सद्‌गुरुआज देश के कई सारे संगठन भ्रष्टाचार के शिकार हो गए हैं। ऐसे में सद्‌गुरु से प्रश्न पूछा गया कि वे ईशा में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए क्या करते हैं। जानते हैं सद्‌गुरु से -

प्रश्न : सद्‌गुरु, हमारे समाज में भ्रष्टाचार गहराई तक समाया हुआ है। यह कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है कि कोई ईशा जैसी संस्था, जो तेजी से आगे बढ़ रही है, भ्रष्टाचार की शिकार न हो जाए?

भ्रष्टाचार हर स्तर पर हो सकता है

सद्‌गुरु : भ्रष्टाचार कई तरीके से हो सकता है, यह सिर्फ पैसे का ही नहीं होता। अगर आपको यहां 6:15 बजे तक आना है और आप 6:16 बजे आकर सबसे आगे बैठ जाते हैं, तो मेरे लिए यह भी भ्रष्टाचार ही है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
एक समय था जब आध्यात्मिक व्यक्ति अगर कुछ बोलता था या कुछ करता था तो लोग उस पर भरोसा करते थे, भले ही वे उन बातों को पूरी तरह से समझ न पाते हों। ऐसा इसलिए था, क्योंकि सत्यनिष्ठा और आध्यात्मिक प्रक्रिया एक-दूसरे के पर्यायवाची थे।
इस मामले पर मैं इतनी गहराई से सोचता हूं। ईशा में हम भ्रष्टाचार पर सख्ती से लगाम कस रहे हैं। यहां बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जो सालों से काम कर रहे हैं। इन लोगों के लिए मेरे मन में अपार सम्मान भी है, लेकिन ये भी अगर जरा-सा भी भाई-भतीजावाद या पक्षपात करते नजर आते हैं तो उन्हें फौरन नीचे ला दिया जाता है। कुछ लोग समझते हैं कि उनके लिए यह अच्छी सीख है। जो नहीं समझ पाते, हमें छोडक़र चले जाते हैं। संगठन को पूरी जागरूकता के साथ प्रभावशाली और कारगर बनाने की हमारी हमेशा से कोशिश रही है। इसके पीछे मूल कारण यही है कि आध्यात्मिक आंदोलन भ्रष्ट न हो।

एक समय था जब आध्यात्मिक व्यक्ति अगर कुछ बोलता था या कुछ करता था तो लोग उस पर भरोसा करते थे, भले ही वे उन बातों को पूरी तरह से समझ न पाते हों। ऐसा इसलिए था, क्योंकि सत्यनिष्ठा और आध्यात्मिक प्रक्रिया एक-दूसरे के पर्यायवाची थे। दुर्भाग्य से कई आध्यात्मिक नेताओं और संगठनों की स्थिति आज शक के घेरे में आ गई है। आज हालत यह हो गई है कि अगर आप कहें कि मैं आध्यात्मिक हूं तो लोग सोचते हैं कि आपकी जांच की जानी चाहिए। इस संदर्भ में देश भर के आध्यात्मिक नेताओं से मिलना मेरे लिए आंख खोल देने वाला अनुभव रहा है। कुछ तो वास्तव में शानदार लोग हैं, लेकिन ज्यादातर लोग निष्ठावान नहीं हैं। निष्ठा की यही कमी उनके अनुयायियों तक भी फैल जाती है। आध्यात्मिकता का उनका विचार ये है कि हर चीज़ से कैसे बच निकलें। अपने भ्रष्ट आचरण को सही ठहराने के लिए वे माया और कर्म के सिद्धांतों का दुरुपयोग करते हैं। आध्यात्मिक शब्द को आज बेहद ओछे तरीके से इस्तेमाल किया जाता है।

भारत को फिर से अध्यात्म का द्वार बना होगा

युगों से आध्यात्मिकता के लिए लोग भारत की ओर देखते रहे हैं। हमें भारत को दोबारा आध्यात्मिकता के द्वार के रूप में स्थापित करना होगा।

