि एनेस्थीसिया सिर्फ याद करने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है, लेकिन क्या ऐसा योग का अभ्यास करने वाले लोगों में भी हो सकता है?

योग एनेस्थीसिया से ठीक विपरीत है

 सद्‌गुरु: योग का अभ्यास करने वालों के साथ यह समस्या है कि वे बाकियों की तुलना में अधिक चीजें याद रख पाते हैं। मुझे अपने जीवन की वे चीजें भी याद हैं, जो उस समय हुई थीं, जब मैं शिशु था और करीब दो, तीन महीने का था। अधिकतर लोग चार वर्ष की उम्र से पहले की चीजों को याद नहीं कर पाते। मगर असल में आप उससे भी आगे की चीजें याद कर सकते हैं – आप कई जीवनकालों की बातें याद कर सकते हैं। योग का मकसद आपको सुन्न बनाना नहीं है। योग का मकसद आपको इस तरह तेजस्वी बनाना है कि आप अभी जीवंतता को जिस रूप में जानते हैं, उससे कहीं अधिक जीवंत हों। सुन्न करना या हकीकत से छिपना, कभी योग का मकसद नहीं रहा है। उसका मकसद हकीकत का सामना करना और एक ज्यादा बड़ी हकीकत को जानना है जो उन सभी छोटी चीजों को गायब कर देती है, जिन्हें आप असली समझते हैं और जो आपको परेशान करती हैं। वे सारी छोटी चीजें गायब हो जाएंगी, इसलिए नहीं क्योंकि वे खत्म हो गईं हैं लेकिन सिर्फ इसलिए क्योंकि वे महत्वहीन हो गई हैं। योग में पीड़ा को सुन्न नहीं किया जाता। योग का तरीका यह है कि अगर आपको एक छोटी सी समस्या है, तो हम चाहते हैं कि आप उससे कहीं अधिक बड़ी समस्या को समझें। अगर आप उस बड़ी समस्या का सामना करेंगे, तो आपकी सभी छोटी समस्याएं तुच्छ हो जाएंगी और आपके भीतर हमेशा सिर्फ एक समस्या सुलगती रहेगी। वह इतनी तीव्रता के साथ सुलगती रहती है कि आप उसका हल खोजे बिना नहीं रह सकते। और उसका हल आपके विसर्जन में होता है। तो एनेस्थीसिया योग का उलट है क्योंकि वह, जो मौजूद है, उसे सुन्न करने की कोशिश करता है। योग में हम सुन्न बनाने की कोशिश नहीं करते। हम आपकी समस्या के दायरे को असीमित रूप से बढ़ाने की कोशिश करते हैं, ताकि आपकी समस्या सीमित समस्या न रहे – वह एक असीम समस्या बन जाए। अगर आप इसे समझ लेंगे, तो अचानक आपको लगेगा कि कोई और समस्या नहीं है क्योंकि बाकी सब कुछ पूरी तरह महत्वहीन हो जाता है। ऐसा नहीं है कि फिर छोटी समस्याओं का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा – बस बड़ी समस्या की ओर ध्यान देने से वे महत्वहीन हो जाएंगी।

क्या चेतना की सात परतें होती हैं?

प्रश्न: चेतनता की वे सात परतें कौन सी हैं, जिनका आपने जिक्र किया था?
 

सदगुरु: चेतनता की सात परत या सात आयाम जैसी कोई चीज नहीं होती है। चेतनता बस एक ही होती है। बात बस इतनी है कि किसी व्यक्ति के विकास के क्रम में या चीजों के बोध में, विकास के सात कदम हो सकते हैं। चूंकि विकास के सात कदम हैं, वह व्यक्ति उसका बोध सात हिस्सों में करेगा। या समझने के लिए, हम उसे सात हिस्सों में बांट सकते हैं। यह कुछ ऐसा ही है जैसे भारत में अगर हम वेल्लिंगिरी हिल्स की बात करें, तो उसे सेवन हिल्स कहा जाता है। यहां वास्तव में सात पहाड़ नहीं हैं, यह एक ही बड़ा पर्वत है। बस जब हम उस पर चढ़ते हैं, तो वहां सात बार एक सीधी चढ़ाई और फिर थोड़ी सी उतराई है। इसलिए पहाड़ पर चढ़ने के हमारे अनुभव में हम ऐसा महसूस करते हैं या अपने दिमाग में तय कर लेते हैं कि यहां सात पहाड़ हैं क्योंकि हम जिस मार्ग से चढ़ते हैं, उसमें सात बार उतार-चढ़ाव हैं। जब हम उसी पहाड़ पर दूसरी ओर से चढ़ते हैं, तो वह सिर्फ एक बड़ा पहाड़ है, सात पहाड़ियां नहीं। चेतनता सिर्फ एक है। लेकिन, सिर्फ तब, जब इंसान कोई खास मार्ग अपनाता है, तो आपको लग सकता है कि इसमें सात कदम हैं। मगर यदि आप खुद को मेरे सामने समर्पित कर दें, तो मैं यह पक्का कर सकता हूं कि इसमें सिर्फ एक ही कदम हो, सात नहीं। यह इस पर निर्भर करता है कि आप पहाड़ पर किस ओर से चढ़ते हैं। उसी के अनुसार, व्यक्ति का अनुभव बदलता है।