अगर हम आध्यात्मिक प्रक्रिया को उस स्तर पर लाना चाहते हैं, जहां उसे होना चाहिए, एक ऐसा स्तर जहां लोग इसकी ओर सम्मान से देख सकें, इस पर भरोसा कर सकें, इसे अपना सकें, तो यकीन मानिए हमें इसमें सत्यनिष्ठा और चरित्र लाना ही होगा।
दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में लोगों ने इंसान के भीतरी पहलू पर इतना काम नहीं किया है, जितना हमारे यहां किया गया है। आप जो आमतौर पर देखते हैं, वह आध्यात्मिकता की कोई लोकप्रिय अभिव्यक्तियाँ नहीं है, बल्कि ये तरह-तरह के रंगों और रूपों में सजी आध्यात्मिक प्रक्रियाएं हैं। इनमें खूबसूरत तरीके हैं, तो भयावह तरीके भी हैं। सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके हैं, तो सामाजिक तौर पर अस्वीकार्य तरीके भी हैं। खुशनुमा तरीके हैं, तो तकलीफदेह तरीके भी हैं। यानी हर तरह के तरीके हैं। मानव के विकास के इतने सारे तरीके - इतनी गहराई से और इतने आयामों में, दुनिया में कहीं और नहीं खोजे गए हैं। अगर हम आध्यात्मिक प्रक्रिया को उस स्तर पर लाना चाहते हैं, जहां उसे होना चाहिए, एक ऐसा स्तर जहां लोग इसकी ओर सम्मान से देख सकें, इस पर भरोसा कर सकें, इसे अपना सकें, तो यकीन मानिए हमें इसमें सत्यनिष्ठा और चरित्र लाना ही होगा।

आश्रम में सत्यनिष्ठा पर जोर

मैं लगातार इस बात पर जोर देता रहा हूं कि जो लोग आश्रम में रहते हैं और वे लोग जो हमारे साथ सक्रिय रूप से जुड़े हैं, वे निष्ठावान व चरित्रवान हों।

मैंने तो सोचा था कि मैं ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करके चला जाऊंगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लेकिन आज मैं आपके साथ हूं और हर तरह की चीजों को संभाल रहा हूं, भ्रष्टाचारियों को दंड दे रहा हूं।
अगर चरित्र को हमने सख्ती से लागू नहीं किया तो हम ऐसी विरासत नहीं छोड़ पाएंगे जिसे आने वाली पीढिय़ां अपनाएं। यह सबसे जरुरी काम है जिसे अभी किए जाने की जरूरत है। सत्यनिष्ठा को बनाए रखने के लिए हम कठोर मेहनत कर रहे हैं। कभी-कभार, यहां-वहां कुछ भ्रष्टाचार पनप सकता है, जिसका अर्थ है कि हमें उसकी कटाई-छंटाई करते रहना होगा। अगर आपको लगता है कि हम जो कुछ भी देते हैं, वह मूल्यवान है तो आपको व हर किसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि भ्रष्टाचार न हो। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि अगर कहीं कोई लाइन है तो आप लाइन में ही खड़े हों। आपको ही यह सोचना होगा कि अपने आसपास के लोगों का आप फायदा न उठाएं। आपको ऐसा माहौल बनाना होगा। चरित्र व ईमानदारी सिर्फ व्यक्तिगत गुण ही नहीं हैं, यह बेहद जरूरी है कि लोग चरित्र व निष्ठा का वातावरण तैयार करने में भी योगदान दें।

अगर आप आध्यात्मिक प्रक्रिया का वास्तव में मोल समझते हैं और सोचते हैं कि आने वाली पीढिय़ों के लिए भी यह फायदेमंद होगी तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे जुड़े हर पहलू में ईमानदारी का भाव हो। आध्यात्मिक प्रक्रिया या ईशा से जुड़ी कोई भी गतिविधि पूरी तरह से साफ-सुथरी होनी चाहिए। मैं संगठन नहीं बनाना चाहता था। मैंने तो सोचा था कि मैं ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करके चला जाऊंगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लेकिन आज मैं आपके साथ हूं और हर तरह की चीजों को संभाल रहा हूं, भ्रष्टाचारियों को दंड दे रहा हूं। असल में यह मुझे अच्छा नहीं लगता, लेकिन मैं जानता हूं कि जब तक हम संपूर्ण चरित्र व निष्ठा नहीं लाएंगे, तब तक हम कोई भी मूल्यवान कार्य नहीं कर सकते।